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मदनगंज किशनगढ़। सिटी रोड स्थित जैन भवन में गुरुवार को प्रातः धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि सद्भाव सागर महाराज ने कहा कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है, संसार मे प्रत्येक द्रव्य चाहे जीव हो या निर्जीव हो, वस्तु परिवर्तन शील है, बदलती रहती है। सुख–दुःख भी नित्य नही रहते। ऋतुए, मोसम भी बदलते है, इसी तरह व्यक्ति का मन भी बदलता है। सुबह होने वाले भाव शाम को बदल जाते है। यह सूत्र सीखाता है कि जब हम अपने काले बालों को सफेद होने से नहीं रोक पाये, वो भी बदल गये फिर अन्य व्यक्ति से भी एकसा व्यवहार की उम्मीद केसे कर सकते है? अमुक व्यक्ति अच्छा व्यवहार करता था अब वह बदल गया यह सोचकर हम निराश हो जाते है, उम्मीदें टूट जाती है। मन प्रतिशोध से भर जाता हैं। मुनि श्री ने कहा कि इसलिए ज्ञानियों बदला मत लो– बदल जाओ। बदला लेना मतलब राग-द्वेष-घृणा का जन्म, वही बदलना अर्थात अंजन से निरंजन हो जाना। अगर बदलना है तो अपने आप को बदलो, क्रोध को क्षमा भाव में, मान को विनय में, शंका को श्रद्धा में, दोषो को गुण में बदलना ही धर्म मार्ग की यात्रा है। वही धार्मिक संस्कारो को छोड कर पाश्चात्य शैली का अनुसरण पतन की यात्रा है। अध्यात्मिक दृष्टि रखने वाला धर्मात्मा व्यक्ति आनन्द का जीवन जीयेगा, उसका मानना है कि "मेरा सो जावे नहीं, जावे सो मेरा नही।" यह सूत्र धन, परिजन, व्यापार, व्यवहार के क्लेश से मुक्ति दिलवाएगा। वह वस्तु को बदलने की नहीं सोचता वह अपनी दृष्टि को बदलकर सुख से जीवन जीता है। सायंकालीन भक्तामर के 48 दीपको से भक्तामर पाठ, णमोकार चालीसा पाठ एवं आरती की गई।
 
                                                                        
                                                                    