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हाईकोर्ट ने कहा-ऐसी लिव-इन रिलेशनशिप अनैतिक और अपराध, जानें-लिव-इन रिश्तों की कानूनी अड़चनें
नई दिल्ली . हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि केवल बालिग कपल ही लिव-इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं।
किसी भी लिव-इन पार्टनर का नाबालिग होना अनैतिक, गैरकानूनी और अपराध है। ऐसी लिव इन रिलेशनशिप को प्रोटेक्शन नहीं दिया जा सकता।
2013 में इंद्रा शर्मा बनाम वीकेवी शर्मा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप को भले ही हमारे समाज ने मान्यता न दी हो, मगर यह न तो अपराध है और न ही पाप।
शादी करने या न करने और सेक्शुअल रिलेशनशिप बनाने का फैसला पूरी तरह से निजी मामला है।
ऐसे में लिव-इन की चुनौतियों के बारे में दिल्ली में एडवोकेट अनिल सिंह श्रीनेत कानूनी बारीकियां आसान भाषा में बता रहे हैं।
अनिल सिंह श्रीनेत बताते हैं कि 2003 में ‘मलिमथ कमेटी’ के सुझावों के बाद लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही महिला को पत्नी जैसा दर्जा दिया गया। इसमें यह गारंटी दी गई कि अगर कोई महिला खुद सक्षम नहीं है तो उसकी आर्थिक जरूरतों को उसका लिव-इन पार्टनर पूरा करेगा। इसके अलावा, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में भी बदलाव कर कहा गया कि अगर कोई महिला शादीशुदा है या लिव-इन रिलेशनशिप में है तो उसके माता-पिता की प्रॉपर्टी में उसका जन्मजात अधिकार है।
एडवोकेट अनिल सिंह बताते हैं कि 2010 से पहले लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे अवैध माने जाते थे। मगर, सुप्रीम कोर्ट ने भारत बनाम विजय रंगनाथन के मामले में स्पष्ट किया कि लिव इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे जायज संतान हैं और उनका पैतृक संपत्ति पर भी अधिकार बनता है। भले ही हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 सीधे तौर पर ऐसे बच्चों को वैध न माने। सर्वोच्च अदालते ने उन्हें माता-पिता का कानूनी वारिस माना है और माता-पिता दोनों की संपत्ति में हक भी दिया।
 
                                                                        
                                                                    