
धार्मिक स्थलों पर नियम-कायदों का सख्ती से पालन सुनिश्चित हो
हाल ही में ओडिशा के पुरी में गुंडिचा मंदिर के पास 29 जून 2025 को रविवार तड़के हुई भगदड़ में तीन लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। वास्तव में यह घटना बहुत ही अधिक दुखद, शर्मनाक व चिंताजनक है। चिंताजनक इसलिए क्यों कि बार-बार ऐसी घटनाएं हमारे यहां कहीं न कहीं घटित होती न रहतीं हैं और इन घटनाओं से कोई संज्ञान नहीं लिया जाता है। यह कोई पहली बार नहीं है जब देश में भगदड़ जैसी घटना में लोग मारे गए हैं और कुछ लोग घायल हुए हैं। रह-रहकर ऐसी घटनाएं हमें मीडिया की सुर्खियों में देखने सुनने को हमें मिलतीं रहतीं हैं, जबकि एहतियात अपनाकर ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है। हमारा देश एक बहुत ही धार्मिक देश है और यहां अनेक धर्मों, संप्रदायों व वर्ग के लोग रहते हैं। अलग-अलग धर्मों के लोगों यहां कोई न कोई धार्मिक आयोजन करते रहते हैं। रथयात्रा भी इसी प्रकार का एक बड़ा और धार्मिक आयोजन है। पाठकों को जानकारी होगी कि सैंकड़ों साल से इस रथयात्रा का आयोजन किया जा रहा है है। हर वर्ष रथयात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़(लाखों की भीड़) उमड़ती है। दरअसल ऐसी घटनाएं तब जन्म लेतीं हैं,जब सुरक्षा के पुख्ता व सटीक इंतजाम नहीं किए जाते। हमारी सबसे बड़ी कमी यह भी है कि हम पूर्व में हुई घटनाओं से कभी सबक नहीं लेते हैं और घटना के घटित होने के बाद कदम उठाते हैं और बाद में सबकुछ भूल जाते हैं, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। कहना ग़लत नहीं होगा कि भगदड़ से जुड़े ऐसे हादसों से सबक नहीं लेने का ही यह नतीजा है कि पुरी में ऐसे हादसे की पुनरावृत्ति हो गई। वास्तव में होना तो यह चाहिए कि हम समय रहते श्रद्धालुओं की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करें और गलतियों से सीख लें। ऐसा भी नहीं है कि धार्मिक स्थलों पर सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए जाते हैं, लेकिन सुरक्षा व्यवस्थाओं को हल्के में लिया जाता है और घटनाएं घटित हो जातीं हैं। हालांकि, ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने पुरी में जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान हुई भगदड़ के बाद श्रद्धालुओं से माफ़ी मांगी है तथा उन्होंने अधिकारियों को ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू करने का निर्देश भी दिया है। पाठकों को बताता चलूं कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए, उन्होंने यह बात कही है कि, “शरधाबली में महाप्रभु के दर्शन की भक्तों में अत्यधिक उत्सुकता के कारण, भीड़ और अफरा-तफरी के चलते एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी। व्यक्तिगत रूप से, मैं और मेरी सरकार सभी जगन्नाथ भक्तों से क्षमा मांगते हैं। हम उन भक्तों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं, जिनकी शरधाबली में जान चली गई और महाप्रभु जगन्नाथ से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें इस गहरे दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें।' बहरहाल, मुख्यमंत्री जी ने जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही है, यह अच्छी बात है, ऐसा होना भी चाहिए। लेकिन यहां मुख्य सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस और प्रशासन को ऐसे बड़े धार्मिक आयोजनों के दौरान संभावित भीड़ का अंदाजा नहीं रहता है ? यदि इस प्रश्न का उत्तर हां है तो श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षा इंतजामों पर क्या पुलिस और प्रशासन को पर्याप्त ध्यान नहीं देना चाहिए था ? तमाम व्यवस्थाओं के बावजूद पुरी में यह हादसा विभिन्न सुरक्षा इंतजामों पर कहीं न कहीं सवाल खड़े करता है। मीडिया रिपोर्ट्स बतातीं हैं कि इस घटना(भगदड़) के लिए प्रशासनिक लापरवाही और नाकामी को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। हालांकि जांच एजेंसियों की रिपोर्ट आने के बाद ही सबकुछ स्पष्ट हो पाएगा, लेकिन प्रारंभिक स्तर पर जो कारण सामने आ रहा है उसके मुताबिक श्रद्धालुओं के आने-जाने का एक ही रास्ता माना जा रहा है। इतना ही नहीं, रास्ते पर भी वीआइपी को प्रवेश करवाने के लिए निकास द्वार बिना किसी पूर्व सूचना के बंद कर दिया गया। दरअसल, होना तो यह चाहिए था यह इस व्यवस्था को लागू करने से पहले वैकल्पिक इंतजाम किए जाते। वास्तव में, भगदड़ एक खतरनाक स्थिति है, जिसमें भीड़ अनियंत्रित होकर एक ही दिशा में भागती है, जिससे जान-माल का नुकसान हो सकता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि भगदड़ से बचने के लिए, निकास द्वार स्पष्ट रूप से चिह्नित होने चाहिए। इतना ही नहीं, भीड़ प्रबंधन प्रभावी, पुख्ता होना चाहिए, और आपातकालीन स्थिति में लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए योजना भी होनी चाहिए।हाल फिलहाल,सरकार ने इस प्रकरण में लापरवाही मानते हुए कलेक्टर, एसपी, डीसीपी कमांडेट पर कार्रवाई की भी है। इतना ही नहीं, मृतकों के लिए 25-25 लाख रुपए के मुआवजे का ऐलान भी किया गया है, लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या इतना करना ही काफी है ? वास्तव में आदमी की जान की कीमत कभी भी पैसों में नहीं आंकी जा सकती है। मुआवजा अपनी जगह ठीक है, लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि पैसों से या यूं कहें कि मुआवजा देने से जान की भरपाई कभी भी संभव नहीं हो सकती है। भगदड़ में जान गवाने वालों के परिजनों और घायल हुए श्रद्धालुओं को जो जख्म मिले हैं, उन पर मरहम तब ही लगेगा जब इस तरह की दुर्घटनाओं से जुड़े तमाम संभावित कारणों का पता लगाकर उन्हें हमेशा के लिए दूर कर दिया जाएगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज देश के अनेक तीर्थ और धर्मस्थलों पर इस तरह के हादसे लगातार होते रहते हैं, लेकिन इनसे सीख बिरले ही ली जाती है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसे हादसों से सीख लिया जाना बहुत जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति संभव नहीं हो सके। वास्तव में ऐसे भीड़भाड़ वाले इलाकों, स्थानों पर नियम-कायदों का सख्ती और ईमानदारी के साथ पालन किया जाना चाहिए। सुरक्षा की जिम्मेदारी बहुत ही महत्वपूर्ण है। प्रशासन व सरकार को यह चाहिए कि वह हादसों से जुड़े तमाम कारणों का पता लगाकर सुधार के तमाम उपाय करे, तभी वास्तव में ऐसे हादसों से बचा जा सकेगा, अन्यथा हादसे घटित होंगे ही।