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हिंदी, हिन्दू और हिंदुस्तान पर हमला बर्दाश्त नहीं

हिंदी, हिन्दू और हिंदुस्तान पर हमला बर्दाश्त नहीं

हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही दिल्ली में आयोजित जी 20 सम्मलेन में हिंदी में भाषण
देकर न केवल राष्ट्र भाषा का सम्मान बढ़ाया अपितु पूरी दुनिया को भाषा की अस्मिता से
अवगत कराया। आज हिंदी दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए हम अपनी अपनी निज भाषा
के साथ हिंदी को स्वीकार करे और देश को प्रगति पथ और एक सूत्र में पिरोने के लिए अपने
स्वार्थ त्यागे और देश के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा का परिचय दें। आज अपने ही देश में हिंदी
हिन्दू और हिंदुस्तान पर हमला हो रहा है जिसका देशवासियों को मिलजुलकर मुकाबला करना
होगा। देशभर में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। आजादी के बाद देश में हिंदी के
विकास के लिए 14 सितम्बर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। यह दिन देश में
हिंदी को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। हिंदी दुनिया में चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली
भाषा है। दुनिया भर में लगभग 70 से 80 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं, और 77 प्रतिशत भारतीय हिंदी लिखते,
पढ़ते, बोलते और समझते हैं। भारत के अलावा, नेपाल, मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, युगांडा, पाकिस्तान,
बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका और कनाडा जैसे सभी देशों में हिंदी बोलने वालों की एक बड़ी तादाद है। इंग्लैंड,
अमेरिका और मध्य एशिया के लोग भी हिंदी भाषा को काफी हद तक समझते हैं। इसके बावजूद हिंदी को
वह मान, सम्मान और प्रतिष्ठा नहीं मिली जिसकी वह अधिकारी है। यह भी कहा जाता है हिंदी भाषियों ने
पढ़ लिखकर हिंदी के विकास में रोड़ा लगाया। हिंदी भाषी होते हुए भी इस वर्ग ने शूट- बूट धारण कर अपनी
मातृ भाषा को ठिकाने लगाया। हिंदी अपने ही देश में आज पिछड़ी है तो इसका सबसे बड़ा कारण और दोषी
कोई दूसरे नहीं अपितु अपने भाई बंधु है।
आजादी के 76 साल बाद भी विश्व में हिंदी का डंका बजाने वाले 140 करोड़ की आबादी वाले भारत में आज
भी एक दर्जन ऐसे राज्य है जिनमें हिंदी नहीं बोली जाती। वहां संपर्क और कामकाज की भाषा का दर्जा भी
नहीं है इस भाषा को। आश्चर्य तो तब होता है जब हम अंग्रेजी सीख पढ़ लेते है मगर हिंदी का नाम लेना पसंद
नहीं करते। हिंदी भाषी स्वयं अपनी भाषा से लगाव नहीं रखते जहाँ जरुरत नहीं है वहां भी अंग्रेजी का
उपयोग करने में नहीं हिचकते। देशवासियों को विचार करना चाहिए कि जिस भाषा को राजभाषा के रूप में
स्वीकार किया गया है और जो जन जन की मातृभाषा है, उसी के बोलने वाले उसे इतनी हिकारत की निगाह
से क्यों देखते हैं । हिंदी की इस दुर्दशा के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है इस पर गहनता से चिंतन और
मनन की महती जरूरत है। हिंदी भाषी राज्यों की हालत यह है कि वहां शत प्रतिशत लोग हिंदी भाषी है मगर
प्रदेश के बाहर से आए चंद अधिकारियों ने अपना कामकाज अंग्रेजी में कर मातृभाषा को दोयम दर्जे की बना

रखा है। हम दूसरों को दोष अवश्य देते हैं मगर कभी अपने गिरेबान में झांककर नहीं देखते। सच तो यह है
की जितने दूसरे दोषी है उससे कम हम भी नहीं है। हिन्दी हमारी मातृ भाषा है और हमें इसका आदर और
सम्मान करना चाहिये।
दक्षिण के प्रदेश अपनी निज बोली या भाषा को अपनाये इसमें किसी को आपत्ति नहीं है मगर राष्ट्रभाषा के
स्थान पर अंग्रेजी को अपनाये यह हमे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं है। वे तमिल ,कनड या बंगला को
अपनाये हमे खुशी होगी मगर हिंदी के स्थान पर अंग्रेजी थोपे तो यह बर्दाश्त नहीं होगा। भारत की स्वतंत्रता
के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी।
गांधी जी ने इसे जनमानस की भाषा भी कहा था। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है हिन्दी। चीनी भाषा के
बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
आज आवश्यकता इस बात की है की हम देश की मातृ और जन भाषा के रूप में हिंदी को अंगीकार करे। मातृ
भाषा की सार्थकता इसी में है कि हम अपनी क्षेत्रीय भाषाओँ की अस्मिता को स्वीकार करने के साथ हिंदी को
व्यापक स्वरुप प्रदान कर देश को एक नई पहचान दें। यह देश की सबसे बड़ी सेवा होगी।

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