काश, निर्दयी माँ की ‘सूचना’ आखिरी होती..!
कोई माँ भला कैसे निर्दयी हो सकती है? क्रूर हो सकती है? कैसे अपने जिगर के टुकड़े को
बैग में पैक कर सड़क रास्ते लंबे सफर पर बेखौफ निकल सकती है? इसके जवाब मनोचिकित्सकों के
पास अपने-अपने ढ़ंग के और अलग भी हो सकते हैं। लेकिन गोवा में एक आम नहीं बल्कि बेहद
खास वो माँ जिसने देश-दुनिया को अपनी सफलता से आकर्षित किया निर्दयता और क्रूरता की सारी
हदें पार कर जाए तो हैरानी होती है। गोवा में जघन्य हत्याकाण्ड ने जहां हर किसी को झकझोरा वहीं
कई सवाल भी खड़े कर दिए। बेहद पढ़ी-लिखी माँ जिसे दुनिया आदर्श समझती थी वही अपराधी
निकले? सवाल यकीनन कचोटने वाला है। लेकिन जवाब आसान भी नहीं है।
पति-पत्नी के रिश्तों में तल्खी आना असामान्य नहीं है। लेकिन ऐसा भी क्या नफरत जो
इसकी बलि बेदी पर खुद का मासूम चढ़ा दिया जाए? निश्चित रूप से बेकाबू गुस्सा, सोचने, समझने
की शक्ति पर नियंत्रण खोना इंसान को कितना हैवान बना देता है। तमाम घटनाओं से यही समझ
आता है। लेकिन सूचना सेठ ने जिस शातिराना अंदाज में अपनी इकलौती संतान को मौत की नींद
सुलाया वह बेहद अलग और चिंतानीय है। जैसा कि खुलासों से पता चला बच्चे को अत्याधिक कफ
सिरप पिलाकर बेसुध कर उसका दम घोंट मौत की नींद सुला दिया गया। लाश बैग में भर आधी रात
को बड़े बेखौफ अंदाज में बेधड़क होटल के रिशेप्शन पर कैब ड्राइवर को पकड़ाना और सड़क रास्ते
गोवा से बैंगलुरू के लंबे सफर पर निकलना किसी हॉरर स्टोरी से कम नहीं है। रास्ते भर चुप्पी और
सामान्य के हाव-भाव बनाए रखना। 12 घंटे लाश के साथ सफर करना यकीनन बेदिल कातिल का ऐसा
शातिराना अंदाज था जैसे वो इंसान नहीं एआई(आर्टीफीसियल इण्टेलीजेंस) हो। हत्यारिन मां की सारी
करतूतें बेहद हैरत अंगेज है। गनीमत रही कि जहां होटल स्टाफ को संदेह हुआ वहीं कैब ड्राइवर भी
परेशान था कि हवाई यात्रा के मुकाबले बेहद लंबे सफर पर निकली महिला इतनी शांत और सहज
कैसे? शक और कमरे में मिले सबूतों की बिना पर होटल वाले पुलिस को इत्तला करते हैं। पुलिस कैब
वाले से कोऑर्डिनेट करती है। कैब ठिकाने के बजाय थाने पहुंच जाती है। वहां बैग में कपड़ों के बीच
छुपा चार साल के मासूम का शव मिलता है। इस तरह एक बेमिशाल महिला के हाथों हुए क्रूरतम
हत्याकाण्ड से हर कोई सन्न रह जाता है। न जाने कितनी निर्दयी माताओं की कैसे-कैसे क्रूरतम
वारदातें सुनीं और देखीं। लेकिन एआई के जरिए 'माइंडफुल एआई लैब' से कृत्रिम आदर्श और नैतिकता
का आधुनिक पाठ पढ़ाने वाली सूचना सेठ ने कैसा घटिया माइंड गेम खेला जिससे हर कोई स्तब्ध है।
उसके अनैतिक कारनामे की जितनी भी निन्दा की जाए कम है और कठोर से कठोर सजा भी नाकाफी
है। कोई अपढ़, ठेठ गंवई, दकियानूसी होता तो थोड़ा समझ भी आता। लेकिन एक पढ़ी लिखी
असाधारण महिला जिसकी बेहद तगड़ी प्रोफाइल हो। एक कंपनी की सीईओ और हार्वर्ड की रिसर्च
फेलो हो। जिसका नाम । जिसका नाम 2021 की एआई एथिक्स में टॉप 100 ब्रिलियंट महिलाओं में
शुमार हो। जिसने दो साल बर्कमैन क्लेन सेण्टर में एक सहयोगी का काम किया और बोस्टन,
मैसाचुसेट्स में एआई तथा रिस्पॉन्सिबल मशीन लर्निंग में भी अपना योगदान दिया। बैंगलुरू प्रतिष्ठित
कंपनी में डेटा साइंटिस्ट का काम कर चुकी हो जिसने दो पेटेंट भी दाखिल किए हों। जिसके पास
कलकत्ता यूनिवर्सिटी की भौतिक शास्त्र की स्पेशलाइजेशन की डिग्री हो और जो वहां की 2008 की
टॉपर हो वो ऐसा करे तो हैरानी की हदें भी पार होना स्वाभाविक है।
बंगाल की सूचना के पति वेंकट रमन बड़े इंडोनेशियाई कारोबारी हैं। 2010 में दोनों ने प्रेम
विवाह किया लेकिन जल्द ही रिश्ते बिगड़ गए। तल्खी बढ़ते-बढ़ते अदालत की चौखट तक जा पहुंची
जो आखिरी मुकाम पर है। अदालत ने हर रविवार को बेटे को पिता से मिलने की इजाजत क्या दी
यही सूचना सेठ को नागवार गुजरी। उसके एआई पैटर्न के ब्रेन ने जबरदस्त चाल चली। कत्ल से पहले
बेटे से बैंगलुरू में मिलने का संदेश देकर पति को गुमराह किया और खुद बेटे को लेकर गोवा आ गई।
बेटा पिता से न मिल सके इस प्रतिशोध में सूचना धधक रही थी। एक सक्षम एन्टरप्रेन्योर होकर भी
पति से ढ़ाई लाख रुपए हर माह गुजारा भत्ता भी चाहती थी। शायद सूचना बेहद प्रतिभाशाली होकर भी
अकेलेपन का शिकार थी और खुद के बुध्दिमान होने का भ्रम पाले घृणित आपराधिक विकृति के
गिरफ्त में जकड़ चुकी थी। बेटे की हत्या का उसे कोई पश्चाताप नहीं है। बेटे का कुसूर बस इतना था
कि उसकी शक्ल पिता से मिलती थी जो सूचना को सालता था। कैसी विकृत सोच थी?
नासमझ माँ में भी ममता होती है। जानवर तक संतान को बचाने खूंखार हो जाते हैं। उसमें
ईर्ष्या, द्वेष की कैसी-कैसी विकृत मानसिकता पनपी जिसका उदाहरण सामने है। आखिर समाज किस
दिशा में जा रहा है? पैसा या रंजिशन अपराधों के पीछे?
अकेलापन, आपसी मेल-जोल की कमीं, बिखरता समाज और हाथ में सिमटे मोबाइल से
एकाकी बनता जीवन, सामाजिक ताना-बाना बिखेर लोगों को लोगों से अलग कर रहा है। एक वो
जमाना था जब संयुक्त परिवार शान थी। गांवों में सांझा चूल्हा जलता जिसमें सबका खाना साथ
पकता। रोज का हंसना, मिलना, उठना, बैठना और सबके सुख-दुख में बराबरी से शरीक होना, किसी
मुसीबत या अनबन पर मिल जुलकर हल निकालने से कभी अकेलापन, डिप्रेशन या असुरक्षा की
भावना महसूस नहीं होती थी। आज तरक्की के बीच वो समाज है जिसमें टूटते संयुक्त परिवार की
जगह अकेले परिवार हैं जो दिखावे का झूठा मुलम्मा ओढ़ रिश्तों की अहमियत को दरकिनार कर
दिनों दिन बेहद खोखले होकर टूटते जा रहा हैं। यही वजह है जो बड़े और हाई प्रोफाइल भी घटिया से
घटिया काण्ड कर बैठते हैं। काश कुछ वक्त टीवी, मोबाइल के स्क्रीन के अलावा घर, परिवार, समाज
के लिए भी निकाला जाता जिससे इंसान को इंसान से जोड़े रखने वाली कड़ियां बिखरने न पातीं। इस
दिशा में सबको सोचना होगा और रास्ता निकालना ही होगा। कितना अच्छा होता कि गोवा काण्ड की
सूचना समाज के लिए आखिरी होती।
-ऋतुपर्ण दवे