सोशल मीडिया का दुरुपयोग और नए आईटी नियम एक विवेचन
आज के इस आधुनिक और डिजिटल युग में सोशल मीडिया केवल संवाद और मनोरंजन का ही माध्यम नहीं रहा है, बल्कि यह जनमत निर्माण, राजनीतिक विमर्श और सामाजिक प्रभाव का सशक्त उपकरण बन चुका है, लेकिन कहना ग़लत नहीं होगा कि आज के समय में इसकी अनियंत्रित स्वतंत्रता और तकनीकी दुरुपयोग ने समाज में अनेक नई चुनौतियों को जन्म दिया है। इसी पृष्ठभूमि में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने आईटी रूल्स-2021 में संशोधन करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2025 को अधिसूचित किया है। पाठकों को बताता चलूं कि इन संशोधनों का उद्देश्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के दायित्वों को स्पष्ट करते हुए डिजिटल पारदर्शिता, जवाबदेही और नागरिकों के साथ ही साथ देश और समाज की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। संशोधित नियमों के तहत आईटी अधिनियम-2000 की भावना को सशक्त करते हुए यह सुनिश्चित किया गया है कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (मध्यस्थ) गैरकानूनी सामग्री को 36 घंटे के भीतर हटाएं और ऐसा पारदर्शी व आनुपातिक तरीके से करें। वास्तव में, यह कदम हमारे देश की संप्रभुता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और शालीनता की रक्षा की दिशा में एक बड़ा सुधार है। बहरहाल, कहना चाहूंगा कि सोशल मीडिया एक क्रांति है जिसने दुनिया को जोड़ने का तरीका पूरी तरह बदल दिया है। इसने विचारों, सूचनाओं और भावनाओं के आदान-प्रदान को तेज और सरल बना दिया है। अब कोई भी व्यक्ति अपनी आवाज़ को वैश्विक स्तर पर पहुंचा सकता है। यह लोकतंत्र, शिक्षा और जन-जागरूकता का सशक्त माध्यम बन गया है। सोशल मीडिया ने समाज में पारदर्शिता और भागीदारी बढ़ाई है। सचमुच, यह तकनीकी युग की सबसे बड़ी सामाजिक क्रांति है, लेकिन सोशल मीडिया के आगमन ने जहां एक ओर सूचना की पहुंच को आसान बनाया, वहीं दूसरी ओर फेक न्यूज, डीपफेक, ट्रोलिंग, साइबर बुलिंग और अफवाहों के प्रसार ने समाज में भ्रम और विभाजन की स्थिति उत्पन्न कर दी है। आज एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के अनियंत्रित उपयोग ने सोशल मीडिया को एक खतरनाक मोड़ पर पहुंचा दिया है। डीपफेक तकनीक का प्रयोग कर झूठे वीडियो और तस्वीरें बनाना अब बेहद आसान हो गया है। इनसे न केवल आम नागरिक बल्कि सेलिब्रिटीज, पत्रकार और सार्वजनिक हस्तियां भी प्रभावित हो रही हैं। किसी की आवाज़ या चेहरा बदलकर भ्रामक वीडियो बनाना निजता के अधिकार पर सीधा प्रहार है। ऐसी सामग्री से व्यक्ति की गरिमा, प्रतिष्ठा और व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। यह तकनीक लोकतंत्र की जड़ों को भी कमजोर कर सकती है, क्योंकि झूठे तथ्यों और काल्पनिक दृश्यों से जनमत को गुमराह किया जा सकता है। नए आईटी नियम इस दिशा में एक सशक्त व सकारात्मक कदम हैं, जो डिजिटल दुनिया को जिम्मेदार और सुरक्षित बनाने का प्रयास करते हैं। रूल 3(1)(डी) को पूरी तरह से बदलकर सरकार ने स्पष्ट किया है कि कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अब गैर-जिम्मेदार नहीं रह सकता। उन्हें उपयोगकर्ताओं की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई करनी होगी और हानिकारक कंटेंट को समयबद्ध तरीके से हटाना अनिवार्य होगा। इन नियमों से सोशल मीडिया कंपनियों पर यह कानूनी जिम्मेदारी भी आएगी कि वे अपनी सामग्री नीति(कंटेंट पालिसी)को पारदर्शी रखें और शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत बनाएं।सोशल मीडिया के दुरुपयोग का सबसे बड़ा उदाहरण चुनावों, सामाजिक आंदोलनों और धार्मिक मुद्दों के समय देखने को मिलता है, जब अफवाहें और झूठी सूचनाएं जनभावनाओं को भड़काती हैं। कई बार एक मनगढ़ंत वीडियो या डीपफेक छवि समाज में हिंसा, असहिष्णुता और अविश्वास का माहौल बना देती है। ऐसी स्थितियों में आईटी नियमों का सख्ती से पालन आवश्यक हो जाता है। नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ उनकी सुरक्षा और गरिमा का संरक्षण भी उतना ही जरूरी है। इसके अतिरिक्त, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बढ़ती ट्रोलिंग संस्कृति ने भी मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला है। किसी व्यक्ति को बदनाम करने, डराने या सामाजिक रूप से अलग-थलग करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग हथियार की तरह किया जाने लगा है। यह बहुत ही दुखद है कि आज खासकर महिलाएं, सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार इस साइबर हिंसा का सबसे अधिक शिकार होते हैं। इस स्थिति में सरकार का यह कदम कि '36 घंटे में अवैध कंटेंट हटाया जाए', निश्चित रूप से नागरिकों(आम आदमी) के हित में है। यह न केवल जिम्मेदारी तय करेगा बल्कि ऑनलाइन वातावरण को सभ्य, सुरक्षित और विश्वसनीय बनाएगा। हाल के वर्षों में एआई जनित कंटेंट और डीपफेक वीडियो ने लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगाए हैं। उदाहरण के लिए, किसी नेता या अधिकारी का फर्जी बयान बनाकर जनता के बीच प्रसारित कर देना, न केवल राजनीतिक माहौल को प्रभावित करता है बल्कि जनविश्वास को भी तोड़ता है। अतः ऐसे डिजिटल अपराधों को रोकने के लिए कड़े आईटी नियम समय की मांग हैं। नए संशोधन यह सुनिश्चित करेंगे कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'मध्यस्थ' की भूमिका निभाते हुए भी अपनी जिम्मेदारियों से भाग न सकें। आज का दौर डिजिटल दौर है और इस डिजिटल दुनिया में स्वतंत्रता और जिम्मेदारी का संतुलन बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है। यदि सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का असीमित दुरुपयोग होता रहा तो यह लोकतंत्र की आत्मा के लिए खतरा बन सकता है। वहीं यदि उचित नियमन और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए तो यही सोशल मीडिया समाज सुधार, पारदर्शिता और जनसंचार का सशक्त माध्यम बन सकता है। इसलिए, आईटी मंत्रालय द्वारा अधिसूचित यह संशोधन न केवल समयानुकूल बल्कि अत्यंत आवश्यक कदम है। यह नागरिकों की निजता की रक्षा, डिजिटल शालीनता के संवर्धन और एआई जनित खतरों के नियंत्रण की दिशा में एक निर्णायक पहल है। अंततः यह बात कही जा सकती है कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए ये कदम भारतीय डिजिटल लोकतंत्र को अधिक जिम्मेदार, पारदर्शी और सुरक्षित बनाएंगे। जब तकनीक का उपयोग मानवता और समाज के हित में किया जाएगा, तभी डिजिटल इंडिया का वास्तविक अर्थ साकार होगा। नई आईटी गाइडलाइनें इस दिशा में एक मजबूत कदम हैं-जो न केवल तकनीकी अनुशासन स्थापित करेंगी, बल्कि हर भारतीय नागरिक की गरिमा और सुरक्षा की रक्षा भी सुनिश्चित करेंगी।
-सुनील कुमार महला