स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक -पिंगली वैंकेया
हर साल हम स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व मनाते हैं। इन राष्ट्रीय पर्वों पर देश की विभिन्न सरकारी इमारतों, कार्यालयों, स्कूलों, कालेजों, विश्वविद्यालयों, विभिन्न सार्वजनिक स्थानों और आजकल तो हम अपने घरों में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोगों को यह जानकारी होगी कि हमारे राष्ट्रीय ध्वज को डिजाइन किसने,कब और कहां किया था ? 15 अगस्त, 2023 को देश अपना 77 वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। भारत सरकार ने वर्ष 2022 से हर घर तिरंगा 13 से 15 अगस्त तक अभियान की शुरुआत भी कर दी है। वहीं, 02 अगस्त को उस महान इंसान(पिंगली वेंकैया)का जन्मोत्सव भी है, जिन्होंने हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को डिजाइन किया था। महान् स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण करने की दिशा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण नाम है और हम सभी को उनके बारे में यह जानकारी आवश्यक रूप से होनी चाहिए कि आखिर पिंगली वेंकैया कौन थे ? तो जानकारी देना चाहूंगा कि पिंगली वेंकैया वह व्यक्तित्व रहे हैं, जिन्होंने हमारे राष्ट्रीय ध्वज को डिजाइन किया था। बहुत ही दिलचस्प है कि पांच साल तक दुनिया भर के देशों के विभिन्न झंडो का अध्ययन करने के बाद पिंगली वैकेंया ने पांच साल यानी कि वर्ष 1916 से 1921 तक काम करने के बाद, हमारे राष्ट्र के लिए तिरंगे को डिजाइन किया था। इसके बाद साल 1931 में इस डिजाइन को अनुमति मिली थी। जानकारी मिलती है कि वर्ष 1916 में, उन्होंने अन्य राष्ट्रों के झंडों पर एक पुस्तिका(ए नेशनल फ्लैग फोर इंडिया) का प्रकाशन
भी किया था, भारत के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज, जिसमें भारतीय ध्वज बनाने के लगभग 30 डिजाइन पेश किए गए थे। पिंगली वेंकैया का जन्म आंध्र प्रदेश राज्य में मछलीपट्टनम में एक तेलगू ब्राह्मण परिवार में 2 अगस्त 1876 को हुआ था। उनके पिता का नाम हनुमंतरायुडु और मां का नाम वेंकटरत्नम्मा था। उन्होंने मछलीपट्टनम में हिंदू हाई स्कूल से पढ़ाई की थी। मद्रास से अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए थे। जानकारी यह भी मिलती है कि भारत लौटने के बाद उन्होंने एक रेलवे गार्ड के रूप में और फिर बेल्लारी में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में भी काम किया था। पिंगली वेंकैया ने लाहौर के एंग्लो वैदिक महाविद्यालय से उर्दू और जापानी भाषा का अध्ययन भी किया था। जापानी भाषा पर तो उनकी इतनी पकड़ थी कि लोग उन्हें 'जापान वेंकैया' के नाम से भी पुकारते थे।
उन्हें पट्टी वेंकैया के नाम से भी जाना जाता था क्योंकि उन्होंने कंबोडिया कपास में रिसर्च की थी। पट्टी का यहां अर्थ है 'कपास' जो मछलीपट्टनम के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के एंग्लो-बोअर युद्ध में भी भाग लिया था। वेंकैया अनेक विषयों के जानकार थे। विशेष रूप से उन्हें भूविज्ञान और कृषि क्षेत्र से लगाव था। पिंगली वेंकैया महज 19 साल की उम्र में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सेना नायक बन गए थे और सेना में रहते दक्षिण अफ्रीका में एंग्लो-बोअर युद्ध के बीच राष्ट्र पिता महात्मा गांधी जी से उनकी मुलाकात हुई थी। कहते हैं कि गांधीजी से मिलकर वो इतने अधिक प्रभावित हुए थे कि वे हमेशा के लिए भारत लौट आए और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए थे। वास्तव में, बहुत कम लोग ही यह बात जानते हैं कि पिंगली एक जियोलॉजिस्ट(भूगर्भ विज्ञानी)थे और उन्होंने आंध्र प्रदेश नेशनल कॉलेज में लेक्चरर के तौर पर भी काम किया था।अपने गृहनगर मछलीपट्टनम में एक शैक्षिक संस्थान की शुरुआत भी की थी। पिंगली ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सिपाही के तौर पर दक्षिण अफ्रीका में भी काम किया था और यहीं पर पिंगली गांधी जी के विचारों से बेहद प्रभावित हुए थे। जानकारी मिलती है कि गांधी जी ने ही पिंगली वेंकैया को भारत के राष्ट्रीय ध्वज डिजाइन करने की अनुमति दी थी। वास्तव में, काकीनाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान वेंकैया ने भारत का खुद का राष्ट्रीय ध्वज होने की आवश्यकता पर बल दिया था और, उनका यह विचार गांधी जी को बहुत पसन्द आया। इसके बाद गांधी जी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का सुझाव दिया।यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक बैठक के दौरान् राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार किए गए एक झंडे को स्वीकृति दी थी। इस झंडे में लाल और हरे रंग की पट्टी थी और इसके बीचों-बीच गांधी जी का चरखा स्थापित था। यहां यह भी एक तथ्य है कि लाल और हरे रंग के झंडे को जो कि पिंगली द्वारा डिजाइन किया गया था, (1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में) को कांग्रेस की ओर से अधिकारिक तौर पर स्वीकृति नहीं मिली थी। विकीपीडिया पर उपलब्ध जानकारी से पता चलता है कि इसी बीच, जालंधर के हंसराज ने झंडे में चक्र चिह्न बनाने का सुझाव दिया था। इस चक्र को प्रगति और आम आदमी के प्रतीक के रूप में माना गया। बाद में गांधी जी के सुझाव पर पिंगली वेंकैया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी भारत के राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। वर्ष 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफ़ेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया और बाद में राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली। जानकारी यह भी मिलती है कि साल 1931 तक कांग्रेस की हर बैठक में इसी झंडे का प्रयोग होता रहा था। उल्लेखनीय है कि 22 जुलाई 1947 को ध्वज में सफेद रंग की पट्टी और अशोक चक्र जोड़ने के बाद पिंगली द्वारा डिजाइन किए गए ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के लिए चुना गया था। वर्ष 2021 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी द्वारा भारत रत्न के लिए उनके नाम का प्रस्ताव भी किया गया था। वर्ष 2009 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया था। पिंगली वह व्यक्तित्व थे जिन्होंने देशभक्ति के रंगों से संपूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरोने का काम किया था। वर्ष 2014 में आल इंडिया रेडियो के विजयवाड़ा स्टेशन का नाम भी उनके नाम पर रखा गया था। कुछ समय पहले संस्कृति मंत्रालय ने दिल्ली में तिरंगा उत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें पिंगली वैंकेया की याद में एक विशेष स्मारक डाक टिकट भी जारी किया गया था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और भारत के राष्ट्रीय ध्वज का डिजाइन तैयार करने वाले पिंगली वेंकैया, गांधीवादी सिद्धांतों के अनुयायी थे। लाल किले की प्राचीर पर लहराते भारतीय ध्वज को देखने की अपनी आखिरी इच्छा पूरी करने में असमर्थ होकर 4 जुलाई 1963 को उनकी मृत्यु हो गई, क्योंकि उनके परिवार के पास उन्हें दिल्ली ले जाने के लिए वित्तीय साधन नहीं थे। आज भले ही पिंगली हमारे बीच मौजूद नहीं हैं लेकिन तिरंगे झंडे का उनका उल्लेखनीय निर्माण/डिजाइन उनकी अदम्य भावना और देश के प्रति प्रेम का प्रमाण है। वे सभी भारतीयों के लिए सदैव स्मृतियों में रहेंगे और उनकी देशभक्ति, उनके आदर्श हरेक भारतवासी को प्रेरणा देते रहेंगे। वे एक समर्पित शिक्षाविद् और सामाजिक सुधारों के प्रबल समर्थक और सच्चे देशभक्त थे। राष्ट्रीय ध्वज में अपने योगदान के अलावा, पिंगली वेंकैया ने अपने पूरे जीवन में विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक पहलों में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
सुनील कुमार महला