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द्वारका के इस मंदिर में अपने पुत्र के साथ विराजमान हैं हनुमान जी, आप भी कर आएं दर्शन

द्वारका के इस मंदिर में अपने पुत्र के साथ विराजमान हैं हनुमान जी, आप भी कर आएं दर्शन

हमारे देश में कई प्राचीन और फेमस मंदिर हैं। जो भारतीय संस्कृति और धर्म के अभिन्न अंग हैं। इसलिए इसे मंदिरों का देश भी कहा जाता हैं। भारत में लाखों-करोड़ों मंदिर हैं, जो विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित है। वहीं इन देवी-देवताओं की पूजा के कई नियम बताए गए हैं। वहीं इन मंदिरों के कई रहस्य भी हैं, जिनके बारे में पता लगा पाना वैज्ञानिकों के लिए भी काफी मुश्किल है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक हनुमान जी ब्रह्मचारी हैं, लेकिन उनका एक पुत्र भी है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे जहां पर हनुमान जी अपने पुत्र के साथ विराजमान हैं।


कहां है मकरध्वज मंदिर
हनुमान जी के इस मंदिर का नाम मकरध्वज मंदिर हैं और यह द्वारका में स्थित है। मान्यता के अनुसार, यह वही स्थान है, जहां पर हनुमान जी पहली बार अपने पुत्र मकरध्वज से मिले थे। यहां इस मंदिर में हनुमान जी और मगरध्वज की प्रतिमा स्थापित है।

पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार हनुमान जी यात्रा करने के दौरान समुद्र में स्नान कर रहे थे। जहां पर हनुमान जी का पसीन एक मादा मगरमच्छ ने पी लिया। इसकी वजह से उस मादा मगरमच्छ के गर्भ से संतान उत्पन्न हुई, जिसका नाम मगरध्वज पड़ा। बताया जाता है कि हनुमान जी जो तपस्या करते वह मकरध्वज के पास स्थानांतरित हो जाती थी। जिसके कारण हनुमान जी का पुत्र मकरध्वज अत्यंत शक्तिशाली हो गया। बता दें कि यहां पर करीब 2000 साल पहले साधु-संत साधना किया करते थे।

एक दिन उन साधु-संत को स्वप्न आया कि हनुमान जी उनसे कुछ कहना चाहते हैं कि हनुमान जी और उनके पुत्र मकरध्वज की मूर्ति इस स्थान पर स्थापित की जाए। साधु-संत ने हनुमान जी का आदेश मानते हुए मूर्ति की स्थापना की। बता दें कि हनुमान जी और मकरध्वज की प्रतिमा के सामने बैठकर कोई साधना करता है, तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। साथ ही जातक को शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है।

वहीं एक दूसरी कथा के अनुसार, जब श्रीराम लंका पर आक्रमण करने जा रहे थे, तो उससे पहले सीता जी की खोज में हनुमान लंका गए थे। वहां पर उन्होंने रावण के बंदीगृह में मां सीता को देखा। मां सीता से मिलने के बाद उन्होंने हनुमान जी को एक पान दिया, जिसमें उनका बीज था। हनुमान जी ने वह पान पाताल लोक के राजा अहिरावण को दिया। जब अहिरावण की पत्नी ने उस पान का सेवन किया, तो उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई, यह हनुमान जी के बेटे मकरध्वज थे।

बता दें कि आगे चलकर मकरध्वज एक वीर योद्धा बने और उन्होंने भी अपना पूरा जीवन श्रीराम की सेवा में समर्पित कर दिया। रामायण युद्ध में मकरध्वज ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मकरध्वज ने रावण के पुत्र इंद्रजीत का वध किया। वहीं युद्ध के बाद प्रभु श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल लोक का राजा बनाया।

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