 
                        
        तन मन को सुकून देती है गौरैया की चहचहाहट
विश्व गौरैया दिवस हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है। घर-आंगन में दिनभर दाना चुगने वाली गौरैया
यानि हमारी प्यारी चिड़िया अब गायब होती जा रही है। चिड़िया की चहचहाहट अब हमें अलसुबह नींद से
नहीं जगाती। चिड़िया की चहचहाट का स्थान अब मोबाइल की घनघनाहट ने ले लिया है। अब हमें चिड़िया
नहीं मोबाइल जगाता है। वह भी एक समय था जब घर आंगन में फुदकती नहीं चिड़िया को देखकर तन मन
आल्हादित हो जाता था। महानगरीय संस्कृति में चिड़िया के दर्शन लगभग दुर्लभ हो गए है, फिर भी कभी
कभार जब इनकी चिं चिं की आवाज़ सुनाई देती है तो इन्हें देखने और सुनने को मन उतावला हो जाता है।
पक्षियों के प्रति हमारी हमारी सोच यूँ ही संकुचित होती गयी तो यह दुर्लभ प्रजाति भी किताबों और कागजों
में चित्र के रूप में ही देखने को मिलेगी।
गौरेया को गुजरात में चकली, मराठी में चिमनी, पंजाब में चिड़ी, जम्मू तथा कश्मीर में चेर, तमिलनाडु तथा
केरल में कूरूवी, पश्चिम बंगाल में चराई पाखी तथा सिंधी भाषा में झिरकी कहा जाता है। एक दशक पहले तक
गौरैया के झुंड सार्वजनिक स्थलों पर भी देखे जा सकते थे। लेकिन अब गौरैया देखने को कम ही मिलती है।
निकट भविष्य में इसे चित्रों में ही देखने को मिलेगा।
मोबइल फ़ोन चिड़िया की चहचहाहट के चुप हो जाने का एक प्रमुख कारण बन गया है। एक रिपोर्ट के
मुताबिक सबसे चौंकाने वाली खोज यह है कि इमारतों की छतों पर मोबाइल फ़ोन कंपनियों के बढ़ते हुए
एंटेना और ट्रांसमीटर टावर गौरैया चिड़ियों की घटती हुई संख्या का मुख्य कारण बनते जा रहे हैं। ये टॉवर
रात दिन 900 से 1800 मेगाहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी का विद्युत चुंबकीय विकिरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) पैदा
करते हैं, जो चिड़ियों के शरीर के आर पार चला जाता है। उनके तंत्रिकातंत्र और उनकी दिशाज्ञान प्रणाली को
प्रभावित करता है। उन्हें अपने घोंसले और चारे की जगह ढूंढने में दिशाभ्रम होने लगता है। जिन चिड़ियों के
घोंसले किसी मोबाइल फ़ोन टॉवर के पास होते हैं, उन्हें एक ही सप्ताह के भीतर अपना घोंसला त्याग देते देखा
गया।
दुनियाभर में पिछले 12 सालों से विश्व गौरैया दिवस मनाया जा रहा है। इस दिवस को मनाने की वजह
गौरैयाओं के अस्तित्व को बचाना है। गौरैया भारत में पाया जाने वाला एक सामान्य पक्षी है। गौरेया दिवस को
नासिक में रहने वाले मोहम्मद दिलावर के प्रयत्नों से मनाया जा रहा है। उन्होंने गौरैया संरक्षण के लिए नेचर
फॉर सोसाइटी नामक एक संस्था की शुरुआत की थी। गौरेया के संरक्षण के लिए अपनी छत पर दाना-पानी
रखें। इसके साथ ही अधिक से अधिक पेड़ और पौधे लगाएं। कृत्रिम घोंसलों का निर्माण करें जिससे स्वछन्द
होकर वे विचरण कर सके।
एक समय था जब आपको चिड़िया गाँव हो या शहर सड़क हो या खेत अथवा घर का कोई कोना हर जगह
चहचहाती मिल जाती थी। आज वह कहां खो गयी जिसे बचपन में अकसर नीले आसमान में झुण्ड के रूप में
उड़ते देखता था। गौरेया या चिड़िया एक घरेलू पक्षी है। यह पक्षी यूरोप और एशिया में काफी संख्या में पायी
जाती है। बताया जाता है पिछले 40 सालों में भारत में गौरैया की तादाद 60 प्रतिशत तक घटी है। भूरे रैंक के
पंखों वाली और घरों में अपनी चीं-चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती है जिसकी आवाज से
लोग जगते थे और जिसकी आवाज प्रकृति और पेड़ पौधों के पास होने का अहसास दिलाती थी। यह आवाज
अब खत्म होने की कगार में है। गौरैया पक्षी के अस्तित्व पर इस समय संकट के बादल छाये हुए है। गौरेया
पासेराडेई परिवार की सदस्य है, लेकिन कुछ लोग इसे श्वीवर फिंचश् परिवार की सदस्य मानते हैं। इनकी
लम्बाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है तथा इनका वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है। एक समय में इसके कम से
कम तीन बच्चे होते हैं। गौरेया अधिकतर झुंड में ही रहती है। भोजन तलाशने के लिए गौरेया का एक झुंड
अधिकतर दो मील की दूरी तय करता है। यह पक्षी कूड़े में भी अपना भोजन ढूंढ़ लेते हैं।
पर्यावरण संतुलन में गौरैया महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गौरैया अपने बच्चों को अल्फा और कैटवॉर्म नामक
कीड़े खिलाती है। ये कीड़े फसलों के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। वे फसलों की पत्तियों को मारकर नष्ट कर देते
हैं। इसके अलावा, गौरैया मानसून के मौसम में दिखाई देने वाले कीड़े भी खाती है। 
- बाल मुकुन्द ओझा
 
                                                                        
                                                                    