
नकली दवाओं का प्रचलन जन-स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती
मिलावटी खाद्य पदार्थों की तरह नकली दवाएं भी घर घर पहुंच गई है। गंभीर बीमारियों की
छोड़िये, छोटी मोटी मौसमी बीमारियां जैसे सर्दी, जुखाम, खांसी, बुखार, एसीडीटी, रक्तचाप
और गैस आदि भी यदि अंग्रेजी दवाओं से ठीक नहीं हो रही है तो आप सावधान हो जाइये
क्योंकि इन दवाओं के नकली और घटिया होने का खतरा मंडरा रहा है। अनेक मीडिया
रिपोर्ट्स में यह खुलासा किया गया है कि देशभर में नकली और घटियां दवाओं का धड़ल्ले से
निर्माण हो रहा है जिसका पुख्ता प्रमाण सरकारी एजेंसियों की छापामारी से मिल रहा है।
जाँच में ये दवाइयां नकली निकल रही है जो जनता के स्वास्थ्य से सरेआम खिलवाड़ है।
आम आदमी जीवन रक्षक दवाओं में मिलावट की ख़बरों से खासा परेशान है। हमारे बीच यह
धारणा पुख्ता बनती जा रही है कि बाजार में मिलने वाली अंग्रेजी दवाओं में कुछ न कुछ
मिलावट जरूर है। लोगों की यह चिंता बेबुनियाद नहीं है। ये दवाएं नामी ब्रांडेड कंपनियों की
पैकेजिंग में बेची जा रही हैं। देशभर में हर दूसरे या तीसरे दिन खबरें छपती रहती है कि
इतने करोड़ की नकली दवाई पकड़ी गयी। इतनी दवाओं को नष्ट किया गया या सील किया
गया। इसके बावजूद नकली दवाओं का धंधा बजाय कम होने के बढ़ता ही जा रहा है। नक़ली
दवाएं या मिलावटी दवाएं वे होती हैं, जिनमें गोलियां, कैप्सूल या टीकों आदि में असली दवा
नहीं होती, दवा की जगह चॉक पाउडर, पानी या महंगी दवा की जगह सस्ती दवा का पाउडर
मिला दिया जाता है, इसके अलावा एक्सपायर हो चुकी दवाओं को दोबारा पैक करके बेचने
का धंधा भी होता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में नकली दवाओं के उत्पादन और प्रसार का बाजार करीब 35
हजार करोड़ रुपए का है। इसी से यह समझा जा सकता है की देश में किस प्रकार नकली
दावों का व्यापार निर्विघ्न रूप से फल फूल रहा है। एसोचेम का दावा है कि बाजार में
बिकने वाली हर 4 में से 1 दवा नकली है। आम आदमी के लिए इनके असली या नकली
होने की पहचान बहुत मुश्किल है। कहा ये भी जा रहा है बीमारियों से इतनी मौतें नहीं हो
रही है जितनी नकली दवाओं के सेवन से हो रही है।
सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद देश में घटिया और नकली दवाओं पर पूरी तरह लगाम
नहीं लगाई जा सकी है, जिसके कारण देश के लाखों लोगों की सेहत सुधरने के बजाय बिगड़
रही है। भारत में नकली, घटिया और अवैध दवाओं का धंधा तेजी से फैल रहा है, जिसकी
वजह से रोगियों की जान जोखिम में है। विशेषज्ञों के मुताबिक जो दवाएं धोखाधड़ी से
निर्मित या पैक की गई हैं, उन्हें नकली और घटिया दवाएं कहा जाता है क्योंकि उनमें या तो
सक्रिय अवयवों की कमी होती है या गलत खुराक होती है।
देश में नकली और घटिया दवाओं की बाढ़ आ गई है। आये दिन देश के विभिन्न भागों में घटिया और
अमानक दवाऐं पकड़ी जा रही है। दवाइयों का क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र हैं जहां असली व गुणवत्ता की पहचान
करना बेहद कठिन होता है। चूंकि दवाओं का एक्शन-रिएक्शन खाने या प्रयोग करने के बाद पता चलता
है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत नकली दवाओं का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है।
भारत में 25 फीसदी के करीब दवाइयां नकली है।
हमारे देश में अंग्रेजी दवाइयों ने घर घर में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है। जिसे देखो अंग्रेजी
दवाइयों के पीछे भागता मिलेगा। सामान्य बीमारियों से लेकर असाध्य बीमारियों की दवा आज घरों में
मिल जाएगी। इनमें चिकित्सकों द्वारा लिखी दवाइयों के अलावा वे दवाइयां भी शामिल है जो मेडिकल
स्टोर्स से बीमारी बताकर खरीदी गई है अथवा गूगल से खोजकर निकाली गई है। ये दवाइयां असली है
या घटिया अथवा नकली ये भी आम लोगों को मालूम नहीं है। घटिया दवाइयों का बाजार आजकल खूब
फलफूल रहा है। आये दिन घटिया और नकली दवाइयां बरामद करने की खबरें मीडिया में सुर्खियों में
पढ़ने को मिल रही है।
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बिकने वाली हर पाँच गोलियों के पत्तों में में से एक नकली है। इन
दवाइयों से हर वर्ष लगभग 5 प्रतिशत धनहानि देश को होती है और ये धंधा बेरोकटोक चल रहा है और
असली दवाइयों के व्यापार से भी ज्यादा तरक्की कर रहा है। दवा एक केमिकल होता है। रसायन होता
है। दवा कंपनियां अपने मुनाफा एवं विपरण में सहुलियत के लिए इन रसायनों को अलग से अपना ब्रांड
नाम देती है। जैसे पेरासिटामोल एक साल्ट अथवा रसायन का नाम है लेकिन कंपनिया इसे अपने
हिसाब से ब्रांड का नाम देती हैं और फिर उसकी मार्केंटिंग करती है। ब्रांड का नाम ए हो अथवा बी अगर
उसमें पेरासिटामोल साल्ट है तो इसका मतलब यह है कि दवा पेरासिटामोल ही है।
- बाल मुकुन्द ओझा