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त्यौहारों पर होने वाले दंगे देश की एकता के लिए घातक

त्यौहारों पर होने वाले दंगे देश की एकता के लिए घातक

रामनवमी के जिस त्योहार पर राम-राज्य की संकल्पना याद आती थी, उसी तिथि पर देश सांप्रदायिक झड़पों की भेंट चढ़ रहा है। देश के कई शहरों में भीषण बवाल हुआ है। पश्चिम बंगाल में हिंसक झड़पों की शुरुआत के बाद गुजरात और महाराष्ट्र जैसे भी राज्य भी दंगे की चपेट में आए। राजधानी दिल्ली में भी तनाव देखने को मिला। इन राज्यों में हुए बवाल की शुरुआत मामूली बहस से ही हुई लेकिन अंजाम हिंसक हो गया। बिहार के रोहतास और नालंदा जिले के मुख्यालय क्रमश: सासाराम और बिहार शरीफ में रामनवमी की शोभायात्रा खत्म होने ही वाली थी, तभी दोनों शहर धधक उठे।ऐसा नहीं है कि सिर्फ पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र् , बिहार और दिल्ली में ही स्थितियां तनावपूर्ण रहीं। योगी राज में उत्तर प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही नजारा नजर आया, बस हिंसक झड़प नहीं हुई। लखनऊ और मथुरा जैसे शहरों में भी तनावपूर्ण स्थिति नजर आई।
दरअसल देश में हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी के त्यौहारों का सीजन चल रहा है, कायदे में तो अधिकांश लोगों को कम से कम इस दौर में पूजापाठ इबादत में व्यस्त होना चाहिए था, लोगों के लिए गलत कार्य करने पूर्ण रूप से वर्जित होने चाहिए थे। लेकिन इस वक्त देश की राजधानी दिल्ली से लेकर के देश के अलग-अलग शहरों में रामनवमी व हनुमान जन्मोत्सव के धार्मिक जुलूसों पर पथराव के चलते जबरदस्त ढंग से हंगामा बरपा हुआ है, देश में धर्म पर आधारित राजनीति चंद दिनों में ही अपने अधर्म के चरम पर पहुंच गयी है। हालांकि इन हंगामा बरपाने वाले देशद्रोही लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही भी शासन-प्रशासन के द्वारा लगातार चल रही है, कहीं पर दंगा फसाद में शामिल लोगों के घरों पर सिस्टम बुलडोजर चलवा रहा है, कहीं इन देशद्रोही लोगों पर एनएसए तक लगाई जा रही है। वैसे देखा जाये तो दिलोदिमाग को बुरी तरह से झकझोर देने वाली दंगा फसाद की स्थिति देश में ना जाने क्यों अब आयेदिन बनने लग गयी है, यह स्थिति देश के नियम कायदे, कानून व तरक्की पसंद देशभक्त देशवासियों को बहुत ज्यादा चिंतित करने का कार्य कर रही है। क्योंकि यह देशभक्त लोग तो दिन-रात मेहनत करके देश के विकास को एक नयी तेज रफ्तार देने का कार्य करते हैं, वहीं देश के अंदर छिपे हुए बैठे चंद देशद्रोही अराजक तत्व कभी जाति, कभी धर्म, कभी अमीर, कभी गरीब, कभी शहर, कभी गांव, कभी मोहल्ले, कभी भाषा, कभी वेशभूषा, कभी पहाड़, कभी मैदान, कभी प्रदेश आदि के नाम पर लोगों की बीच मतभेद पैदा करके उनको आपस में लड़वा कर उन्माद फ़ैलाने का कार्य करते हैं। लेकिन सबसे बड़े अफसोस की बात तब होती है जब देश व समाज के हित में आयेदिन मंचों से सार्वजनिक रूप से बड़ी-बड़ी बातें करने वाले पक्ष विपक्ष के चंद राजनेता भी अपने एक क्षणिक राजनीतिक स्वार्थ के लिए इन देशद्रोही अराजक तत्वों को पूरा संरक्षण देने का कार्य करते हैं। आज के समय में सभ्य समाज के लोगों के सामने विचारणीय प्रश्न यह है कि देश में जिस तरह से दिन-प्रतिदिन तेजी के साथ ऐसे हालात बनते जा रहे हैं कि बिना सिर पैर की बातों को लेकर भी एक ही पल में दंगा फसाद शुरू हो जाता है, वह स्थिति देश व समाज हित के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है और उस पर तत्काल लगाम लगाने की आवश्यकता है। आज समय की मांग है कि देश के विकास की तेज गति को अनवरत बरकरार रखने के लिए देशहित में तत्काल जाति-धर्म के नाम पर होने वाले आयेदिनों के हंगामे, दंगा-फसाद, उन्माद, तुष्टिकरण व धार्मिक कट्टरवाद पर शासन व प्रशासन का सख्ती से नियंत्रण करना बेहद आवश्यक है‌।
हाल के कुछ दिनों में घटित या फिर पूर्व में घटित घटनाओं के समय उत्पन्न हालात का निष्पक्ष रूप से आंकलन करें, तो देश में अब वह समय आ गया है कि जब केन्द्र व प्रत्येक राज्यों की सरकारों को अपने वोट बैंक की राजनीति को तत्काल त्याग कर लोगों को देश व समाज के हित में नियम कायदे व कानून का सख्ती से पालन करने के लिए बाध्य करना ही होगा, उनको देश में पूर्ण अनुशासित ढंग से रहना सिखाना ही होगा। वैसे भी देश में अब वह समय आ गया है जब सरकार व सिस्टम को लोगों को प्यार से व पूर्ण सख्ती के साथ जो व्यक्ति जिस भाषा में समझें उसे समझना होगा कि हमारा प्यारा देश संविधान से चलता है ना कि किसी भी जाति या धर्म के धार्मिक ग्रंथ से चलता है, इसलिए जिस व्यक्ति को भी भारत देश में रहना है उसके लिए संविधान के द्वारा तय नियम कायदे कानून व व्यवस्था सर्वोपरि है।
विचारणीय है कि जिस ढंग से धर्म की ओट लेकर के आये दिन धर्म के तथाकथित स्वघोषित ठेकेदार इंसान व इंसानियत के रक्षक की जगह उसके दुश्मन बने हुए हैं, वह अब किसी भी देश के लोगों से छिपा हुआ नहीं है और यह स्थिति विश्व के सभी बुद्धिजीवी लोगों के लिए है । इस समय भारत अपने नीति-निर्माताओं की बेहद कुशल कारगर रणनीति व अपनी अपार संभावनाओं के चलते बहुत तेजी के साथ विकास के पथ पर चलने वाला देश है, जो अपने मेहनतकश निवासियों की मेहनत के बलबूते बहुत जल्द ही विकसित देशों की श्रेणी में शामिल हो सकता है। बशर्ते हमारे देश के हुक्मरान सामप्रदायिक सौहार्द व आपसी भाईचारे की सुरक्षा करके रखें, क्योंकि आजादी के बाद से लेकर आज तक ना जाने कितनी बार छोटी-छोटी बातों का अनेक बार बतंगड़ बनाकर, हमारे देश के दुश्मनों के द्वारा सांप्रदायिक दंगों को अंजाम देकर इंसान व इंसानियत की हत्या कराने का काम लगातार किया गया है, इन दंगा-फसाद की घटनाओं ने देश के विकास में बार-बार अवरोध उत्पन्न किया है। दंगों ने भारत की बेहद गौरवशाली बहुलतावादी संस्कृति को बेहद गहरे जख्म देकर, लोगों के बीच दूरी बनाकर समाज के भाईचारे को छिन्न-भिन्न कर दिया है। देश में बढ़ता धार्मिक उन्माद कट्टरवाद आपसी प्यार-भाईचारे को खत्म करके लोगों के बीच गहरी खाई खोदने का कार्य कर रहा है ।
हमारे देश में जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र आदि जैसे बेहद संकीर्ण आधारों पर कुछ लोगों, समूह व संगठनों ने देशवासियों में सामाजिक, वैचारिक और धार्मिक विषमता बढ़ाने का कार्य अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु बेहद चतुराई के साथ किया है।” सभी धर्मों को पूर्ण स्वतंत्रता मिलने वाले देश भारत में धर्म की आड़ लेकर देश के कुछ अतिवादी संगठन व कुछ लोग अपने-अपने धर्म की श्रेष्ठता का दावा सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत करके एक-दूसरे के धर्म के लोगों को चिढ़ाने का कार्य करते हैं, जिसके चलते यह धर्म के तथाकथित ठेकेदार लोगों के बीच आपसी जहरीली विद्वेषपूर्ण मानसिकता का विकास करके मनमुटाव की बेहद गंभीर स्थिति उत्पन्न कर देते हैं। लोकसभा चुनाव 2019 के बाद से तो हमारे देश में एक अलग तरह के नए राजनीतिक वातावरण का उद्गम हुआ है। जिसमें हम सभी लोगों के धार्मिक आस्था के वो प्रश्न जो कि बहुत नितांत व निजी होते थे, उन प्रश्नों पर अब सार्वजनिक मंच से चर्चा होने लगी है और वो प्रश्न अब राजनेताओं की कृपा से बहुत तेजी से राजनीतिक रंग भी लेने लगे हैं। इस तरह की स्थिति देश के विकास की रफ्तार में अवरोध उत्पन्न करती है और देश व समाज हित में बिल्कुल भी उचित नहीं है।
आज देश के प्रत्येक आम व खास नागरिकों के सामने एक बेहद महत्वपूर्ण सवाल है कि वह देश में धर्म के नाम पर बढ़ते उन्माद, नफरत व धार्मिक कट्टरता को किस तरह से देखते हैं, क्या वो भी इस नफरती हिंसक भीड़ का हिस्सा खुद व अपने बच्चों को बनाना चाहते हैं? आज हम लोगों को शांत मन से विचार करना चाहिए कि दुनिया के किसी भी छोर पर जब धर्म के नाम पर कोई धर्मांध उन्मादी व्यक्ति बदले की आग में झुलस कर किसी दोषी या निर्दोष व्यक्ति की हत्या करता है, तो क्या यह नियम-कानून के साथ-साथ मानवता व सच्चे धर्म के विरुद्ध जघन्य अपराध नहीं है? क्या इस तरह के जघन्य अपराध करने के लिए उसको ईश्वर सख्त सजा नहीं देगा? क्या दुनिया का कोई भी सच्चा धर्म किसी इंसान की हत्या करने की अनुमति देता है? क्या इस तरह की जघन्य घटना को अंजाम देकर किसी सच्चे धार्मिक व्यक्ति को संतुष्टि मिल सकती है? वैसे दुनिया के किसी भी महान सच्चे धर्म में हिंसा या धर्म के जबरन विस्तार को मान्यता नहीं है लेकिन फिर भी ना जाने क्यों दुनिया में बार-बार ऐसा होता है। जबकि वास्तव में तो धर्म मानवतावादी होता है और अनुशासन, प्रेम व सद्भाव इसका मूल आधार होता है। लेकिन आज सोचने वाली बात यह है कि इन बातों पर आखिर अमल कितने लोग व धर्म के ठेकेदार करते हैं। आज हम लोगों को यह ध्यान रखना होगा कि सत्ता हासिल करने के लालच में देश के चंद राजनेताओं के द्वारा आम देशवासियों के बीच में धर्म के कुछ ठेकेदारों के सहयोग से लोगों को बरगला कर धर्म के नाम पर नफरत की कभी ना टूटने वाली मजबूत दीवार खड़ी करने का लगातार बेहद घातक शर्मनाक प्रयास जारी है। जिस साजिश को हम लोगों को समय रहते हर हाल में देश व समाज के हित में नाकाम करना होगा।
आज भारत ही नहीं बल्कि विश्व समुदाय के सामने चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि वह किस तरह से तेजी से बढ़ते हुए धार्मिक उन्माद व कट्टरवाद की स्थिति से निपटने का कार्य करें और मानवता की दुश्मन बन चुकी इस बेहद गम्भीर चुनौती का आखिर किस तरह से सामना करें। दुनिया में किसी भी धर्म की आड़ लेकर हंगामा बरपाने वाले किसी संगठन के आतंकी रवैये से क्या किसी सभ्य इंसान को यह महसूस होता है कि वह और उसका परिवार अब पूर्ण रूप से सुरक्षित है या उसके द्वारा चलाये जा रहे अघोषित युद्ध से क्या किसी धर्म की विजय हुई? बेहद सीधी सच्ची व कड़वी बात यह है कि कोई भी धर्मावलंबी कभी किसी भी व्यक्ति की हत्या से कभी भी उल्लासित नहीं होता है, बल्कि सच्चा धार्मिक मन ऐसी मानवता विरोधी घटनाओं से बहुत ज्यादा आहत व परेशान होता है। हमारी आस्था के अनुसार सभी धर्मों का पूजा अर्चना करने का तरीका अलग है, स्थल अलग-अलग हैं, नियम-कायदे कानून व धार्मिक तरीके अलग हैं, लेकिन फिर भी सभी धर्म इंसान व इंसानियत की रक्षा का संदेश देते हैं, तो फिर धर्म की आड़ लेकर देश में आये दिन यह हंगामा और मारकाट क्यों! लेकिन अब हमारे देश के नीति-निर्माताओं को यह समझना होगा कि वो बिना किसी भेदभाव के राजनीतिक स्वार्थ छोड़कर, देश व समाज के हित में उन्मादियों व कट्टरपंथियों की भीड़ से सख्ती के साथ निपटने का काम करें और उन सभी अज्ञानी बने लोगों को धर्म की सच्ची परिभाषा व सिद्धांत समझाने का काम करें। तब ही हमारे देश में अमन-चैन, प्यार मोहब्बत व भाईचारे के साथ शांति कायम रहेगी और देश विकास के नये आयाम स्थापित करके विश्व गुरु बनने की राह पर तेजी से अग्रसर होगा।


-अशोक भाटिया

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