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उपचुनाव में गहलोत सरकार के कामकाज का पड़ेगा असर

उपचुनाव में गहलोत सरकार के कामकाज का पड़ेगा असर


जयपुर। राजस्थान में 7 विधानसभा सीटों पर हो रहे उप चुनाव में भाजपा, कांग्रेस, आरएलपी और बीएपी के नेता धुंआधार चुनाव प्रचार कर रहे हैं। बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा उप चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतने के लिए जोर लगा रहे है। भाजपा और कांग्रेस दोनों दल उप चुनाव में अपनी अपनी पार्टियों के बड़े नेताओं के भरोसे चुनाव जीतने की गणित लगा रही है लेकिन इस उप चुनाव में पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार की जनकल्याणी
योजनाओं का काफी असर पड़ेगा। गहलोत सरकार के 2018 से 2023 के कार्यकाल की जनकल्याणी योजनाओं जिसमें मुख्य रूप से चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना। इस योजना में 25 लाख तक का मुफ्त इलाज की सुविधा है। कांग्रेस सरकार ने इसे 5 लाख से शुरू करके 25 लाख तक पहुंचा दिया था।
गहलोत सरकार में ओल्ड पेंशन योजना गहलोत सरकार ने लागू की थी। ओल्ड पेंशन योजना लागू करने वाला देश का पहला राज्य राजस्थान बना।
अशोक गहलोत सरकार में महंगाई राहत कैंप के बाद सबसे ज्यादा प्रचलित योजना 500 रुपये में गैस सिलेंडर है। 1150 रुपये में आने वाला गैस सिलेंडर कांग्रेस सरकार 500 रुपये में दिया था। हर घर को 100 यूनिट फ्री बिजली स्कीम से गहलोत सरकार ने आम लोगों को बड़ी राहत दी थी। प्रदेश में किसानों को 2000 यूनिट फ्री बिजली दी गई। गरीबों को फ्री राशन की योजना तो लागू की। गांवों में मनरेगा की तर्ज पर शहरों इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना के तहत 125 दिन रोजगार देने से लोगों को राहत दी गई। वहीं अन्नपूर्णा फूड पैकेट योजना में फ्री राशन कीट भी दिया गया था।सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना में एक हजार रुपये न्यूनतम पेंशन भी गहलोत सरकार ने दी थी। महिलाओं को रोडवेज की सभी श्रेणी की बसों के किराए में 50 फीसदी छूट दी गई थी।
महिलाओं को स्मार्ट फोन गहलोत सरकार ने बांटे थे जिसका लाभ महिलाओं को मिला। इसके अलावा पालनहार योजना, कामधेनु योजना सहित विभिन्न जनकल्याणी योजनाओं को आज भी प्रदेश की जनता याद करती है। इस तरह से बंपर योजनाएं लाने वाला देश का पहला राज्य राजस्थान बना था। लेकिन भाजपा सरकार आने के बाद कुछ योजनाएं सरकार ने बंद कर दी। कुछ योजनाओं का नाम बदल दिया गया और नियम में बदलाव किया गया है।
अशोक गहलोत सरकार की योजनाएं प्रदेश के गांव गांव ढाणी ढाणी के लोग याद करते है। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि 7 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में अशोक गहलोत सरकार योजनाओं का असर देखने को मिलेगा। भाजपा सरकार के पक्ष में प्रदेश में उतना माहोल नहीं है। बताया जा रहा है कि सरकार के कामकाज से लोग ऊब चुके है। लेकिन यह उप चुनाव मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के लिए चुनौती बना हुआ हैं हालांकि चुनौती कांग्रेस के लिए भी कम नहीं है। यह उप चुनाव पीसीसी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का राजनीतिक भविष्य तय करेगा। अगर कांग्रेस अपनी पूर्ववर्ती सरकार की योजनाओं को भुनाने में कामयाब रही तो कांग्रेस उपचुनाव में बाजी अपने हाथ ले सकती है।

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