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राजस्थान में बदलाव की बयार के संकेत

राजस्थान में बदलाव की बयार के संकेत

राजस्थान में एक बार जनतंत्र ने बाजी मार ली है। हालाँकि कुछ स्थानों पर मतदान के दौरान हिंसा,
फायरिंग, तोड़फोड़ और बूथ कैप्चरिंग की वारदातें हुई। आमतौर पर प्रदेशभर में बड़ी संख्या में मतदाता
अपने घर से निकले और लोकतंत्र के इस सबसे बड़े उत्सव में हंसी ख़ुशी और उत्साह के साथ मतदान
किया। युवा और बुजुर्ग मतदाता लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतज़ार का रहे थे। हजारों लोगों ने
चुनाव आयोग द्वारा स्थापित सेल्फी पॉइंट पर अपनी फोटो खींचकर सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर
डाली। चुनाव आयोग ने इस बार प्रत्येक सीट पर कम से कम 75 प्रतिशत मतदान का लक्ष्य रखा था। देश के
सबसे बड़े राज्य राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में से 199 पर रविवार को मतदान संपन्न हुआ । इस
बार प्रदेश में करीब 75 फीसदी वोटिंग हुई है। 2018 में 74. 71 प्रतिशत मतदान हुआ था। सर्वाधिक मतदान
जैसलमेर में 82.32 और सबसे कम पाली में 65.12 रहा।अब सभी लोगों की निगाह 3 दिसंबर की
मतगणना पर टिकी है। राज्य में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है।
राजस्थान के मतदाता हर चुनाव में सरकारों को उखाड़ फेंकने के लिए जाने जाते हैं। इस बार
हुआ भारी मतदान बदलाव का संकेत दे रहा है। चुनावी इतिहास बताता है हर बार जब चुनाव में वोट प्रतिशत
बढ़ा है तो बीजेपी को इसका लाभ मिला है, जबकि वोट प्रतिशत घटने पर कांग्रेस को लाभ होता है।
राजस्थान में बीते 30 सालों के रिकॉर्ड को देखें तो हर पांच साल में सरकार बदलने का रिवाज चला आ रहा
है। चुनावों की घोषणा के समय लगभग सभी खबरिया चैनलों के ओपिनियन पोल में निर्विवाद रूप से
भाजपा की बढ़त दिखाई गई थी। सटोरिये भी भाजपा की जीत की भविष्यवाणी कर रहे है। सत्ता विरोधी
लहर का दबदबा भी स्पष्ट रूप से देखा गया । इस बार का चुनाव राजनीतिक पार्टियों के भारी धूम धड़ाके
और गाजे बाजे के साथ संपन्न हुआ। राजस्थान में सत्ता विरोधी लहर के बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
अपनी सरकार बचाने के लिए दिन रात एक किये। वहीं भाजपा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसे अपनी
सरकार बनाने की उम्मीद पाले हुए है। राजस्थान में तीन दशक से एक परपंरा बनी हुई है कि 5 साल कांग्रेस
सत्ता में रहती है और 5 साल भाजपा। राजस्थान के पिछले छह चुनावों पर गौर करें तो पाएंगे यहाँ हर बार
सरकार बदलती रही है। 1993 में भाजपा, 1998 में कांग्रेस, 2003 में भाजपा , 2008 में कांग्रेस 2013 भाजपा
और 2018 में फिर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया था। सत्ता परिवर्तन का यह रिवाज कायम रहता है तो इस
बार बारी भाजपा की है। हालाँकि यह तो नतीजे ही बताएँगे कि राजस्थान में रिवाज कायम रहता है या
गहलोत सरकार परंपरा को तोड़ पाती है।

मतदान के बाद कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे है। मुख्यमंत्री
अशोक गहलोत ने कहा कि कांग्रेस के खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है और पार्टी राज्य में फिर से
सरकार बनाएगी। उन्होंने कहा, ऐसा लगता है कि कोई अंडरकरंट है। लगता है कि कांग्रेस दोबारा सरकार
बनेगी। वहीँ पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने गहलोत के अंडरकरंट वाले बयान पर कटाक्ष करते हुए कहा, मैं
उनसे सहमत हूं। वास्तव में एक अंडरकरंट है लेकिन यह बीजेपी के पक्ष में है। तीन दिसंबर को कमल
(भाजपा का चुनाव चिह्न) खिलेगा।
प्रदेश के सियासी क्षेत्रों में इस बात की चर्चा हो रही है मुख्यमंत्री कौन बनेगा। भाजपा में वसुंधरा
राजे, राजेंद्र राठौड़, सांसद सीपी जोशी, सतीश पूनिया आदि की चर्चाओं का बाजार गर्म है।
वसुंधरा के विकल्प के रूप में दिया कुमारी का नाम भी लिया जा रहा है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी
के मन में क्या है इसकी थाह लगाना बड़ी मुश्किल है। मोदी ने हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर
को मुख्य मंत्री बनाकर धमाका कर दिया था। वहीं कांग्रेस में अशोक गहलोत बनेंगे या सचिन
पायलेट इसकी चर्चा की जा रही है। यह भी बताया जाता है वसुंधरा से भाजपा आलाकमान
नाराज है।

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