
ड्रोन बना युद्ध का प्रमुख हथियार
ड्रोन ने दुनिया भर में युद्ध का तरीका बदल दिया है। हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया। भारतीय सेना ने पाकिस्तान में आतंकियों के ठिकाने तबाह किए तो पाकिस्तानी सेना ने सैकड़ों की संख्या में ड्रोन भेजकर हमले किए। पाकिस्तान के ड्रोन हमलों को भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम ने हवा में खत्म कर दिया। इससे पहले इजरायल-गाजा और रूस-यूक्रेन वॉर में भी ड्रोन का जमकर इस्तेमाल किया गया। इससे एक बात साफ हो गई है कि ड्रोन अब सिर्फ तकनीक नहीं हैं, अब ये युद्ध की दिशा बदलने वाला हथियार हैं। हाल ही में यूक्रेन ने रूस के काफी भीतर उसके 5 एयरबेस और 41 बॉम्बर, लड़ाकू विमानों को तबाह कर दुनिया को चौंका दिया है। बल्कि विश्व स्तब्ध है कि यूक्रेन के पास ऐसी जंगी प्रौद्योगिकी भी है, जो 2000 किमी. से 6000 किमी. की दूरी तक सफल, असरदार,विध्वंसक हमला कर सकती है। जो देश अभी तक यूक्रेन की आर्थिक और सैन्य मदद करते रहे हैं, वे भी हैरान हैं और आत्ममंथन कर रहे हैं। रूस के ये बॉम्बर ऐसे थे, जो परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने में भी सक्षम थे। रूस ने इन्हीं विमानों के जरिए यूक्रेन के कई शहरों पर हवाई हमले किए थे और शहरों को खंडहर बना दिया था। इतिहास के पन्ने पलटे तो दूसरे विश्व युद्ध से पहले ब्रिटेन ने रिमोट से चलने वाली डीएच82बी क्वीन बी ड्रोन बनाया गया। ‘ड्रोन’ शब्द की उत्पत्ति इसी नाम से हुई है। यह किसी भी लक्ष्य की जानकारी लेने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा था।'क्वीन बी' को दुनिया का सबसे पहला आधुनिक ड्रोन माना गया था। 'क्वीन बी' का उपयोग ब्रिटेन के यल एयर फोर्सेस में किया गया था। इस ड्रोन की सफलता के बाद ही अमेरिका ने अपना ड्रोन प्रोग्राम शुरू किया था। अमेरिका ने ब्रिटेन में ड्रोन के सफल होने के बाद अपने यहां ड्रोन बनाने शुरू कर दिए। अमेरिका ने वियतनाम वॉर के दौरान पहली बार छोटे रिमोट कंट्रोल ड्रोन 'रयान एक्यूएम 91' का इस्तेमाल किया था। अमेरिकी आर्मी ने इसका इस्तेमाल बड़े
पैमाने पर उत्तरी वियतनाम में दुश्मन की जासूसी करने के लिए किया था। 'रयान एक्यूएम91' दो कैमरों से लैस था। 9/11 के बाद अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ अभियान में हेलफायर मिसाइल प्रीडेटर ड्रोन का बड़े लेवल पर इस्तेमाल किया। यह ड्रोन 24 घंटे उड़ान भरने में सक्षम था। एक समय तक ड्रोन तकनीक और ड्रोन इंडस्ट्री पर अमेरिका, ब्रिटेन और इजरायल का कब्जा था। साल 2015 के बाद ड्रोन तकनीक वैश्विक हो गई। यूक्रेन ने ऐसा घातक पलटवार कैसे किया, उसके ब्यौरे सामने आ चुके हैं। रूस की टीमें जांच-पड़ताल करने में जुटी हैं कि यूक्रेन के फर्स्ट पर्सन व्यू (एफपीवी) ड्रोन एयरबेसों तक कैसे पहुंचे और किसी को भी भनक तक नहीं लगी। रूस सोया रह गया और उसका पूरा तंत्र नाकाम रहा। रूस को करीब 60,000 करोड़ रुपए का नुकसान आंका जा रहा है। कुछ और आंकड़ों का भी विश्लेषण सामने आया है। रूस को अकल्पनीय, अप्रत्याशित नुकसान हुआ है, लेकिन वह अब भी महाशक्ति है और यूक्रेन पर इससे भी घातक और संहारक हमला करने की योजना बनाई जा रही है। अब राजधानी कीव भी राष्ट्रपति पुतिन के निशाने पर है। दरअसल यूक्रेन ने जो ड्रोन्स इस्तेमाल किए, उन्हें ‘कृत्रिम बौद्धिकता’ (एआई) से संचालित किया गया। यह वैज्ञानिक नवाचार यूक्रेन का ही है अथवा किसी देश ने उसे मुहैया कराया है,
यह रहस्य फिलहाल नहीं खुल पाया है, लेकिन इतना लगता है कि इन ड्रोन्स को ‘एआई एलगोरिथ्म’ पर प्रशिक्षित किया गया होगा! एल्गोरिथ्म कम्प्यूटर विज्ञान की भी एक अवधारणा है। यह किसी विशिष्ट कार्य को करने के लिए दिए गए निर्देशों की एक प्रक्रिया भी है, जिसने रूसी बॉम्बर विमानों की पहचान की और उन पर निर्णायक प्रहार कर उन्हें ‘मिट्टी-मलबा’ बना दिया। यूक्रेन के इस ‘ऑपरेशन मकडज़ाल’ ने स्पष्ट कर दिया है कि इस ड्रोन हमले ने युद्ध को बदल दिया है। हम किसी पक्ष की जीत या हार की भविष्यवाणी नहीं कर रहे, लेकिन यह एक भयानक सच है कि रूस-यूक्रेन युद्ध 3 साल 3 महीने से जारी है और यूक्रेन अभी
पराजित होने की स्थिति में नहीं है। दोनों देशों के बीच समझौता-वार्ता हुई है, युद्धबंदियों को रिहा करने की बुनियादी सहमति बनी है, लेकिन युद्धविराम के लिए फिलहाल सहमति दूर- दूर तक नहीं दिखती। अब तो पृष्ठभूमि में ड्रोन हमला भी झलक रहा है। हालांकि रूस ने शुरुआत में दावा किया था कि युद्ध 7-10 दिन चलेगा और यूक्रेन पराजय स्वीकार कर लेगा। रूस पर यूक्रेन के इस हमले को ‘पर्ल हॉर्बर’ हमले के बराबर माना जा रहा है। अमेरि पर उस हमले के बाद ही जापान के हिरोशिमा-नागासाकी शहरों पर अमेरिका ने एटम बम गिराए थे। विध्वंस का वह इतिहास सभी जानते हैं और अमेरिका को द्वितीय विश्व युद्ध में उतरने को विवश किया गया था। पुतिन के नंबर दो दिमित्री मेदवेदेव ने भी अब परमाणु हमले की धमकी दी है, लिहाजा पूरा विश्व चिंतित है। भारत का पहला स्वदेशी डिजाइन और डिवेलप्ट ड्रोन 'निशांत' था। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने ड्रोन 'निशांत' का 1995 में इसका परीक्षण किया था। भारतीय सेना की रिमोटली पायलेटेड व्हीकल की जरूरत को पूरा करने के लिए 'निशांत' को बनाया गया था। साल 1999 में कारगिल भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया था। तब पहली बार भारत ने इस ड्रोन का इस्तेमाल किया था। यह ड्रोन दुश्मन के इलाके के जानकारी एकत्रित करने और तोपखाने की आग को ठीक करने के लिए किया गया था। भारत ने उस दिशा में शुरुआती कदम उठाए हैं। इसके बाद भारत ने पंछी, लक्ष्य, रुस्तम, आर्चर, घातक और नेत्र समेत कई और ड्रोन बनाए। हालांकि, अभी भारत मुख्य रूप से इजरायली मूल के हिरोन मार्क-2, हैरोप और स्काई- स्ट्राइकर जैसे ड्रोन का इस्तेमाल करता है।अभी हाल ही में भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी स्थलों और पाकिस्तानी वायु रक्षा प्रणालियों पर हमला करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया। हालांकि, ये स्पष्ट नहीं है कि कौन-सा ड्रोन इस्तेमाल किया। भारत ने अपने लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टर, एयरट्रांसपोर्ट में दशकों तक रणनीतिक प्रयास किए हैं, लेकिन ‘ऑपरेशन मकडज़ाल’ एक महत्वपूर्ण पुष्टि करता है कि वायु-शक्ति का भविष्य मानवरहित, एआई संचालित और लंबी दूरी का होगा। बहरहाल यदि वर्ष 2024 एफपीवी ड्रोन का था, तो 2025 के बीते सप्ताह तक ‘फाइबर ऑप्टिक एफपीवी ड्रोन’ का दौर था। ये ड्रोन रूसी सेनाओं का नवाचार था। यूक्रेन ने उसे भी पार कर लिया है और एआई संचालित ड्रोन्स का इस्तेमाल कर रूस पर बेहद घातक प्रहार किया है। साफ है कि आने वाले युद्ध एआई संचालित, स्वायत्त ड्रोन से ही लड़ जाएंगे। जिस भी देश की रक्षा प्रणाली में उन्नत तकनीक के ड्रोन भी शामिल हैं, उस देश की सेना कई गुना ताकतवर हो जाती है। जैसे पहले विश्व युद्ध में खाइयों की लड़ाई युद्ध रणनीति का
हिस्सा थी, वैसे ही 21वीं सदी में ड्रोन युद्ध में प्रमुख हथियार बन चुके हैं। भविष्य के युद्ध की दिशा एआई, स्वार्म टेक्नोलॉजी और ड्रोन से तय होगी। यूक्रेन के इस हमले में भारत के लिए भी कुछ सबक निहित हैं।