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खुदरा उर्वरक विक्रेता सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम प्रशिक्षण का शुभारम्भ

खुदरा उर्वरक विक्रेता सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम प्रशिक्षण का शुभारम्भ

चित्तौड़गढ़। जिला कलक्टर आलोक रंजन ने शुक्रवार को कृषि विज्ञान केन्द्र, चित्तौड़गढ़ द्वारा आयोजित 15 दिवसीय खुदरा उर्वरक विक्रेता पाठ्यक्रम प्रशिक्षण का शुभारम्भ किया।

इस अवसर पर जिला कलक्टर ने कहा की आज किसान रासायनिक उर्वरकों का खेती में बहुत अधिक उपयोग कर रहा है जिससे मृदा स्वास्थ्य खराब हो रहा है एवं मानव में कैंसर जैसी बीमारियां फैल रही हैं इसलिए रासायनिक उर्वरक एवं दवाइयों का प्रयोग कम करके जैविक खेती को प्रोत्साहन करें।

जिला कलक्टर ने प्रशिक्षणार्थियों से आह्वान किया कि वे सच्ची लगन व निष्ठा अपने व्यवसाय के साथ किसानों को सही समय पर सही सुझाव देकर अप्रत्यक्ष रूप से उनके लिए बदलाव अभिकर्ता के रूप में सहायता करें। उन्होंने सभी खुदरा उर्वरक विक्रेता सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम प्रशिक्षण प्रतिभागियों से कहा कि ज्ञान को सीखने की कोई उम्र नहीं होती है। अतः प्रतिभागियों को कृषि सम्बन्धित नवीनतम साहित्व कृषि विभाग एवं विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के सम्पर्क में रहना चाहिए, ताकि कृषि में हो रहे नवाचारों द्वारा आप लोग किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित कर सकते है। खाद्यान्न, सब्जी एवं फल परिरक्षण, मूल्य संवर्धन कर बाजार में विक्रय कर किसान अपनी आय को बढ़ावा देवें।

प्रशिक्षण समन्वयक डॉ. रतन लाल सोलंकी ने बताया कि इस प्रशिक्षण में जिले की विभिन्न पंचायत समितियों एवं ग्रामीण क्रय विक्रय सहकारी समितियों से कुल 40 प्रशिक्षणार्थि भाग ले रहे है, जिन्हें उर्वरक सर्टिफिकेट कोर्स सम्बन्धी सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक जानकारियां प्रदान की जाएगी।

डॉ. सोलंकी ने सी.बी.आई.एन.डब्ल्यू. कॉन्सेप्ट पर बात करते हुए कस्टमाइज उर्वरक, संतुलित उर्वरक एवं समन्वित उर्वरक प्रबन्धन के विभिन्न बिंदुओं पर प्रकाश डाला और नेनो फर्टिलाईजर एवं जल में घुलनशील उर्वरकों के पर चर्चा की।

उन्होनें कृषि के छः प्रमुख आयामों यथा जमीन, पानी, बीज, उर्वरक, मशीनीकरण, वातावरण एवं किसान के बारे में भी बताया और कहा कि किसान सर्वोपरि है और उसको ध्यान में रखते हुए उर्वरक विक्रेताओं को अपनी तैयारी करनी चाहिए।

इस अवसर पर उप निदेशक ओ.पी. शर्मा ने प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरक उपयोग दक्षता बढ़ाने के उपाय सुझाए तथा टिकाऊ खेती समन्वित कृषि पद्धति की फसल विविधीकरण एवं पौधों के पोषक तत्व, उनके कार्य, कमी के लक्षण तथा कमी की पूर्ति कैसे की जाएं आदि विषयों पर जानकारी देकर उनका ज्ञान वर्धन किया।

संयुक्त निदेशक कृषि विस्तार दिनेश जागा ने बताया कि उर्वरकों का वर्गीकरण, उसके पोषक तत्वों की जानकारी, रासायनिक संरचना, उर्वरक नियंत्रण आदेश (1985) की विस्तृत जानकारी, उर्वरकों का भण्डारण, सूक्ष्म पोषक तत्वों के बारे में जानकारी आदि विषयों पर विस्तृत रूप से जानकारी दी जाएगी।

उप निदेशक उद्यान डॉ. शंकर लाल जाट ने प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरकों के संतुलित उपयोग एवं मृदा परीक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पोषक तत्व प्रबन्धन, समन्वित पोषक तत्व के लाभ, जैविक खेती और उसके लाभ, कार्बनिक खेती आदि के बारे में भी चर्चा की।

प्रशिक्षण सह समन्वयक दीपा इन्दौरिया ने प्रशिक्षण का लाभ किसानों तक पहुंचाने की अपील।

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