महिला अत्याचार की पराकाष्ठा : रक्षक ही बन रहे है भक्षक
जिस समाज में रक्षक ही भक्षक बन जाते है वहां सामाजिक प्रगति और विकास की बातें करना
बेमानी होंगी। देश में महिला सुरक्षा को लेकर किये जा रहे तमाम दावे खोखले साबित हो रहे है।
हम यहां बात कर रहे है महिला अत्याचारों की पराकष्ठा की। महिलाओं के प्रति अपराधों में
लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। सरकार महिलाओं की सुरक्षा को लेकर लाख दावे करती है,
लेकिन फिर भी अपराधियों के दिल में कोई भी खौफ घर नहीं कर सका। हालात यहां तक पहुंच
गए है कि अपराधियों को सजा देने वाले ही गुनहगार है । राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो
(एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 से 2022 के बीच पांच वर्षों की अवधि में
हिरासत में दुष्कर्म के 275 मामले दर्ज किए गए। अपराधियों में पुलिसकर्मी, लोक सेवक,
सशस्त्र बलों के सदस्य के अलावा जेलों, सुधार गृहों एवं अस्पतालों के कर्मचारी भी शामिल हैं।
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में ऐसे मामलों में धीरे-धीरे कमी आई है। 2017 से 2022 के बीच
हिरासत में महिलाओं से दुष्कर्म के सबसे अधिक 92 मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए। वहीं,
मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा। यहां 43 मामले दर्ज कराए गए हैं।
भारत को संस्कार, संस्कृति और मर्यादा की त्रिवेणी कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में नारी अस्मिता को
बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता। अर्थात जहां
नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। मगर आज सब कुछ उल्टा पुल्टा हो रहा है। न नारी की
पूजा हो रही है और देवताओं की जगह सर्वत्र राक्षस ही राक्षस दिखाई दे रहे है। समाज के नजरिए में भी
महिलाओं के प्रति अब तक कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है। ऐसा लगता है जैसे हमारा देश भारत
धीरे-धीरे बलात्कार की महामारी से पीड़ित होता जा रहा है। यौन अपराध चिंताजनक रफ्तार से बढ़ रहे हैं।
पिछले चार दशकों में अन्य अपराधों की तुलना में रेप की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है और दोषियों
को सजा देने के मामले में हम सबसे पीछे हैं। दो साल की बच्ची से लेकर बुजुर्ग महिला तक दुष्कर्म की
शिकार हो रही है। ऐसे में कानून के पालनहार कोई सख्त कदम उठाने के बजाय अपनी गलतियों को छिपाने
के लिए नित नए बहाने ढूंढ रहे है। आजकल प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर महिलाओं के साथ
दुष्कर्म और छेड़छाड़ की खबर रोज दिखाई जाती है। इस तरह के अत्याचार कब रुकेंगें। क्या हम
सिर्फ मूक दर्शक बन खुद की बारी का इंतजार करेंगे। लड़कियों पर अत्याचार पहले भी हो रहे थे
और आज भी हो रहे हैं अगर इसके रोकने के कोई ठोस उपाय नहीं किये गये। आज भी हमारे
समाज में बलात्कारी सीना ताने खुले आम घूमता है और बेकसूर पीड़ित लड़की को बुरी और
अपमानित नजरों से देखा जाता है । न तो समाज अपनी जिम्मेदारी का माकूल निर्वहन कर रहा
है और न ही सरकार।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रतिदिन लगभग 50 बलात्कार के
मामले थानों में पंजीकृत होते हैं। इस प्रकार भारत भर में प्रत्येक घंटे दो महिलाएं बलात्कारियों
के हाथों अपनी अस्मत गंवा देती हैं, लेकिन आंकड़ों की कहानी पूरी सच्चाई बयां नहीं करती।
बहुत सारे मामले ऐसे हैं, जिनकी थानों में रिपोर्ट ही नहीं हो पाती। विश्व स्वास्थ संगठन के
एक अध्ययन के अनुसार, भारत में प्रत्येक 54वें मिनट में एक औरत के साथ बलात्कार होता
है।’ वहीं महिलाओं के विकास के लिए केंद (सेंटर फॉर डेवलॅपमेंट ऑफ वीमेन) अनुसार, ‘भारत
में प्रतिदिन 42 महिलाएं बलात्कार का शिकार बनती हैं। इसका अर्थ है कि प्रत्येक 35वें मिनट
में एक औरत के साथ बलात्कार होता है।
सच तो यह है कि एक छोटे से गांव से देश की राजधानी तक महिला सुरक्षित नहीं है। अंधेरा होते-होते
महिला प्रगति और विकास की बातें छू-मंतर हो जाती हैं। रात में विचरण करना बेहद डरावना लगता है।
कामकाजी महिलाओं को सुरक्षित घर पहुँचने की चिंता सताने लगती है। देश में महिलाओं के विरुद्ध
अपराधों में कमी नहीं आरही है। भारत में आए दिन महिलाएं हिंसा और अत्याचारों का शिकार हो रही हैं। घर
से लेकर सड़क तक कहीं भी महिला सुरक्षित नहीं है। देश में महिला सुरक्षा को लेकर किये जा रहे तमाम दावे
खोखले साबित हुए है। महिला सुरक्षा को लेकर देशभर से रोजाना अलग-अलग खबरें सामने आती रहती हैं।
देश में महिलाओं की स्थिति पर हमेशा ही सवाल खड़े होते रहे हैं। महिलाओं की सुरक्षा के तमाम दावों और
वादों के बाद भी उनकी हालत जस की तस है। महिलाएं रोज ही दुष्कर्म, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा और अत्याचार
से रूबरू होती है।