
बिहार का चुनावी संघर्ष जेपी के चेलों के इर्द गिर्द होगा
बिहार की भूमि को बदलाव की भूमि भी कहा जाता है। लोकनायक जय प्रकाश नारायण की यह जन्म और
कर्म भूमि है और यहीं से उन्होंने सम्पूर्ण क्रांति का शंखनाद किया था। जेपी खांटी समाजवादी थे। बिहार को
समाजवादी आंदोलन की उर्वरक भूमि के रूप में भी जाना जाता है। 1977 के बाद यहाँ लगभग
समाजवादियों की ही सरकारें रही है। वे चाहे लालू की हो या नीतीश की। राजनीतिक रूप से हमेशा अहम रहे
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। इस लिहाज से यह राज्य उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र के बाद तीसरे नंबर
पर है। पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए ने यहाँ भरी बहुमत प्राप्त किया था। इनमें भाजपा को 17 ,जेडी यू
को 16 , लोक जनशक्ति पार्टी को 6 और कांग्रेस को एक सीट मिली थी। लालू की पार्टी आरजेडी का सफाया
हो गया था। अब जबकि लोकसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे है तो इस राज्य में पल पल में सियासत में
बदलाव देखा जा रहा है। नीतीश एनडीए का साथ छोड़कर एक बार फिर लालू के साथ हो गए है। बिहार में
सियासत की धुरी जेपी आंदोलन के इर्द गिर्द ही घूम रही है। लालू, नीतीश, सुशील मोदी और रविशंकर प्रसाद
आदि नेता जेपी आंदोलन की उपज है। आज भी वहां की राजनीति में जेपी आंदोलन की धमक देखी जा
सकती है।
बिहार में दो गठबंधनों के बीच सीधी लड़ाई होंगी। नीतीश ने इंडिया गठबंधन का झंडा थाम लिया है। इंडिया
में आरजेडी, जनता दल यू और कांग्रेस पार्टी प्रमुख रूप से शामिल है। वहीं एनडीए ने अपना कुनबा बढ़ा
लिया है। लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों गुटों सहित जीतन राम मांजी , उपेंद्र कुशवाह और मुकेश सहनी की
पार्टी ने एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इस दृष्टि से आगामी लोकसभा चुनाव
बहुत रोमांचक हो गए है।
बिहार समाजवादी आंदोलन की जन्म कर्म और संघर्ष की भूमि रही है। भारत छोड़ो आंदोलन में समाजवादी
नेताओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। जय प्रकाश नारायण, रामनंदन मिश्रा, बसावन सिंह, सूरज नारायण
सिंह, कर्पूरी ठाकुर रामानंद तिवाड़ी बीपी मंडल के जीवनकाल में समाजवादी आंदोलन कई चरणों से होकर
गुजरा। मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव जैसे अन्य राज्यों के समाजवादी नेताओं को भी
बिहार से राजनीतिक जीवनदान मिला था। लोहिया की मृत्यु के बाद कर्पूरी ठाकुर सबसे बड़े समाजवादी
नेता के रूप में उभरे और उन्होंने बिहार की पिछड़ी जातियों के युवाओं को संगठित किया। लोहिया के बाद
रामानंद तिवारी और भोलाप्रसाद सिंह के साथ वे बिहार की समाजवादी राजनीति के प्रमुख केंद्र बन गए।
1952 से आठवें दशक तक मृत्यु पर्यन्त कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उपमुख्यमंत्री रहे।
इसी दौरान रामविलास पासवान ,लालू यादव और नीतीश कुमार सरीखे युवा कर्पूरी ठाकुर की अंगुली पकड़
कर युवा समाजवादी के रूप में उभरे। 1974 में जेपी आंदोलन के दौरान छात्र नेता के रूप में इनकी
महत्वपूर्ण भूमिका रही। आठवें दशक में कर्पूरी ने चौधरी चरण सिंह के साथ मिलकर लोकदल नेता के रूप
में पिछड़ों की राजनीति शुरू की। रामविलास पासवान, लालू यादव और नीतीश बाद में कर्पूरी ठाकुर के
नेतृत्व को चुनौती देने लगे और इसके साथ बिहार में यादव , कुर्मी और दलितों की राजनीति शुरू होगई।
इस तरह लालू यादव और नीतीश कुमार की राजनीति दरअसल उसी प्रक्रिया को आगे ले गई जिसे कर्पूरी
ठाकुर ने शुरू किया था। दोनों ने अपनी-अपनी राजनीतिक आवश्यकताओं के अनुरूप, कर्पूरी ठाकुर की
विरासत पर कब्जा जमाने की कोशिश की। बाद में कर्पूरी ठाकुर के अनुयायियों समेत समाजवादी नेता
अलग-अलग पार्टियों में बिखर गए। जनता पार्टी और जनता दल का प्रयोग असफल होने के बाद नवें दशक
में लालू , नीतीश और पासवान ने अलग होकर पिछड़ों और दलितों की राजनीति शुरू करदी। लालू के बिहार
पर दस साल तक एक छत्र राज के बाद नीतीश ने बीजेपी के साथ मिलकर लालू को उखाड़ फेंका। इस बीच
लालू चारा घोटाले में फंस गए। लोक सभा चुनाव में नीतीश नरेंद्र मोदी के सांप्रदायिक एजेंडे को मुद्दा
बनाकर बीजेपी से अलग हो गये।
- बाल मुकुन्द ओझा