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Uttar Pradesh के मानसून सत्र पर निगाहें, 29 जुलाई को योगी और अखिलेश की सियासी परीक्षा

Uttar Pradesh के मानसून सत्र पर निगाहें, 29 जुलाई को योगी और अखिलेश की सियासी परीक्षा

लखनऊ। लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में जबर्दस्त हलचल मची हुई है। बीजेपी में अंदरूनी गुटबाजी ने खासी सुर्खियाँ बटोरी हैं और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। बीजेपी के सहयोगी दल भी अब मुखर हो गए हैं, अपनी ही सरकार पर सवाल उठाने लगे हैं। इस बीच, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 37 सांसदों के साथ लखनऊ को छोड़कर दिल्ली का रुख किया है। इस बदलती स्थिति ने 29 जुलाई को यूपी की राजनीति में महत्वपूर्ण मोड़ दे दिया है।


29 जुलाई को उत्तर प्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होगा और इसी दिन राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। अखिलेश यादव ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है, जिससे विधानसभा में नए नेता प्रतिपक्ष का चुनाव भी इसी दिन होना है। सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उन्हें पार्टी के भीतर चल रही गुटबाजी को सुलझाते हुए सहयोगी दलों का विश्वास भी प्राप्त करना होगा। सपा ने लोकसभा चुनाव में 80 में से 37 सीटें जीतकर अपनी ताकत का परिचय दिया है, जिससे उनके आत्मविश्वास में इजाफा हुआ है। इस विजय के बाद सपा अब विधानसभा में भी आक्रामक रुख अपनाने की योजना बना रही है। कांग्रेस का समर्थन भी उनकी स्थिति को मजबूत करता है। विपक्षी दलों के मुद्दों का सामना करना बीजेपी के लिए कठिन हो सकता है, खासकर जब मुद्दे बिजली कटौती, कांवड़ यात्रा के मार्ग पर नेम प्लेट विवाद और ओबीसी आरक्षण जैसे प्रमुख विषयों पर हो।


बीजेपी और उसके सहयोगी दल भी इस समय कशमकश में हैं। लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी नेताओं के बीच खींचतान जारी है, जिसमें केशव प्रसाद मौर्य और सीएम योगी के बीच मतभेद की चर्चा है। सहयोगी दल भी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए मोर्चा खोल चुके हैं। यह सीएम योगी की जिम्मेदारी बनती है कि वह इन मुद्दों का समाधान करें और पार्टी तथा सहयोगी दलों के बीच सियासी रिश्ते सुधारें। लोकसभा चुनाव के बाद, अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल और निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद ने भी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं। ओम प्रकाश राजभर और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने भी सरकार की नीतियों की आलोचना की है। इन सवालों का समाधान करना और सहयोगी दलों की नाराजगी को दूर करना सीएम योगी के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

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