
गणेश स्थापना : धार्मिक नियम और सांस्कृतिक महत्व की पूरी जानकारी
नई दिल्ली। गणेश चतुर्थी का पर्व केवल भगवान गणेश की आराधना का अवसर ही नहीं है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मकता, शांति और समृद्धि को आमंत्रित करने का भी पावन समय है। इस पर्व का सबसे महत्वपूर्ण पहलू गणेश प्रतिमा की स्थापना है। मान्यता है कि यदि प्रतिमा स्थापना शास्त्रसम्मत नियमों के अनुसार की जाए तो भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन से सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं।
प्रतिमा चयन का महत्व
गणेश प्रतिमा की स्थापना से पूर्व प्रतिमा के चयन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार गणेश जी की प्रतिमा ऐसी होनी चाहिए जो बैठी हुई मुद्रा में हो, क्योंकि यह स्थिरता और शांति का प्रतीक मानी जाती है। खड़े गणेश की मूर्ति प्रायः सार्वजनिक पंडालों और बड़े आयोजनों में स्थापित की जाती है, जबकि घर और दफ्तर में बैठी हुई प्रतिमा को शुभ माना गया है। प्रतिमा का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए, क्योंकि इन दिशाओं से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
स्थापना की दिशा और स्थान
प्रतिमा की स्थापना करते समय दिशा और स्थान का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। गणेश जी की प्रतिमा को घर या मंदिर में उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में स्थापित करना सर्वोत्तम माना गया है। यदि यह संभव न हो तो पूर्व दिशा भी उपयुक्त मानी जाती है। प्रतिमा को सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए, बल्कि स्वच्छ और पवित्र आसन, जैसे लकड़ी का पाटा या पीढ़ा, जिस पर लाल या पीले वस्त्र बिछाए गए हों, उस पर स्थापित करना चाहिए। स्थापना स्थल पर स्वच्छता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखना अनिवार्य है।
प्रतिमा स्थापना की विधि
मूर्ति स्थापना से पूर्व स्थान को गंगाजल या शुद्ध जल से पवित्र करना चाहिए। फिर उस स्थान पर चावल, फूल और रोली से स्वस्तिक अंकित करना शुभ माना जाता है। प्रतिमा स्थापित करते समय भगवान गणेश का आह्वान मंत्रोच्चार के साथ करना चाहिए। इस अवसर पर धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करके श्रीगणेश का पूजन आरंभ होता है। परंपरा के अनुसार, प्रतिमा स्थापना के समय परिवार के सभी सदस्यों को उपस्थित रहकर मंगलाचरण करना चाहिए, जिससे सामूहिक रूप से सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है।
वर्जनाएँ और सावधानियाँ
गणेश प्रतिमा की स्थापना करते समय कुछ वर्जनाओं का पालन करना आवश्यक है। प्रतिमा को कभी भी अंधेरे स्थान, शौचालय या रसोईघर के समीप नहीं रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त, प्रतिमा की पीठ कभी भी दरवाजे या दीवार से सटी हुई नहीं होनी चाहिए, बल्कि पीछे थोड़ी जगह अवश्य छोड़नी चाहिए। प्रतिमा को कपड़े से ढककर नहीं रखना चाहिए, बल्कि खुले और प्रकाशमान स्थान पर रखना शुभ माना गया है। इसके अलावा, एक ही घर में एक समय पर दो गणेश प्रतिमाएँ स्थापित करने से बचना चाहिए।
पूजा और विसर्जन
प्रतिमा स्थापना के बाद दस दिनों तक नियमित रूप से गणपति बप्पा की पूजा करनी चाहिए। प्रतिदिन धूप, दीप, नैवेद्य और मोदक का भोग लगाना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। गणपति की आरती और गणेश मंत्रों का उच्चारण भक्तों को आध्यात्मिक शांति और मानसिक बल प्रदान करता है। अनंत चतुर्दशी के दिन प्रतिमा विसर्जन की परंपरा है। विसर्जन से पहले गणेश जी से क्षमा याचना करते हुए और उन्हें पुनः आमंत्रित करते हुए अगले वर्ष आने का आग्रह किया जाता है। यह भावनात्मक विदाई भक्त और भगवान के बीच गहरे संबंध का प्रतीक है। गणेश प्रतिमा स्थापना केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह भक्त और ईश्वर के बीच आस्था का गहन संवाद है। शास्त्रसम्मत नियमों और विधियों के अनुसार की गई स्थापना न केवल पारिवारिक सुख-शांति लाती है, बल्कि जीवन में हर क्षेत्र में सफलता और समृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त करती है। जब भक्त सच्चे मन से गणपति बप्पा का स्वागत और पूजन करते हैं, तो उनके जीवन से सभी प्रकार के विघ्न दूर होकर नई ऊर्जा और खुशहाली का प्रवेश होता है।