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युवा किसी भी देश का भविष्य होता हैं, लेकिन हमारा यह भविष्य नशे के समंदर में डूब रहा है।
बड़ी संख्या में युवा नशे के दलदल में धंसते जा रहे हैं जहां बाहर निकल पाना लगभग
नामुमकिन है। दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश भारत है। युवा नशे के मकड़जाल में
फंसकर बर्बादी के कगार पर पहुंच रहे हैं। इससे उनकी सेहत तो खराब हो ही रही है साथ ही
उनका सामाजिक स्तर भी गिरता जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो नशे का सामान चाय
पान की थडियों, मेडिकल स्टोरों और शिक्षण संस्थाओं के आसपास आसानी से उपलब्ध हो जाता
है। सुनसान रास्ते व खंडहर इमारतें नशा करने वाले बच्चों व युवाओं के विशेष अड्डे हैं।
नशाखोरी की आदत 12 से 20 साल तक के युवाओं में अधिक देखने को मिल रही है। इससे
आने वाली पीढ़ी के भविष्य पर संकटों के बादल मंडराने लगे हैं। कभी चोरी छिपे बिकने वाले
नशे का सामान आज धड़ल्ले से बिक रहा है। नशा मनुष्य को अपराध की ओर ले जाता है जो
शांतिपूर्ण समाज के लिए अभिशाप का जहर है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि युवाओं में नशे
के बढ़ते चलन के पीछे आधुनिकता की चकाचौंध भरी बदलती जीवन शैली, परिवार से विभिन्न
प्रकार के दबाव, परिवारिक झगड़े, इन्टरनेट की अत्यधिक लत, एकाकी जीवन, परिवार से दूर
रहने, पारिवारिक कलह जैसे अनेक कारण हो सकते हैं।
चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन की एक रिपोर्ट अत्यधिक डरावनी है। इस फाउंडेशन का एक सर्वे
बताता है कि देश में नशाखोरी करने वाले 65 प्रतिशत लोगों की उम्र 18 वर्ष से भी कम है।
संस्था का यह भी कहना है कि इसमें युवाओं की हिस्सेदारी निरंतर बढ़ती जा रही है। युवा वर्ग
नशे की चपेट में है। इनका असर बच्चों पर भी पड़ रहा है। इन पर नशा न सिर्फ शारीरिक
बल्कि मानसिक दुष्प्रभाव डाल रहा है। नशे की पूर्ति के लिए अपराध से भी वह हिचक नहीं रहे
हैं। थिंक चेंज नामक एक स्वतंत्र संस्था की एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कोरोना के
बाद देश में नशीले पदार्थों की खपत तेजी से बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है नशे की यह प्रवृत्ति
देश की तरुणाई तक पहुँच गई है जिसके खतरनाक परिणामों से देश को जूझना पड़ेगा। नशे का
कारोबार देश में 15 लाख करोड़ को पार कार चुका है। मिडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आये दिन न
सिर्फ लोग गांजा-चरस-अफीम-सुलेशन-ड्रग्स, कोरेक्स और नशीली इंजेक्शन के आदि हो रहे हैं बल्कि इनके
सेवन से लोग मौत के शिकार भी हो रहे हैं। नशा करने से लिवर, किडनी और फेफड़े खराब हो जाते हैं।
डिप्रेशन, मानसिक अस्थिरता, फोकस और कंसन्ट्रेशन लॉस, भ्रम की बीमारी, आत्यहत्या करने का खतरा
और इन जैसी कई बीमारियों के होने का खतरा होता है। युवाओं में नशे की प्रवृत्ति कुछ वर्षों से निरंतर बढ़
रही है। कुछ में तो नशे की जरूरत
भारत में पिछले तीन वर्षो से नशे का कारोबार पांच गुना तेजी से बढ़ रहा है। मुंबई या
मायानगरी में यह उससे भी कहीं ज्यादा तेज गति से बढ़ रहा है। भारतीय प्रबंधन संस्थान
रोहतक की तरफ से कराए गए एक सर्वे में पता चला है कि मादक पदार्थो का लगभग 84
प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान की तरफ से आता है। पाकिस्तान की सीमा से सटे राजस्थान और
पंजाब के साथ ही मुंबई उसका सबसे पहला लक्ष्य होता है। नशे के अवैध कारोबार को रोकने के लिए
जरूरी है की सरकार के साथ समाज जागरूक हो। यह अनेक सामाजिक, शारीरिक और आर्थिक बुराइयों
और बीमारियों की जड़ है। इससे दूर रहना समाज और देश के हित में है। इसके लिए सामूहिक प्रयासों की
जरुरत है। हमारा समाज तभी स्वस्थ होगा जब हम इन बुराइयों से अपने को दूर कर लेंगे। जब तक आप
खुद नहीं चाहेंगे, कोई और आपका नशा नहीं छुड़ा पाएगा। सबसे पहले मन में ठान लें कि आप नशा छोड़ना
चाहते हैं। फिर जो भी नशा कर रहे है उसकी तरफ देखे नहीं। अपने शरीर पर हो रहे शारीरिक नुक्सान का
अनुमान करे। अपने परिवार और बच्चों के भविष्य को देखें। मन कड़ा करें और नशे को छोड़ दे।
 
                                                                        
                                                                    