Dark Mode
आखिर बेटियों की सुरक्षा है कहा धरती पर : आखिर कब तक

आखिर बेटियों की सुरक्षा है कहा धरती पर : आखिर कब तक

मेरा आज आप सभी से यही सवाल है की आखिर बेटिया कहा सुरक्षित है | घर की जान और शान मानी
जाने वाली बेटिया अब तो पुरुष वर्ग की हवस की शिकार होने के बाद अब भट्टियो में जलाई जा रही है तो
कही पालनहार जनम देने वाले पिता के द्वारा ही रौंदी जा रही है | क्या हो गया है आज हमारे समाज के
लोगो को | क्यों लड़की को सिर्फ एक ही दृष्टि से देखता है ये पुरुष वर्ग |
आज के युग में जहा एक और हर जगह नारियो ने अपनी अलग पहचान कायम की है वही
दूसरी और महिलाओ पर अत्याचार भी बढ़ता ही जा रहा है | चाहे घर हो या बहार की
दुनिया महिलाओ को हिंसा का सामना करना ही पढता है कभी कभी तो वह मजबूती से
इसका आगे आकर सामना कर लेती है पर हर बार यहाँ संभव नही होता |बहुत सी बार तो
महिलाये खुद नही जान पाती की वे किस तरह घरेलु हिंसा का शिकार हो रही है | इसलिए
जरुरी है महिलायों पर हिंसा किस प्रकार की होती है उसपर चर्चा की जाये |
नारियों पर हिंसा की परिभाषा में अंतरंग साथी की हिंसा (बार बार प्रहार कर चोट पहुंचाना,
मनोवैज्ञानिक प्रताड़ना, मैरिटल रेप, हत्या) यौन हिंसा एवं यौन प्रताड़ना (बलात्कार, जबरन की
गई सेक्सुअल एक्टिविटी, चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज,जबरन विवाह, सड़कों पर अभद्रता करना
और सताना तथा पीछा करना,साइबर उत्पीड़न), मानव तस्करी(दासता और यौन उत्पीड़न),
जननांगों को क्षति पनारियों पर होने वाली हिंसा के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। दुनिया की हर
तीसरी महिला शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार होती है। यह हिंसा प्रायः उसके निकट
संबंधी और अंतरंग साथियों द्वारा ही की जाती है।

आखिर बेटियों की सुरक्षा है कहा धरती पर : आखिर
कब तक
विवाहित महिलाओं में से केवल 52 प्रतिशत महिलाओं को अपनी इच्छा से यौन संबंध
बनाने,गर्भनिरोधकों का प्रयोग करने तथा स्वास्थ्य रक्षा के उपाय अपनाने की स्वतंत्रता प्राप्त
होती है। प्रायः उन्हें अपने पुरुष साथी की मर्जी के अनुसार चलना पड़ता है।
वर्ष 2017 में जिन महिलाओं की हत्या की गई उनमें हर दूसरी महिला के हत्यारे उसके साथी
या परिवार जन ही थे। जबकि पुरुषों के लिए यह औसत बीस पुरुषों में एक पुरुष था। विश्व
में 35 प्रतिशत महिलाओं को अपने अंतरंग साथी की शारीरिक या यौन हिंसा का सामना
करना पड़ता है। जबकि अपने साथी के अतिरिक्त बाहरी व्यक्तियों की यौन हिंसा की शिकार
होने वाली महिलाओं की संख्या  सात प्रतिशत है।
विश्व भर में महिलाओं की हत्या के मामलों में से 38 प्रतिशत इंटिमेट पार्टनर वायलेंस के
मामले होते हैं। मानव तस्करी का शिकार होने वाले लोगों में 71 प्रतिशत महिलाएं हैं। मानव
तस्करी की शिकार हर चार महिलाओं में से तीन यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं। प्रजनन
योग्य आयु की महिलाओं में विकलांगता और मृत्यु की जितनी घटनाएं कैंसर के कारण
 होती हैं, उतनी ही या उससे अधिक यौन हिंसा के कारण होती हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी  क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट 2016 के अनुसार
महिलाओं के साथ होने वाली आपराधिक घटनाओं की संख्या 2007 में 185312 थी जो 2016
में 83 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 338954 हो गई। 2016 में नारियों के साथ होने वाले
मामलों में कन्विक्शन रेट 18.9 था जो पिछले दशक की न्यूनतम दर है। 2015 में बलात्कार
की रिपोर्ट की गई घटनाओं की संख्या 34651 थी जो 2016 में बढ़कर 38947 हो गई, इन
मामलों में 36859 मामलों में बलात्कारी व्यक्ति बलात्कार पीड़िता का परिचित ही था।
क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट 2016 के अनुसार रेप की शिकार जीवित महिलाओं में से 43.2
प्रतिशत की आयु 18 वर्ष से कम है।भारत में सर्वाधिक मामले घरेलू हिंसा के होते हैं। विश्व
स्वास्थ्य संगठन का 2013 का एक अध्ययन यह बताता है कि समूचे दक्षिण पूर्वी एशिया में
नारियों पर घरेलू हिंसा की दर विश्व के अन्य भागों की तुलना में बहुत अधिक है।
भारत मानवाधिकारों से जुड़े लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय समझौतों का हस्ताक्षरकर्त्ता है जिनमें
नारी अधिकारों और उनके साथ होने वाले भेदभाव एवं अत्याचारों को रोकने के बड़े स्पष्ट
प्रावधान हैं। इसमें कन्वेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ आल फॉर्म्स ऑफ डिस्क्रिमिनेशन
अगेंस्ट वीमेन जैसे समझौते सम्मिलित हैं।
लैंगिक हिंसा के कारणों की पड़ताल इस समस्या के जटिल स्वरूप को उजागर करती है।
पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष अर्थोपार्जन का केंद्र होता है और नारी अपनी आजीविका के
लिए पुरुष पर निर्भर होती है। यह निर्भरता न केवल नारी के दमन और शोषण का कारण

आखिर बेटियों की सुरक्षा है कहा धरती पर : आखिर
कब तक
बनती है बल्कि नारी को अपने साथ हो रहे हिंसा एवं अत्याचार को चुपचाप सहन करने हेतु
विवश भी करती है। किन्तु पितृसत्ता का वर्चस्व केवल आर्थिक जीवन तक सीमित नहीं है
बल्कि उसका प्रसार धार्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन में भी देखा जा सकता  है जहाँ पुरुष
धार्मिक कर्मकांडों और सांस्कृतिक परंपराओं में नेतृत्व करता दिखता है और नारी गौण अथवा
सहायक भूमिका में होती है । कई बार वह मोक्ष प्राप्ति जैसे उच्चतर लक्ष्यों के लिए बाधक
भी समझी जाती है।
पुरुषवादी वर्चस्व की मानसिकता नारी को जन्म के पूर्व से ही अंतहीन हिंसा के चक्र में
धकेल देती है। संतान के रूप में लड़के की प्राप्ति की इच्छा कन्या भ्रूण की हत्या हेतु
उत्तरदायी होती है। कन्या का जन्म होने पर उसे पराया धन और एक अवांछित उत्तरदायित्व
समझा जाता है। उसके पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता।
कन्या को जन्म देने वाली माता पर अत्याचार किये जाते हैं।
जब जब वह प्रतिरोध करती है तब तब यह मानसिक प्रताड़ना शारीरिक हिंसा में बदल जाती
है। कभी आर्थिक स्वातंत्र्य की तलाश में तो कभी पुरुष की अकर्मण्यता और लालच के कारण
नारी धन अर्जन के लिए बाहर निकलती है तो उसका सामना कार्य स्थल पर अपना
आधिपत्य  जमाए बैठे पुरुषों से होता है। वे नारी की अनुभवहीनता और संकोच का लाभ
उठाकर उसका शोषण प्रारंभ कर देते हैं।
मानसिक प्रताड़ना नारी के जीवन में इस तरह समाई हुई है कि वह निरंतर तनाव, तिरस्कार
और अपमान झेलने को ही अपनी स्वाभाविक नियति मान लेती है, किंतु निरन्तर
भय,असुरक्षा एवं दमन का उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत विपरीत प्रभाव
पड़ता है और वह अवसादग्रस्त होकर अनेक शारीरिक व्याधियों से भी ग्रस्त हो जाती है। जब
वह मानसिक प्रताड़ना या शारीरिक हिंसा अथवा यौन उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाती है
तो उसे ज्ञात होता है कि पुलिस, प्रशासन, न्याय प्रणाली और राजसत्ता का चरित्र भी
पितृसत्तात्मक है जो उसे गलत सिद्ध कर पराजित करने के लिए किसी भी सीमा तक जाने
को तैयार है। न कानून उसके पक्ष में हैं न कानूनों को लागू करने वाले लोगों की मंशा उसे
न्याय दिलाने की है। हमारे समाज में यह देखा जाता है कि बलात्कार पीड़िता को दुश्चरित्र
ठहराने की होड़ सी लग जाती है। उसे सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। यदि
वह अविवाहित है तो उसके विवाह में कठिनाई होती है और यदि वह विवाहित है तो उसका
पारिवारिक जीवन अस्तव्यस्त हो जाता है।  
नारियों पर होने वाली घरेलू हिंसा (चाहे वह दहेज प्रताड़ना हो या  लैंगिक भेदभाव) प्रायः घर
की अन्य नारियों द्वारा ही की जाती है।

आखिर बेटियों की सुरक्षा है कहा धरती पर : आखिर
कब तक
बलात्कार जैसे कृत्य नारी पर आधिपत्य स्थापित करने की  आदिम पितृसत्तात्मक सोच की
हिंसक अभिव्यक्तियां हैं और इनके लिए यौन परितुष्टि की भावना  से अधिक नारी को
शारीरिक और मानसिक पीड़ा पहुंचा कर  उसे परास्त करने की विकृत सोच उत्तरदायी होती
है। आज जब हम नारियों पर होने वाली हिंसा की चर्चा करते हैं तो हमारा जोर हिंसा की
स्थूल अभिव्यक्तियों पर होता है किंतु हिंसात्मक सोच की बुनियाद पर खड़ी पुरुषवादी
व्यवस्था में परिवर्तन लाने का मूलभूत मुद्दा अचर्चित रह जाता है।

Comment / Reply From

Newsletter

Subscribe to our mailing list to get the new updates!