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आर्टिजंस कलेक्टिव में 'एम्पावरिंग विमेन एज एंटरप्रेन्योर्स' पर हुई चर्चा

आर्टिजंस कलेक्टिव में 'एम्पावरिंग विमेन एज एंटरप्रेन्योर्स' पर हुई चर्चा

जयपुर। सिटी पैलेस में प्रिंसेस दीया कुमारी फाउंडेशन (पीडीकेएफ) द्वारा आयोजित 'पीडीकेएफ आर्टिजन कलेक्टिव' के अंतर्गत "एम्पावरिंग विमेन एज एंटरप्रेन्योर्स" विषय पर एक विचार-प्रेरक पैनल चर्चा का आयोजन किया गया। इस सत्र में जयपुर की प्रिंसेस गौरवी कुमारी ने अवॉर्ड-विनिंग आर्टिजन एवं सामाजिक उद्यमी, रूमा देवी और रिपब्लिक ऑफ जूफारी की संस्थापक एवं सोनालिका ट्रैक्टर्स सीएसआर, निदेशक, फिलांथ्रोपिस्ट और सामाजिक उद्यमी, आकांक्षा मित्तल के साथ चर्चा की। इस चर्चा के दौरान रूमा देवी ने एक महिला आर्टिजन से लेकर एक सफल उद्यमी बनने तक का सफर, जीवन की चुनौतियों और सफलताओं की प्रेरक कहानियां साझा की। वहीं आकांक्षा मित्तल ने सामाजिक उद्यमी के रूप में अपना सफर, जूफारी की शुरुआत और समाज के लिए अपने योगदान पर प्रकाश डाला।

राजस्थान के बाड़मेर जिले की निवासी रूमा देवी ने बताया कि किस प्रकार विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए उन्होंने आज यह मुकाम हासिल किया कि वे आज महिलाओं विशेषकर ग्रामीण महिलाओं के लिए एक उदहारण बन गई है। उन्होंने हस्तशिल्प और कढ़ाई में प्रशिक्षण देकर महिलाओं को स्वरोजगार के अवसर प्रदान किए। उनकी इस पहल से महिलाएं अपने घरों से बाहर निकलीं और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनीं। अपने इस सफर के बारे में उन्होंने बताया कि उन्होंने 10 महिलाओं के साथ अपनी शुरुआत की थी, लेकिन अब उनके साथ करीब 50 हजार महिलाएं जुड़ी हुई हैं। उन्होंने आगे बताया कि 2010 में दिल्ली में उन्होंने अपनी पहली एग्जीबिशन आयोजित की, जहां उनके काम को भरपूर सराहना मिली। इससे न केवल उन्हें अच्छी आय हुई, बल्कि उन्हें आगे बढ़ने की हिम्मत भी मिली। रूमा देवी ने कहा, "परेशानी में कभी घबराना नहीं चाहिए। सकारात्मक रहते हुए आगे बढ़ना चाहिए।"

रूमा देवी ने कहा, "हमारी संस्कृति और पहनावा ही हमारी पहचान हैं। जब आप विदेश जाते हैं, तो लोग आपके पहनावे से पहचान जाते हैं कि आप भारतीय हैं। वहीं, जब आप राजस्थान से बाहर जाते हैं, तो आपकी पोशाक से लोग समझ जाते हैं कि आप राजस्थानी हैं। इसलिए मैंने कभी अपना पारंपरिक पहनावा नहीं बदला, क्योंकि यही मेरी पहचान और संस्कृति है।" उन्होंने यह भी कहा, कारीगरी में हर एक वस्तु केवल हाथ से बनाई नहीं जाती, बल्कि उसमें कारीगर की मेहनत, भावनाएं और एक गहरे जुड़ाव की कहानी छिपी होती है। महिला कारीगर जो हाथ से अपना शिल्प बनाती हैं, उस हर एक कला कृति में उनकी भावनाएं जुड़ी होती हैं। एक कृति पर काम करते हुए वे गुनगुनाती हैं, आपस में बातें करती हैं, और कभी-कभी तो काम करते हुए सुई चुभने का दर्द भी महसूस होता है।

पैनल चर्चा में बात करते हुए रिपब्लिक ऑफ जूफारी की संस्थापक, आकांक्षा मित्तल ने पशुओं के लिए एक सैन्चुरी बनाने की अपनी यात्रा और एक महिला उद्यमी होने की चुनौतियों को साझा किया। मित्तल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि महिला उद्यमी, विशेष रूप से सामाजिक उद्यमों में, अक्सर यह दिखाने के लिए संघर्ष करती हैं कि उद्देश्यपूर्ण व्यवसाय भी सफल और सस्टेनेबल हो सकते हैं। उन्होंने प्रभाव पैदा करने वाले संगठन स्थापित करने में दृढ़ता और बदलती परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को ढालने के महत्व को बताया और महिलाओं को अपने लक्ष्यों की ओर छोटे लेकिन महत्वपूर्ण कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया।

अपनी यात्रा के बारे में बात करते हुए, उन्होंने बताया कि ज़ूफ़ारी की शुरुआत 'सेवा' के उद्देश्य से हुई थी, जिसमें पशुओं को बूचड़खानों, सड़कों और असुरक्षित वातावरण से बचाना, उन्हें उचित देखभाल देना और फिर उन्हें उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ना शामिल था। साथ ही ज़रूरतमंद पशुओं को एक स्थायी घर प्रदान करना भी इसका एक उद्देश्य है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने बच्चों को पशुओं से जोड़ने के महत्व पर बात की और ज़ूफ़ारी की प्रतिबद्धता के बारे में बताया कि यह सरकारी स्कूलों और एनजीओ का सपोर्ट करता है, ताकि शिक्षा वंचित समुदायों तक पहुंच सके।

कार्यक्रम के तहत, आखिरी दिन बाड़मेर की कालबेलिया महिलाओं द्वारा प्रामाणिक कालबेलिया संगीत, नृत्य, कहानियों और शिल्प का उत्सव मनाया गया। इसके अतिरिक्त, कार्यक्रम में फड़ स्टोरीटेलिंग प्ले, बैलेट परफॉर्मेंस, एनजीओ इंडियन विमेन इन्पैक्ट के बच्चों द्वारा शॉर्ट स्टोरी आदि प्रस्तुतियों ने आगंतुकों को आकर्षित किया। तीन दिवसीय आयोजन ने आगंतुकों और पर्यटकों को कला और संस्कृति के सुंदर संगम से रूबरू कराया।

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