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कष्टकारी कार्यवाहियों को समाप्त करने में न्यायिक हस्तक्षेप महत्वपूर्ण: उच्चतम न्यायालय

कष्टकारी कार्यवाहियों को समाप्त करने में न्यायिक हस्तक्षेप महत्वपूर्ण: उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि लोगों को कष्ट से बचाने के लिए कष्टकारी कार्यवाहियों को समाप्त करने के वास्ते न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक है तथा न्यायालय ने यह कहते हुए दो व्यक्तियों के विरुद्ध आपराधिक अभियोजन को रद्द कर दिया।पीठ ने दोनों अपीलकर्ताओं के खिलाफ शुरू किए गए अभियोजन को खारिज कर दिया, जिन पर लोक सेवक को उसके कर्तव्य निर्वहन से रोकने के लिए हमला करने का भी आरोप लगाया गया था।न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि किसी आरोपी को समन करना एक गंभीर मामला है।
जो व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा को प्रभावित करता है। पीठ ने कहा, ‘‘व्यक्तियों को अनावश्यक उत्पीड़न और दुख से बचाने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि अनुचित अभियोजन से आपराधिक न्यायालयों में काम का बोझ न बढ़े और योग्य मामलों के लिए जगह बने, कष्टप्रद कार्यवाहियों को समाप्त करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत न्यायिक हस्तक्षेप अत्यंत महत्वपूर्ण है।’’दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों से संबंधित है। पीठ का यह फैसला इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जुलाई 2015 के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर आया, जिसमें लोक सेवक के सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में कथित रूप से बाधा डालने के लिए कुछ व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।

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