समरसता कायम करना बड़ी चुनौती
जातियां हिन्दू समाज रुपी भवन की ईमारती ईंटें है। भारत में बहुसंख्यक हिन्दू समाज जाति व्यवस्था पर आधारित रहा है। बिना जाति व वर्ण व्यवस्था के हिन्दू समाज की कल्पना ही नही की जा सकती। वर्ण व्यवस्था को धर्म से जोड कर निहित स्वार्थ वालों ने इसे स्थाई रुप से दृढ़ कर दिया। जाति व्यवस्था को अतीत मंे गम्भीर धक्के लगे लेकिन व्यवस्था के ढांचे मंे कोई परिवर्तन नही हुआ। यह व्यवस्था इतनी जकड़न वाली हो गई कि इसे कबीर, गुरू नानक, महात्मा फुले संत ज्ञानेश्वर, महात्मा गांधी भी नहीं तोड़ पाये और न ही आजादी के बाद बनाया गया संविधान व अनेक कानून।
डा. अम्बेडकर के शब्दों में ‘‘जातिवाद श्रेणीकृत असमानता की एक पद्धति है।’’ रविन्द्रनाथ टैगोर के षब्दो मंे ‘‘यह एक विषाल दमन की पद्धति है।’’ संविधान के अनुच्छेद 14 में कानून के समक्ष प्रत्येक व्यक्ति को समान दर्जा दिया गया। अनुच्छेद 15 मंे धर्म, मूलवंष, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिवेद किया हैं। अनुच्छेद 16 मंे अवसर की समानता का प्रावधान किया गया है। स्वतंत्रता के बाद वयस्क मताधिकार पद्धति ने जाति प्रथा को सबसे जबरदस्त चुनोती दी, परन्तु वयस्क मताधिकार पर आधारित राजनैतिक प्रणाली मंे जाति की भूमिका महत्वपूर्ण बन गई।
वर्तमान में जातियांे के बीच उतनी ही दूरी बनी हुई है, जितनी कई दषक पूर्व थी। ग्रामांे मंे दोनों की अलग-अलग बस्तियां है, अलग-अलग कुऐं है, अलग-अलग षमषान भूमि, अलग-अलग चैपाले है। दलितों की बस्तियां सकडी गलियांे मंे है, उनके घरों की दषा भी दयनीय है। उच्च और निम्न जातियांे के बीच सामाजिक सम्पर्क नही है। अन्तर्जातिय विवाहो की तो कल्पना करना असंभव है, यदि ऐसा हो जाता है तो उस जोडे को मौत के घाट उतार दिया जाता है। आये दिन अखबारांे मंे छपता रहता है, अमुक स्थान पर दलित परिवार ने धर्मान्तरण कर लिया अथवा अत्याचारों के कारण गांव छोड़ दिया।
आज भी विभत्स घृणित घटनाऐं होती रहती है। तमिलनाडू में एक दलित बालिका की आॅखंे इसलिए फोड दी गई क्योंकि उसने विधालय मंे स्वर्ण बालको की पानी की मटकी से पानी पी लिया। आज भी विवाह के समय दूल्हे को घोडी पर नही बैठने दिया जाता, मन्दिर मंे प्रवेष नही करने दिया जाता। आज भी दलितों का उत्पीडन होता है, उनकी जमीनांे पर कब्जे कर लिए जाते है। निम्न वर्गाे के कच्चे घरो मंे आग लगादी जाती है, महिलाआंे को डायन बता कर घर से बाहर लाकर पीटा जाता है। आवंटित बेकार भूमि पर भी कब्जा नही दिया जाता, अन्य लोग काबिज होने का प्रयास करते है। भयभीत कर उन्हंे भगा दिया जाता है। बन्धुआ मजदूर, गरीब खेतीहर मजदूर जो दिहाडी पर कार्य कर अपना पेट भरते है। भंयकर गरीबी मंे अपना जीवन समाप्त करने वाले निम्न वर्ग के हिन्दूआंे के बारे मंे धर्मान्तरण का हो-हल्ला मचाने वालों में आज भी कोई सोच नहीं है। आज भी अपनी व्यक्तिगत भावनाआंे व राजनैतिक मकसदांे के लिए ऐसे अनेक लोग हैं जो घृणा फैलाते है। निम्न वर्गाे के प्रति पूर्वाग्रह अत्यन्त गहरे है, बाते उदारीकरण और व्यवसायिकरण की करते हैं परन्तु निम्न वर्गाे, कृषको व श्रमिको, को बराबरी के अधिकार से वंचित करने के लिए किसी हद तक जा सकते है। यदि दलित, पिछडे, श्रमिक, निम्न वर्ग हिन्दू धर्म से, धार्मिक सामाजिक आर्थिक असमानता व अपमानांे के कारण पृथक हो जायें तो देष मंे हिन्दू 82 प्रतिषत के प्रचंड बहुमत मंे नही रहेगंे।
अत्याचार, असमानता के कारण दलितो पर अत्याचारांे के खिलाफ जो नही बोलते वो धर्मान्तरण होने पर षोर मचाते है। धर्मान्तरण के मुद्दे को धर्म व राजनीति का हिस्सा बना लिया जाता हेै। आज भी जातियांे के आधार पर संगठनों व राजनीतिक पार्टियों द्वारा निरंतर विद्वेष फेलाया जा रहा है। आज भी सामाजिक हितो के बजाय विषेष जातिय हितो पर जोर दिया जा रहा है। जाति के नाम पर गोलबन्दी होती है। जाति विहीन समाज की अवधारणा समाप्त हो रही है। आरक्षण समाप्त करने की बात की जा रही है परन्तु नीति के अनुरुप लाभ देने की नियत नही है। जातियांे के बीच वर्ग संघर्ष चल रहा है। जाति को अभिषाप कहने वाले लोग कम हैं। ऐसे लोग अधिक है जिन्हे जाति व्यवस्था मंे बुराई नही दिखती। महात्मा गांधी जाति व्यवस्था के विरूद्ध नहीं थे परन्तु वे इसे मात्र सामाजिक श्रम विभाजन मानते थे उसमंे ऊंच नीच का कोई स्थान नही था। महात्मा गांधी के दिनों में जाति प्रथा को मिटाने के लिए आन्दोलन चले थे, आज वैसा कोई आन्दोलन नहीं है। अपितु वक्त के साथ जातिवाद, सांप्रदायिकता, असमानता बढ़ी ही है। वर्गीय राजनीति के चलते यह व्यवस्था ज्यादा मजबूत हुई।
सवर्ण वर्ग, षहरी व अमीर तबके ने तो वैष्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण के माध्यम से अपने को और सबल कर लिया। उदारीकरण ने समतावादी समाज के आदर्ष पर चर्चा ही चुप करा दी। अब जवाहरलाल नेहरु की असमानता व दूरियां कम करने की न कोई नीति रही न कोई ईमानदारी से क्रियांन्वित किया जाने वाला व्यक्ति, कार्यक्रम व चर्चा। जवाहरलाल नेहरु ने प्रषासनिक तोर पर जाति प्रथा को समाप्त करने का प्रयाष किया था। उन्होने अधिकारियांे को कहा था कि अपने नामांे के आगे जाति का उल्लेख नही करंें। केन्द्रीय सचिवालयांे व प्रान्तीय सचिवालयांे मंे ऐसी नाम पट्टिकाएंे लगी दिखाई दी थी जिनमंे नाम के साथ जाति सूचक षब्द नही होते थे। उन्होनें आवेदन फार्माे से जाति का कालम भी हटा दिया, परन्तु अब जाति बडे जोर षौर के साथ उभर गई है। अन्तर्जातिय विवाह के लिए सरकार ने वर वधु को बडी राषि देने का निर्णय लिया परन्तु वह सफल नही हो सका।
संविधान, कानूनी तरीके व सामाजिक जागरूकता के साथ निरन्तर सक्रियता से समरसता की ओर बढ़ा जा सकता है। यदि हम सामाजिक भेदभाव व जातिवाद को ईमानदारी से मिटाना चाहते हें तो दलितों व निम्न वर्ग को आर्थिक स्तर पर भी मजबूत करना होगा। निम्न जातियों में अन्याय के विरूद्ध उठ खड़ा होने का जज्बा उत्पन्न करना होगा। धर्म परिवर्तन जैसी प्रतिक्रियावादी कार्यवाही इसका इलाज नहीं है। महापुरूषों की जीवनशैली व विचारों से प्रेरणा लेकर कट्टर प्रतिरोध करना होगा।
-डा0 सत्यनारायण सिंह