विकास बनाम पर्यावरण
इन दिनों पूरे उत्तर भारत में भारी बारिश से तबाही मची हुई है। जगह जगह जलभराव हो गया है। निचले इलाकों में पानी भर गया है और वे जलमग्न हो गए हैं। बहुत सी नदियां नाले उफान पर हैं। बहुत से स्थानों पर मार्ग अवरूद्ध हो गये हैं तो कहीं पर सड़कें और मकानों, दुकानों तक को नुकसान पहुंचा है। भारी बारिश के कारण जन जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।भारतीय मौसम विभाग ने, 11 जुलाई को जब यह आर्टिकल लिखा जा रहा है तब व 12 जुलाई को भी देश के की राज्यों में बारिश की चेतावनी जारी की है। मौसम विभाग द्वारा आरेंज और यलो अलर्ट भी जारी किया गया है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, मेघालय, सिक्किम में बारिश को लेकर ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है।ओडिशा, आंध्र पदेश, मणिपुर ,नगालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा, गुजरात, गोवा, राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक और केरल में भी भारी बारिश को लेकर येलो अलर्ट जारी किया गया है।बिहार, असम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में भारी बारिश का पूर्वानुमान है। यहां तक कि पंजाब के पटियाला में भी लगातार बारिश से नदियां उफान पर हैं। चंडीगढ़, अंबाला में भी हालत बहुत बुरे हैं। देश में बहुत से स्थानों पर तो यह भी पता नहीं चल रहा है कि सड़कें या रास्ते हैं भी या नहीं। घरों, दुकानों, अपार्टमेंट, बस्तियों में पानी भर चुका है। कहीं पर कारें बह गई हैं तो कहीं पर वाहन पानी में फंसे हैं। राजस्थान के राजसमंद में एक कार को हाल में ही क्रेन से रेस्क्यू कर बचाया गया। हाल फिलहाल झारखंड, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, गोवा में भी भारी बारिश की संभावना बताई जा रही है। तेरह जुलाई को उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड में भारी बारिश होने का अनुमान है। बिहार, झारखंड और ओडिशा में भी हल्की से तेज बारिश की संभावना जताई गई है।इस वक्त दिल्ली, पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू, उत्तराखंड, यूपी के कई इलाकों में बारिश ने कहर बरपाया हुआ है। हमने देखा कि दिल्ली में तो एमसीडी और एमसीडी की मान्यता प्राप्त सभी स्कूल भी बंद रहे।भारी बारिश के बाद दिल्ली में यमुना नदी का जल स्तर भी बढ़ रहा है। कुल मिलाकर,मौसम उत्पात मचा रहा है। हिमाचल प्रदेश में तो आपदाग्रस्त तस्वीर बनी हुई है। उत्तराखंड में कई स्थानों पर भू-स्खलन हुआ है तो भूस्खलन, पहाड़ दरकने से रास्ते तक अवरूद्ध हुए हैं। कुछ समय पहले धारचूला में बादल फट गया था और वहां रेस्क्यू टीम सहित सैकड़ों लोग फंस गए। दिल्ली पानी पानी हो गई है और यमुना खतरे के निशान पर बह रही है। कुल मिलाकर हम यह बात कह सकते हैं कि इस समय पूरा उत्तर भारत भारी बारिश और बाढ़ से बेहाल है। सच तो यह है कि दिल्ली-नोएडा से लेकर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश से भयावह तस्वीरें देखने को मिल रही हैं। हाल ही में राजधानी के कई इलाकों में तो घुटनों तक पानी चढ़ गया। लोगों को सड़कों, रास्तों पर चलने तक में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।41 साल में पहली बार 24 घंटे में इतनी बारिश हुई है कि एनसीआर का पूरा सिस्टम ही ठप्प सा हो गया। हिमाचल प्रदेश से जो तस्वीरें सामने आ रही हैं वह तो बहुत भयानक ही कही जा सकती हैं। भूस्खलन, बाढ़, बारिश से हिमाचल प्रदेश बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। मीडिया के हवाले से पता चला है कि तेज हवाओं के साथ मॉनसूनी बारिश ने 60 से अधिक जानें ले ली हैं। हिमाचल प्रदेश के मंडी और मनाली में ब्यास नदी का रौद्र रूप देखने को मिला। हिमाचल में आठ सौ से अधिक सड़कें बंद हो गई हैं। शिमला में बारिश ने खूब कहर बरपाया है। कूल्लू में एक वाहन के खाई में गिरने से भी चार लोग मारे गए हैं। सड़क हादसों में लगभग दो दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है। भूस्खलन और बाढ़ में लोग लापता भी बताए जा रहे हैं। पशु पक्षियों को ही काफी नुकसान पहुंचा है। एक प्रसिद्ध मंदिर भी डूब गया बताया जा रहा है। सच तो यह है कि पिछले तीन दिनों के भीतर नॉर्थ इंडिया में जल प्रलय की तस्वीरों ने वर्ष 2013 में आई केदारनाथ त्रासदी की डरावनी यादें ताजा कर दी हैं। मौसम के जानकारों का यह कहना है कि मानसूनी हवाओं और पश्चिमी विक्षोभ के एक साथ आने से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। वर्ष 2013 की उत्तराखंड आपदा के बाद के समय भी ऐसे ही दो सिस्टम्स का संगम हुआ था, जिसने बहुत से लोगों की जानें ले ली थीं। दस साल बाद भी केदारनाथ पूरी तरह से उबर नहीं पाया है। आज अल-नीनो के कारण मौसम व जलवायु में लगातार परिवर्तन आ रहे हैं। अधिक कार्बन उत्सर्जन व पर्यावरण प्रदूषण से हरित गृह गैसों में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही हैं। ग्लेशियर तक पिघलने लगे हैं।पिछले कुछ दिनों में उत्तर भारत में दो वेदर सिस्टम एक्टिव रहे। मौसम विभाग के अनुसार पश्चिमी विक्षोभ के साथ राजस्थान से उत्तरी अरब सागर तक कम वायुमंडलीय दबाव का एक लंबा क्षेत्र बना हुआ था और उसी समय खतरनाक मॉनसूनी परिस्थितियों के चलते बंगाल की खाड़ी से आ रही हवाएं नॉर्थ की तरफ आगे बढ़ीं। इन्हीं दोनों का आपस में मिलन हुआ और बारिश व बाढ़ की स्थितियां देखने को मिलीं। अभी कुछ समय ही गुजरा है कि हमने बिपरजॉय तूफान का खतरनाक प्रभाव भी देखा, लेकिन स्थितियों पर समय रहते काबू पा लिया गया। पूर्व तैयारियां काम आईं। विभिन्न तटीय क्षेत्रों और निचले इलाकों से लोगों को समय रहते सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। लेकिन हमें इस बात को सदैव अपने जेहन में रखना चाहिए कि हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसमी आपदाएं लगातार बढ़ी हैं। जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं और यही कारण है कि विपदाएं हमारा पीछा नहीं छोड़ रही हैं। दरअसल, प्राकृतिक आपदाएं देखा जाए तो मानव की ही देन कहीं जा सकती हैं। आज मानव लगातार पहाड़ों को काट रहा है, खनन किया जा रहा है। विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। सड़कें,पुल , बांध व सुरंगों को बनाया जा रहा है। कंक्रीट के जंगल के जंगल खड़े किए जा रहे हैं और प्रकृति को लगातार मानव चैलेंज दे रहा है। प्राकृतिक व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ को ठीक नहीं कहा जा सकता। विकास के नाम पर प्रकृति के संसाधनों का असीमित दोहन करना क्या जायज ठहराया जा सकता है ? कदापि नहीं। आज पहले की तरह न तो चरागाह बचे हैं और न ही वन क्षेत्र। मानव अपने स्वार्थों और लालच को पूर्ण करने के लिए प्रकृति से लगातार छेड़छाड़ कर रहा है। दरअसल, विकास भी बहुत जरूरी है लेकिन विकास के साथ ही मानव को प्रकृति का भी खास ख्याल रखना होगा। अन्यथा प्रकृति की मार किसी न किसी रूप में मानव को झेलनी ही पड़ेगी। ऐसा भी नहीं है कि मानव अपनी अंधाधुंध गतिविधियों पर अंकुश नहीं लगा सकता है अथवा उनको नियंत्रित नहीं कर सकता है। प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर सबकुछ किया जा सकता है। आप कनाडा को देखिए वहां विकास के लिए पेड़ों को जल्दी से काटा नहीं जाता है। ऐसी व्यवस्थाएं बनाई जाती हैं कि विकास भी हो और धरती के कीमती संसाधन भी बनें रहें। आज देश में बाढ़ और बारिश से करोड़ों रुपए का नुक़सान हो चुका है, बहुत से पशु पक्षियों, यहां तक कि बहुत सी जन हानियां हुई है। आज जरूरत इस बात की है कि हम प्रकृति के इशारों,उसके संकेतों को समझें और प्रकृति के साथ ताल से ताल मिला कर आगे बढ़ें। मानव के लालच और स्वार्थ की कोई भी सीमा नहीं है।अब हम सभी को बाढ़ और बारिश जैसी स्थितियों के इतिहास से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। हमें यह चाहिए कि हम मौसम के खूंखार पहलुओं को नजरअंदाज नहीं करें। प्रकृति के नियमों के विरुद्ध विकास नहीं करें। हमें जल निकासी, ड्रेनेज सिस्टम का समुचित प्रबंधन करने की जरूरत है। मानसून की बारिश से पहले ही तैयारियां पूरी कर लीं जाएं तो विनाश को रोका जा सकता है। हमें प्राकृतिक क्षेत्रों व प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेना होगा। सड़क व विकास के लिए यदि हम पेड़ काटना यदि हमारी मजबूरी भी है तो हमें यह चाहिए कि हम जितने भी पेड़ काटे उससे आठ दस गुना पेड़ लगाए भी। पेड़ों को लगाना ही पर्याप्त नहीं हैं,उनकी बरसों तक लगातार देखभाल करना भी बहुत जरूरी है, क्यों कि पेड़ों को छोटे बच्चे की तरह पालना पड़ता है। हम वन भूमियों, चरागाह क्षेत्रों, पहाड़ों की रक्षा करने का संकल्प लें, क्यों कि प्रकृति हमारी मित्र हैं, शत्रु कदापि नहीं। भारतीय संस्कृति में तो प्रकृति के हरेक स्वरूप की पूजा की गई है। हमारी सनातन संस्कृति,धर्म पर्यावरण की रक्षा करने का संदेश देते आए हैं।आज जल की निकासी का उच्च दर्जे का प्रबंधन और विकास के मानदंडों में नया सृजन करने की आवश्यकता अत्यंत महत्ती है।जल निकासी के पारंपरिक तरीकों पर आज लगातार अतिक्रमण बढ़ रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में लगातार नव निर्माण किए जा रहे हैं। अंधाधुंध मानवीय गतिविधियों ने प्राकृतिक संसाधनों को जैसे पी सा लिया है। हम सभी को यह ध्यान में रखने की जरूरत है कि यदि हमने बिना पर्यावरण की परवाह किये विकास किया तो पर्यावरण पर इसके नकरात्मक प्रभाव उत्पन्न होना लाजिमी ही है। अतिवृष्टि,बाढ़, बारिश इसी के कारण हैं। वास्तव में,पर्यावरण और आर्थिक विकास एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हुए है, यह हमें समझना चाहिए। हमारा यह दायित्व व कर्तव्य बनता है कि हम पर्यावरण संसाधनो के संरक्षण को विशेष महत्व दें। पर्यावरण और आर्थिक विकास के संतुलन के मध्य संतुलन स्थापित करना बहुत आवश्यक है। वास्तव में, इस प्रकार से प्राप्त हुई तरक्की, उन्नति का आनंद ना सिर्फ हम ले पायेंगे बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों को इससे निश्चित ही लाभ मिल पाएगा।
-सुनील कुमार महला