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इनके दम से नखले-आज़ादी हरा हो जाएगा

इनके दम से नखले-आज़ादी हरा हो जाएगा

राख का हर एक कण, मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं, जो जेल में भी आजाद है।' ऐसे ही क्रांतिकारी विचार जब हम पढ़ते हैं तो हमें बरबस ही याद आ जाती है आजादी के दीवानों की, आजादी के परवानों की। जी हां, आजादी के लिए अपनी जान, अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसते हैं। सरदार भगत सिंह और उनके देश के लिए महान बलिदान ने देश की आम जनता में आजादी की जो तड़प पैदा की, उन्होंने देश के जन जन में देशभक्ति की जो भावना और ललक पैदा की, वह आज भी लोगों के ह्रदय के तारों को झंकृत करती है। सच तो यह है कि भगतसिंह को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। वो बहुत से क्रन्तिकारी संगठनों के साथ मिले और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया था। भगत सिंह जी की मृत्यु 23 वर्ष की आयु में हुई जब उन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर चढ़ा दिया। संस्कृत में हितोपदेश में एक श्लोक आता है -' सम्पदि यस्य न हर्षो विपदि विषादो रणे न भीरुत्वम्। तं भुवन त्रयतिलकं जनयति जननी सुतं विरलम्।।" इस श्लोक का मतलब यह है कि जिसको सुख सम्पत्ति में प्रसन्नता न हो, संकट विपत्ति में दु:ख न हो, युद्ध में भय अथवा कायरता न हो, तीनों लोकों में महान् ऐसे किसी पुत्र को माता कभी-कभी ही जन्म देती है। भगतसिंह जी ऐसे ही सपूत थे, जिन्होंने भारत माता को,इस भारत देश को गौरवान्वित किया। विकीपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार भगतसिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को लायलपुर, पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था। भगतसिंह महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर भगतसिंह ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया था। पहले लाहौर में बर्नी सैंडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की थी। जानकारी देना चाहूंगा कि असेम्बली में बम फेंककर भी भगतसिंह ने भागने से मना कर दिया था, जिसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने इन्हें 23 मार्च 1931 को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी दे दी थी।कहा जाता है कि जब भगत सिंह को फांसी दी जा रही थी, तो भी उनके चेहरे पर मुस्कान थी, सर और सीना गर्व से ऊपर उठा हुआ था। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि भगतसिंह से नीचे की अदालत में जब यह पूछा गया था कि क्रांति से उन लोगों का क्या मतलब है ? तो इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने यह कहा था कि क्रांति के लिए ख़ूनी लड़ाइयां अनिवार्य नहीं है और न ही उसमें व्यक्तिगत प्रतिहिंसा के लिए कोई स्थान है। वह बम और पिस्तौल का संप्रदाय नहीं है, 'क्रांति से हमारा अभिप्राय है अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज-व्यवस्था में आमूल परिवर्तन।' दूसरे शब्दों में कहें तो भगत सिंह के अनुसार क्रांति में सदैव संघर्ष हो यह जरूरी नहीं है, क्रांति बम और पिस्तौल की राह नहीं है।बहरहाल, जानकारी देना चाहूंगा कि भगत सिंह ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए किसानों और मजदूरों को प्रोत्साहित करने के लिए साल 1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। मैं नास्तिक क्यों हूं उनकी प्रसिद्ध रचना है जो उन्होंने जेल में लिखी थी और यह अंग्रेजी भाषा में लिखी गई थी। बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी होगी कि वे विवाह नहीं करना चाहते थे और उन्होंने यह कहते हुए अपना घर छोड़ दिया था कि 'अगर मेरा विवाह गुलाम भारत में हुआ, तो मेरी वधु केवल मृत्यु होगी।' इसके बाद वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए थे। जानकारी देना चाहूंगा कि उन्होंने सुखदेव के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की योजना बनाई और लाहौर में पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने की साजिश रची। हालांकि पहचानने में गलती हो जाने के कारण उन्होंने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स को गोली मार दी थी।ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के करीब एक साल के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंके और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए। साथ ही इस बार उन्होंने खुद को गिरफ्तार हो जाने दिया। सांडर्स मामले में उन्हें फांसी की सजा हुई न कि असेंबली में बम फेंकने के मामले में। जानकारी मिलती है कि
सिख होने के बावजूद उन्होंने दाढ़ी और बाल कटवा दिए थे ताकि अंग्रेज उन्हें पकड़ न सकें।
जेल में भेदभाव के खिलाफ उन्होंने 116 दिनों की भूख हड़ताल की थी,जो एक रिकॉर्ड है।
जानकारी देना चाहूंगा कि उनकी फांसी की सजा को 24 मार्च 1931 से 11 घंटे घटाकर 23 मार्च 1931 को शाम 7:30 बजे कर दिया गया था और उन्हें फांसी की सजा सुनाने वाला न्यायाधीश का नाम जी.सी. हिल्टन था।ऐसा कहा जाता है कि कोई भी मजिस्ट्रेट उनकी फांसी के समय उपस्थित रहने को तैयार नहीं था।उनकी मौत के असली वारंट की अवधि समाप्त होने के बाद एक जज ने वारंट पर हस्ताक्षर किए और फांसी के समय तक उपस्थित रहे।भगत सिंह हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए और "ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो" यह उनके द्वारा ब्रिटिशों के खिलाफ अंतिम नारा था। भगत सिंह कहते हैं बुराई इसलिए नहीं बढ़ रही है कि बुरे लोग बढ़ गए हैं, बल्कि बुराई इसलिए बढ़ रही है क्योंकि बुराई सहन करने वाले लोग बढ़ गए हैं। भगत सिंह कहते हैं मैं एक इंसान हूं और जो भी चीजे इंसानियत पर प्रभाव डालती है मुझे उनसे फर्क पड़ता है। भगतसिंह जी कहा करते थे कि 'मैं इस बात पर ज़ोर देता हूं कि मैं महत्वाकांक्षा, आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूं। पर मैं ज़रूरत पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूं और वही सच्चा बलिदान है।' असेंबली में बम गिराए जाने के बाद उन्होंने कहा था कि 'अगर बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत ज़ोरदार होना होगा।' उन्होंने कहा था कि 'जब हमने बम (असेंबली में) गिराया था तो हमारा मकसद किसी को मारना नहीं था। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था।' भगतसिंह जी के अनुसार दुनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है। उनका यह मानना था कि 'गरीबी एक अभिशाप है, यह एक सजा है।' अंत में किसी के शब्दों में यही कहूंगा कि -'बाएसे-नाज़े-वतन हैं दत्त, भगत सिंह और दास,इनके दम से नखले-आज़ादी हरा हो जाएगा।'
सुनील कुमार महला

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