अनूठी संवाद शैली देवर्षि नारद की पहचान थी
देवर्षि नारद लोक कल्याणकारी पत्रकारिता के पथ प्रदर्शक और पितामह के रूप में सर्व विख्यात
है । नारद जयंती देशभर में ज्येष्ठ महीने के कृष्ण की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। इस
साल नारद जयंती 7 मई को है। शास्त्रों के अनुसार नारद को ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से
एक माना गया है। इसी वजह से उन्हें देवर्षि भी कहा जाता है। देवर्षि नारद को आदि काल का
पत्रकार इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनमें पत्रकारिता के सारे गुण हैं। जो व्यक्ति अपनी बात
बिना लाग लापलपेट, निडरता और साहस से कहे वही सफल पत्रकार है। वे एक स्थान से दूसरे
का भ्रमण कर लोगों को सूचना देकर सचेत करते थे। लोक मंगल की कामना से जन जन में
अपनी संवाद शैली एवं संपर्क कला से अलख जगाने वाले आदि पत्रकार नारद का संचार दर्शन
भारतीय पत्रकारिता को लोक कल्याण की राह दिखा सकता है। नारद ने लोक कल्याण की
भावना से अपने कार्यों को अंजाम दिया था इसीलिए उन्हें लोक कल्याण का रहनुमा भी कहा
जाता है। नारद ने समाज की भलाई के लिए अपने सूचना श्रोतों का उपयोग किया था।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार नारद को ईश्वर का दूत माना जाता है। अनेकों टीवी सिरियल में उनका
व्यक्तित्व एक पत्रकार एवं सूचनाओं के गजब के विशेषज्ञ के रूप में प्रकट किया गया है। किसी संवाददाता
की भांति उनका घटनास्थल पर नारायण नारायण के उद्घोष के साथ अवतरित होना और खोजबीन के
तथ्यों सहित अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वहन करना वर्तमान टीवी बहसों के माफिक कहा जा सकता
है। आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ऐसा लगता है कहीं भटक गया है मगर नारद का चरित्र अपनी विषय वस्तु पर
अडिग रह कर समाज और देश का मार्गदर्शन करता है। उन्हें दुनिया का प्रथम संदेशवाहक माना जाता है।
संचार की दुनिया में नारद को माननेवाले उन्हें बेहद श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ पूजते है। आज के शासकों की
तरह नारद भी भगवान विष्णु के साथ उनके विमान में यात्रा करते देखे जाते थे। ऐसा विवरण ऋग्वेद में
मिलता है। वह मनुष्य, देवताओं एवं राक्षसों से सम्बंधित सभी घटनाओं से अवगत रहते हैं। नारद का
व्यक्तित्व वाकई बेजोड़ है। उनकी तर्कशक्ति विलक्षण है। पुराणों एवं वेदों के महाज्ञाता और महान संत के
रूप में वे सर्वविख्यात है।
देवर्षि नारद दुनिया के प्रथम पत्रकार थे जिन्होंने विभिन्न लोकों में परिक्रमा करते हुए संवादों के आदान-
प्रदान द्वारा पत्रकारिता को प्रारंभ किया। इस प्रकार देवर्षि को प्रथम पत्रकार की मान्यता हासिल हुई।
ऐतिहासिक ग्रंथों से मिली जानकारी के अनुसार नारद का तोड़ने में नहीं अपितु जोड़ने में ढृढ़ विश्वास था।
उन्होंने सृष्टि के विकास के बहुआयामी प्रयास किये और अपने संवादों के माध्यम से पत्रकारिता की नीवं
रखी। नारद को मानव से लेकर दैत्य और देवताओं का समान रूप से विश्वास हासिल था और यही कारण
था कि अपनी विश्वसनीयता के बूते उन्होंने सभी के मनों पर विजय प्राप्त की और पत्रकारिता धर्म को
निभाया। नारद अपनी बात ढृढ़ता से रखते थे। नारदजी का कार्य समाजहित मे होता था। उनका कार्य
रामायण, महाभारत काल मे एकदम सकारात्मक है। नारदजी ने अत्याधिक जटिल समस्या का समाधान
बहुत ही बुद्धिमतापूर्ण किया। हम उनसे बहुत कुछ ग्रहण कर सकते है। किसी भी प्रकार की शंका होने पर वे
भगवान विष्णु से अवश्य परामर्श लेते थे। शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से
एक हैं। उन्होंने कठिन तपस्या से देवर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक
माने जाते हैं। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक कल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने सर्वप्रथम यह तय किया था कि सम्पूर्ण देश में नारद जयंती पत्रकार दिवस के
रूप में आयोजित कर नारद के कृतित्व और व्यक्तित्व को वृहद रूप से रेखांकित कर जन जन तक पहुँचाया
जावे। संघ के इस निर्णय की पालना में उसके अनुषांगिक संगठन विश्व संवाद केंद्र की और से हर साल
नारद जयंती का आयोजन कर पत्रकारों को सम्मानित किया जाता है। देश की जनता को राष्ट्रीय स्वयं
सेवक संघ और विश्व संवाद केंद्र का आभारी होना चाहिए जिन्होनें नारद जी और पत्रकारिता के बीच संबंध
स्थापित कर यह विषय समाज तक पहुचाया।
- बाल मुकुन्द ओझा