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न्यूजीलैंड में वेतन वृद्धि की मांग को लेकर हुए बड़े पैमाने पर प्रदर्शन

न्यूजीलैंड में वेतन वृद्धि की मांग को लेकर हुए बड़े पैमाने पर प्रदर्शन

वेलिंगटन। न्यूजीलैंड में दक्षिणपंथी सरकार के खिलाफ आक्राेश प्रकट करते हुए एक लाख से अधिक कर्मचारी सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक वेतन और संसाधनों की मांगाें के साथ नौकरी छोड़ गुरूवार काे सड़काें पर उतर आए। हड़ताल में शिक्षक, नर्स, डाक्टर, अग्निश्मन अधिकारी के साथ ही अन्य सरकारी कर्मचारी भी शामिल हुए।

खबराें के मुताबिक, न्यूजीलैंड के विभिन्न शहरों में सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियाें ने तख्तियों और बैनरों के साथ मार्च निकाला और नारे लगाए। हालांकि, वेलिंगटन और क्राइस्ट चर्च में विरोध प्रदर्शन काे बेहद खराब मौसम के कारण रद्द करना पड़ा। इस बीच यूनियनों ने एक संयुक्त बयान में इस हड़ताल को दशकों की सबसे बड़ी हड़ताल बताते हुए कहा कि इसमें एक लाख से अधिक सार्वजनिक कर्मचारी भाग ले रहे हैं।

मिडलमोर अस्पताल के आपातकालीन डॉक्टर और 'एसोसिएशन ऑफ सैलरीड मेडिकल स्पेशलिस्ट्स' (एएसएमएस) के उपाध्यक्ष सिल्विया बॉयज ने ऑकलैंड के एओटिया स्क्वायर में लाेगाें काे संबाेधित करते हुए कहा कि सरकार को जीवनयापन की लागत कम करने और 'फ्रंटलाइन' सेवाओं को बनाए रखने के वादों पर चुना गया था लेकिन इन मुद्दों पर वह विफल है।

एएसएमएस यूनियन ने साेशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक पर प्रकाशित अपने संदेश में कहा कि महंगाई बढ़ गई है। स्वास्थ्य और शिक्षा में कटाैती हाे रही है। हम पहले से कहीं अधिक प्रतिभाओं को खो रहे हैं।

इस बीच सरकार ने विरोध प्रदर्शनों को यूनियनाें का एक ' राजनीतिक स्टंट' करार दिया है। सार्वजनिक सेवा मंत्री जुडिथ कोलिंस ने बुधवार को एक बयान में कहा कि प्रस्तावित हड़ताल अनुचित, अनुत्पादक और अनावश्यक है। उन्हाेंने कहा कि यह सरकार को निशाना बनाने वाला स्टंट है लेकिन इसकी कीमत चुकाने वाले लोग वे हजारों मरीज हैं जिनकी नियुक्तियां और सर्जरी रद्द हो गई हैं। हालांकि उन्हाेंने साफ किया कि सरकार बातचीत के लिए तैयार है।

हाल के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि सत्तारूढ़ गठबंधन का समर्थन गिरा है, हालांकि विपक्ष को अभी स्पष्ट बढ़त नहीं मिली है।

2023 में सत्ता में आने के बाद, रूढ़िवादी सरकार ने सरकारी खर्च में कटाैती की है ताकि बजट में संतुलन लाया जा सके। सरकार के अनुसार कटाैती सिर्फ बैंक और कार्यालयाें में हाेगी जिससे ब्याज दरे कम रहेंगी और निवेश के लिए बेहतर हालात बनेंगे। बावजूद इसके अर्थव्यवस्था पिछड़ रही है और काफी संख्या में देशवासी पलायन करने काे मजबूर हैं।

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