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राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की सरकार का अंतरिम बजट प्रस्तुत करते हुए उपमुख्यमंत्री व वित मंत्री दीया कुमारी ने केवल तीन-चार माह के सरकार चलाने के खर्चों को पारित कराने तक ही सीमित नही रखकर सर्वस्पर्शी अंतरिम बजट प्रस्ताव प्रस्तुत कर साफ संदेश दे दिया है। अंतरिम बजट प्रस्तुत करते हुए राज्य सरकार की प्रमुख प्राथमिकताओं और विकास का रोडमेप सामने रख दिया है। केन्द्र सरकार की तरह ही यह अंतरिम बजट युवा, महिला, गरीब और किसान केन्द्रीत रहा है। लगभगी सभी पक्षों को लेकर राज्य सरकार की ईच्छा शक्ति को सामने रख दिया गया है। हांलाकि सर्वस्पर्शी बजट अभिभाषण होने के साथ ही इसमें कोई दो राय नहीं कि राजस्थान के अंतरिम बजट में खेती किसानी पर खास जोर दिया गया है। वित मंत्री दीया कुमारी ने बजट प्रस्तावों को पीएम किसान सम्मान निधि को बढ़ाने तक ही सीमित नहीं रहकर कृषि क्षेत्र में अल्पकालीन और दीर्घकालीन विकास का रोड़मेप सामने रखा है। इनसे निश्चित रुप से अल्पकालीन नहीं अपितु खेती किसानी में दीर्घकालीन सुधार होगा वहीं किसानों को दीर्घकालीन लाभ प्राप्त होगा।
अर्थशास्त्रियों व विशेषज्ञों द्वारा जिस बात पर जोर दिया जाता रहा है लगता है कोई सरकार पहलीबार उस पर कोई सरकार पहलीबार इतनी गंभीर नजर आ रही है। भजन लाल सरकार के पहले अंतरिम बजट में  श्री अन्न योजना को लेकर सरकार की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि सरकार ने 12 लाख किसानों को मक्का बीज, 8 लाख काश्तकारों को बाजरा व एक लाख काश्तकारों को ज्वार के उन्नत गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराने की घोषणा की है। तिलहन और दलहन को बढ़ावा देने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सहकारिता मंत्री अमित शाह की प्रतिवद्धता को ही ध्यान में रखते हुए सात लाख काश्तकारों को सरसों और चार लाख किसानों को मूंग व एक लाख किसानों को मोठ के उन्नत बीज उपलब्ध कराने की घोषणा की है। अब इससे साफ हो जाता है कि इससे किसान, खेती ओर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को ही सीधा सीधा लाभ मिलेगा। बीज वितरण होगा तो वह खेती में ही काम आयेगा, उन्नत बीज होगा और उससे बाजरा, मक्का, ज्वार, सरसों, मूंग मोठ आदि का उत्पादन बढ़ेगा और इसका लाभ भी किसान और साथ साथ देश और प्रदेश को मिलेगा। मेरा आरंभ से ही मानना रहा है कि किसानों को ऋण माफी या नकद अनुदान के स्थान पर उतनी राशि का कुछ अंश भी यदि इनपुट यानी कि खाद-बीज के रुप में दिया जाये तो सही मायने में यह काश्तकार की सहायता है। दरसल अनुदान के रुप में नगद राशि मिलना चाहे वह ऋण माफी हो या अन्य तो उसका उत्पादकता से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं रहता और इससे काश्तकार को जो लाभ पहुंचाने की सरकार की मंशा होती है वह पूरी भी नहीं हो सकती। भले ही ऋण माफी या नकद राशि से किसान खुश हो जाए पर जो खेती-किसानी को वास्तविक लाभ इनपुट वितरण से हो सकता है वह किसी दूसरे विकल्प से नहीं।
अच्छी बात यह है कि वित मंत्री दीया कुमारी ने अंतरिम बजट में खेती किसानी के लिए आधारभूत सुविधाओं के विस्तार को भी उतना ही महत्व दिया है जितना प्रमाणित गुणवत्तायुक्त बीज उपलब्ध कराने पर दिया है। राजस्थान एग्रीकल्चर इंफ्रा मिशन के लिए दो हजार करोड़ रु. का प्रावधान किया है। इसमें पानी के संरक्षण हेतु 20 हजार फार्म पॉंड, 10 हजार किलोमीटर सिंचाई पाइप लाईन, 50 हजार किसानों को तारबंदी हेतु सहायता, 5 हजार वर्मी कंपोस्ट के साथ ही कृषि प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देने जैसे प्रावधान शामिल है। इसके अलावा 500 कस्टम हायरिंग सेंटर में ड्रोन जैसी सुविधा उपलब्ध कराना है। इससे जहां एक और पानी की एक एक बूंद सहेजी जा सकेगी और खेती में सिंचाई के पानी की छीजत को कम किया जा सकेगा वहीं वर्मी कंपोस्ट से जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा और ड्रोन जैसी तकनीक हायरिंग आधार पर किसान प्राप्त कर सकेंगे। वित मंत्री दीया कुमारी ने पीएम किसान सम्मान निधि भी 6 हजार से बढ़ाकर 8 हजार करने की घोषणा की हैं वहीं गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 125 रु. प्रति क्विंटल बोनस देने की बात भी कही है। डेयरी के साथ ही पशुपालन को भी उतना ही महत्व दिया गया है। यह नहीं भूलना चाहिए कि एक समय था जब खेती के साथ पशुपालन एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे। हांलाकि कृषि में उपकरणों/यंत्रों के उपयोग के कारण पशुपालन प्रभावित हुआ है पर पशुपालन ही किसान की आर्थिक उन्नती का प्रमुख माध्यम बन सकता है। यही कारण है कि 5 लाख गोपाल क्रेडिट कार्ड जारी करने का प्रावधान करते हुए एक एक लाख रु. का ब्याजमुक्त ऋण देने का प्रस्ताव है। निश्चित रुप से इससे पशुपालन को प्रोत्साहन मिलेगा।
एक बात साफ हो जानी चाहिए कि यदि कोई सरकार खेती किसानी का वास्तविक भला चाहती है तो उसे खेती के क्षेत्र में दी जाने वाली सहायता राशि का उपयोग उन्नत प्रमाणिक बीज उपलब्ध कराने में करने का फैसला करती है तो उससे केवल किसान ही नहीं अपितु देश ओर प्रदेश को समग्र रुप से मिल सकता है। यह साफ हो जाना चाहिए कि कृषि उत्पादन में कमी या बढ़ोतरी अर्थ व्यवस्था की सीधे सीधे प्रभावित करती है। कोरोना काल हमारे सामने उदाहरण है तो रुस यूक्रेन युद्ध, इजराइल हमास युद्ध आदि इसके जीते जागते उदाहरण है। खाद बीज की सहज उपलब्धता के साथ ही यदि किसानों को उनकी पैदावार का पूरा पैसा मिलने लगे तो निश्चित रुप से किसान समृद्ध होंगे और इसका लाभ सामाजिक -आर्थिक विकास में प्राप्त हो सकेगा।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
 
                                                                        
                                                                    