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देश के आधे विधायक अपराधी

देश के आधे विधायक अपराधी

भारतीय लोकतंत्र में अपराधी इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि कोई भी राजनीतिक दल उन्हें
नजरअंदाज नहीं कर पा रहा। पार्टियाँ उन्हें नहीं चुनती बल्कि वे चुनते हैं कि उन्हें किस पार्टी से
लड़ना है। उनके इसी बल को देखकर उन्हें बाहुबली का नाम मिला है। कभी राजनीति के धुरंधर
अपराधियों का अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करते थे अब दूसरे को लाभ पहुँचाने के बदले
उन्होंने खुद ही कमान संभाल ली है।
हमारे देश में वर्तमान में कुल 4001 विधायक हैं. जिसमें से 1,777 यानी 44 फीसदी नेता
हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसे अपराधों में लिप्त रहे हैं। वहीं वर्तमान लोकसभा में भी 43
फीसदी सांसद आपराधिक मामलों में घिरे हैं। 2004 में यही संख्या 22 फीसदी थी, जो कि अब
दोगुनी हो गई है। ये आंकड़ा बताता हैं कि राजनीति को अपराध मुक्त बनाने की लाखों
कोशिशों के बावजूद ऐसे विधायकों, सांसदों की संख्या बढ़ती ही जा रही है जिनके खिलाफ
आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। विधायकों के ऊपर लगे गंभीर आपराधिक मामलों को देखें तो
कुल आपराधिक मामले वाले विधायकों में से 1,136 या 28 फीसदी मामले ऐसे हैं जिनमें दोषी
पाए जाने पर आरोपी को पांच साल या उससे ज्यादा की जेल की सजा हो सकती है। एडीआर से
मिले आंकड़ों के मुताबिक 47 विधायकों पर हत्या के मामले, 181 पर हत्या के प्रयास के मामले
और 114 पर महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित मामले दर्ज हैं. 14 विधायकों पर
बलात्कार के मामले दर्ज किए गए हैं।
राजनीतिक पार्टियों की बात करे तो भाजपा में कुल 479 विधायक हैं जिनमें से 337 विधायकों
पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। भाजपा के सबसे ज्यादा विधायकों पर क्रिमिनल केस दर्ज
हैं। अन्य पार्टियों में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके), तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी,
वाईएसआर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, भारत राष्ट्र समिति (पूर्व में तेलंगाना राष्ट्र समिति),
राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और बीजू जनता शामिल हैं। इन
दलों में ऐसे तो विधायकों की संख्या कम है, लेकिन अपराध का प्रतिशत ज्यादा है।
राजनीति के अपराधीकरण पर हो रही चर्चाओं में पक्ष और विपक्ष के अलग अलग गुट बन जाते
है जो इस नापाक गठजोड़ को तोड़ने के बजाय एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर अपने
हित साधने में लगे रहते है। इससे सार्थक चर्चा नहीं हो पाती और पूरा समय गंदे बोलों के बीच

समाप्त हो जाता है। लगता है इन चर्चाओं में भाग लेने के लिए ऐसे लोगों को बुलाया जाता है
जो अपने निम्न स्तरीय बयानों के लिए जाने जाते है।
आज लोकतंत्र की दुहाई देने वाले नेताओं और सियासी पार्टियों के नापाक गठजोड़ से जनता
जनार्दन को जागरूक होने की जरुरत है। अपराधियों को नेताओं का समर्थन हो या नेताओं की
अपराधियों को कानून के शिकंजे से बचाने की कोशिश, आखिर राजनैतिक दलों पर अपराधियों
का ये कैसा असर है। भारतीय लोकतंत्र में अपराधी इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि कोई भी
राजनीतिक दल उन्हें नजरअंदाज नहीं कर पा रहा। हालात यहाँ तक पहुँच गए है कि पार्टियाँ
उन्हें नहीं चुनती बल्कि वे चुनते हैं कि उन्हें किस पार्टी से लड़ना है। उनके इसी बल को देखकर
उन्हें बाहुबली का नाम मिला है। कभी राजनीतिज्ञ अपराधियों का अपने लाभ के लिए इस्तेमाल
करते थे अब अपराधियों ने दूसरे को लाभ पहुँचाने के बदले खुद ही कमान संभाल ली है।
राजनीति में शुचिता को लेकर ऊपरी तौर पर सभी सियासी दल सहमत है मगर व्यवहार में
उनकी कथनी और करनी में भारी अंतर है। लगभग सभी दल चुनाव जीतने के लिए ऐसे
उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारते है जो बाहुबली होने के साथ आपराधिक आचरण वाले
है। नेताओं के खिलाफ अदालती मुकदमें कोई नयी बात नहीं है। आजादी के बाद से ही नेताओं
को विभिन्न धाराओं में दर्ज मुकदमों का सामना करना पड़ रहा है। पिछले दो दशकों में ऐसे
मामलों में यकायक ही तेजी आयी। दर्ज मुकदमों में हत्या, हत्या के प्रयास, सरकारी धन का
दुरूपयोग, भ्रष्टाचार, बलात्कार जैसे गंभीर प्रकृति के मुकदमें भी शामिल है। कई नामचीन नेता
आज भी जेलों में बंद होकर सजा भुगत रहे है और अनेक नेता जमानत पर बाहर आकर
मुकदमों का सामना कर रहे है। वर्षों से इन मुकदमों का फैसला नहीं होने से हमारी लोकतान्त्रिक
प्रणाली पर सवाल उठते रहे है। लम्बे मुकदमें चलने से सबूत मिलने में काफी परेशानी होती है
और अंततोगत्वा आरोपी बरी हो जाते है। सुप्रीम अदालत यदि ऐसे मुकदमों के शीघ्र निस्तारण
के लिए कोई सख्त कदम उठाये तो पीड़ितों को न्याय मिल पायेगा।

- बाल मुकुन्द ओझा

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