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भारत की नई पीढी, बंटवारे की त्रासदी को समझें

भारत की नई पीढी, बंटवारे की त्रासदी को समझें


 

भारत में 14 अगस्त का दिन ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। जब देश का विभाजन हुआ उस समय 15 अगस्त, 1947 को भारत को पृथक राष्ट्र घोषित कर दिया गया था। यह किसी भी राष्ट्र के लिए प्रसन्नता और गर्व का अवसर था लेकिन इस स्वतंत्रता की मिठास के साथ-साथ देश को बंटवारे का आघात भी सहना पड़ा। स्वतंत्र राष्ट्र का जन्म विभाजन की भयंकर हिंसक त्रासदी के बीच हुआ जिसने लाखों भारतीयों के मानस पर पीड़ा के स्थायी नासूर छोड़ दिये। एक तरफ भारत के आजाद होने की खुशी सबके चेहरों पर छलक रही थी, वहीं दूसरी ओर विभाजन की विभीषिका में मारे गये लाखों लोगों का दर्द भी हर भारतवासी के दिल में था। इस दौर को देश का बंटवारा कहा गया, लेकिन सही मायने में यह दिलों का, परिवारों का, आपसी स्नेह रिश्तों का और हमारी भावनाओं का बंटवारा था।


देश का विभाजन किसी विभीषिका से कम नहीं था, यह दर्द आज भी देश की जनता को भय से भर देता है। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने पाकिस्तान को भारत से विभाजन के बाद एक मुस्लिम राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान कर दी थी। इस समय लाखों लोग विस्थापित हुए और बडे स्तर पर हुए दंगो के कारण लाखों लोगों को इस त्रासदी में अपनी व अपनों की जान गंवानी पड़ी। विभीषिका का यह दर्द कभी नही भूलने वाला रहा। बटवारें के दंगो में मारे गये लाखों अनाम लोगों की याद में यह स्मृति दिवस सदैव उनकी स्मृति कराता रहेगा। हमारे देश का बटवारा शांतिपूर्ण तरीके से नहीं हो सका। भारत का यह बंटवारा त्रासदी की भेंट चढ गया। दोनों देशों के बीच बंटवारे की भौगोलिक सीमा तय होते ही रातों-रात देश में लाखों लोग घर-बार छोड़कर जाने लगे। धर्म-मजहब के आधार पर हुए बंटवारे के दौरान नहीं चाहते हुए भी लाखों लोग इस पार से उस पार जाने को मजबूर हो उठे।


इससे पहले भी ब्रिटिश हुकूमत से आजादी पाने के लिए भी हजारों भारतीयों ने अपनी जान दांव पर लगा दी थी। 14-15 अगस्त 1947 की आधी रात को आजादी के साथ देश का भी विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान अस्तित्व में आया। विभाजन से पहले पाकिस्तान का कहीं कोई नामो-निशान नहीं था। अंग्रेज तो भारत छोड़कर जा ही रहे थे, लेकिन जाते-जाते उनकी साजिश रही कि वे भारत को बांटकर एक अन्य देश खड़ा कर दें। इस साजिस में वे सफल भी रहे और देश को आजादी बंटवारे की शर्त पर ही मिली।


अंग्रेजों की दौ सौ वर्षों की लम्बी गुलामी के बाद भारत को आजादी तो मिली, लेकिन वहीं दूसरी ओर देश के दो टुकड़े करने वाला दर्द कभी नहीं भूलने वाला बन गया। बंटवारे की इस विभीषिका में लाखों लोग इधर से उधर जा रहे थे। लोगों को वर्षों से अपना जमा-जमाया काम-धन्धा, पैतृक घर-बार, परिवार, समाज व मातृभूमि को छोड़ना पड़ा। इस दौरान लाखों लोगों को इस विभीषिका में अपनी जान भी गंवानी पड़ी। यह बहुत ही भयानक मंजर था, इस दर्द व भय के माहौल की स्मृति प्रत्येक भारतवासी विशेषकर हमारी नई पीढी को निरन्तर होती रहे। इस स्मृति दिवस के बहाने ही सही हमारी आने वाली नई पीढी इस त्रासदी भरे दौर को जान पायेगी।


देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाखों अनाम लोगों को श्रद्धांजलि देने का अवसर ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के माध्यम से भारतवासियों को प्रदान किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस दिन की चर्चा करते हुए कहा था कि ’मैं उन सभी को श्रद्धांजलि देता हूं, जिन्होंने विभाजन के दौरान अपनी जान गंवाई और हमारे इतिहास के उस दुःखद दौर में पीड़ित सभी लोगों के लचीलेपन और धैर्य की सराहना भी करता हूं।’ प्रधानमंत्री ने इस स्मृति दिवस की घोषणा करते हुए कहा था कि विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के माध्यम से सामाजिक विभाजन, वैमनस्यता के दंश को दूर करने और देश में एकता, सामाजिक सद्भाव और मानव सशक्तिकरण की भावना को और मजबूत मजबूती मिलेगी। यह दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करने के लिए हमेशा प्रेरित करेगा। साथ ही हमारे देशवासियों मेंएकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनायें भी ओर अधिक मजबूत होगी।

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