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बंगाल में बज उठी है चुनावी महासंग्राम की रणभेरी

बंगाल में बज उठी है चुनावी महासंग्राम की रणभेरी

अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव की रणभेरी बज उठी है। चुनाव मार्च-अप्रैल 2026 के आसपास कराए जाने की संभावना है, हालांकि आधिकारिक तारीख की फिलहाल घोषणा नहीं हुई है। इसी बीच तृणमूल कांग्रेस से निलंबित नेता और बाबरी मस्जिद की नींव रखने वाले हुमायूं कबीर ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में बड़ा दांव खेलते हुए जनता उन्नयन पार्टी नामक नई पार्टी बनाकर राज्य की सभी 294 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। हुमायूं कबीर का यह फैसला ममता की मुश्किलें बढ़ा सकता है। अब तक मुस्लिम मत ममता की पार्टी को मिलते रहे है। हुमायूँ कबीर इनमें दो फाड़ करने में सफल होते है तो यह ममता के लिए अपनी गद्दी बचाना बड़ी चुनौती होंगी।
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के बंगाल दौरे के बाद भाजपा ने आक्रामक रूख अख्तियार कर लिया है। मोदी ने बंगाल में महा जंगलराज को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया है। उन्होंने बिहार चुनाव परिणामों का हवाला देते हुए बंगाल में भाजपा की जीत की उम्मीद जताई। मोदी ने कहा, जिस प्रकार बिहार की जनता ने विकास के लिए जंगलराज को एक स्वर से नकार दिया है, उसी प्रकार अब बंगाल की बारी है।
निश्चय ही यह चुनाव भाजपा के लिए करो या मरो साबित होंगे, इसमें कोई संशय नहीं है। बिहार चुनाव जीतने के बाद भाजपा के हौसले बुलंदी पर है। इसी के साथ विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं वैसे वैसे भाजपा और टीएमसी के बीच सियासी टकराव बढ़ता ही जा रहा हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनाव की सियासी जंग फतह करने के लिए अपना एजेंडा सेट करना शुरू दिया है तो टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी अपनी सत्ता को बचाए रखनी की कवायद में है। देश की सत्ता पर भाजपा तीसरी बार काबिज है, लेकिन बंगाल में अभी तक कमल नहीं खिल सका है। नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा को बंगाल में उम्मीद की किरण दिखाई दी है, जिसके चलते 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी के सियासी दुर्ग में भाजपा अपनी सियासी बेस को बनाने की एक्सरसाइज शुरू कर दी है। बंगाल में एनडीए का मतलब भाजपा और इंडिया गठबंधन का अर्थ टीएमसी है। लोकसभा और विधान सभा में कांग्रेस और कम्युनिष्टों का सूपड़ा साफ़ हो चुका है। ममता इंडिया में जरूर है मगर बंगाल के चुनाव में किसी भी सहयोगी पार्टी को पास फटकने नहीं दे रही है। एनडीए में भाजपा को छोड़कर किसी सहयोगी दल का अस्तित्व नहीं है। ऐसे में भाजपा और टीएमसी में सीधा मुकाबला होगा। ममता बनर्जी अपनी सत्ता बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है तो भाजपा ममता की चालों को धराशाही करने के लिए कमर कस ली है। बंगाल का चुनाव बेहद दिलचस्प और धूम धड़ाके वाला होगा और पूरे देश की निगाह इस पर टिकी होंगी।
बंगाल की राजनीति और हिंसा का गहरा सम्बन्ध है। यह गहन शोध का विषय है की आखिर बंगाल में जब भी चुनाव आते हैं तब यहाँ क्यों खून बहता है। कम्युनिष्ट नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने बंगाल में वर्ष 1967 में नक्सलबाड़ी से हिंसक राजनीतिक विरोध की शुरुआत की थी। तत्कालीन सरकार ने हिंसक हो चुके नक्सलबाड़ी आंदोलन पर पुलिस बल का प्रयोग करके उसे कुचलने का प्रयास किया और उसके बाद कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच शुरू हुई राजनीतिक हिंसा की बेहद खराब परंपरा बंगाल में आज और ज्यादा वीभत्स रूप में बनी हुई है। एक लम्बे वामपंथी शासन से यह रक्तरंजित शुरुआत हुई जो ममता बनर्जी शासन में लगातार जारी है। यहाँ पिछले पचास वर्षों में शासन सत्ता जरूर बदली मगर हिंसा कभी नहीं थमी जिसके फलस्वरूप हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और यह खूनी खेल आज भी बदस्तूर जारी है।
बंगाल में स्वतंत्र और निष्पक्ष कराना चुनाव आयोग के सामने बड़ी चुनौती है। यहाँ रक्तरंजित चुनाव से इंकार नहीं किया जा सकता। प्रमुख दलों ने अभी से बड़ी बड़ी रैलियों का आगाज कर प्रचार शरू कर दिया है। पार्टियों में रोज ही मारकाट होती है। एक दूसरे पर हमले हो रहे है। बीजेपी जिस तरह से ममता बनर्जी को हिंदुत्व के मुद्दे पर घेरने में जुटी है, उसके जवाब में ममता बनर्जी बंगाल की अस्मिता का मुद्दा बना सकती है। 2021 के विधानसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी ने बीजेपी के हिंदुत्व पॉलिटिक्स के सामने मां, माटी और मानुष के भरोसे सियासी जंग फतह करने में कामयाब रहीं। बीजेपी 2026 के चुनाव में जिस तरह हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने में जुटी है, उसके चलते माना जा रहा है कि ममता बनर्जी फिर से बंगाल अस्मिता वाले हथियार का इस्तेमाल कर सकती हैं।


-बाल मुकुन्द ओझा

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