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(व्यंग्य) : तोताराम जी उवाच !

(व्यंग्य) : तोताराम जी उवाच !

तोताराम जी मीडिया में महंगाई की खबरें देखते हुए हमसे कह रहे थे कि ये मीडिया गाहे-बगाहे महंगाई पर कुछ भी कहता रहता हैं। और कोई समाचार इन मीडिया वालों के पास है नहीं, हमेशा महंगाई का गाना गाते रहते हैं। कभी महंगाई को कुछ तो कभी कुछ संज्ञा दे देते हैं। मसलन-' महंगाई-डायन, महंगाई चुड़ैल, महंगाई सुरसा वगैरह वगैरह। हमें पता चला कि महंगाई के विषय पर तोताराम जी मीडिया-सीडिया की बातों पर कभी भी जऱा सा भी विश्वास नहीं करते हैं। उस दिन वो हमसे कहने लगे कि ये मीडिया वाले जो मन में आए अंट-शंट कुछ भी बकते रहते हैं। महंगाई-वहंगाई कुछ भी नहीं बढ़ रही। काहे की महंगाई, कहाँ है महंगाई। महंगाई पर चर्चा करते हुए तोताराम जी ने हमें ज्ञान दिया कि-' लेखक भैय्या ! वैसे तो अमूमन हमारी धर्मपत्नी जी ही बाजार से सब्जियाँ खरीदतीं हैं। सब्जी-वब्जी लाने का जिम्मा उसी का है लेकिन एक दिन उनकी तबीयत खराब होने के कारण उन्होंने सब्जी लाने का जिम्मा हमें सौंप दिया। तोताराम जी बताने लगे-'लेखक भैय्या ! उस दिन सब्जी लाने के लिए जब हम सब्जी मार्केट गए तो हमने टमाटर, घीया, अदरक, बैंगन, आलू,मटर के साथ ही भिंडी के भाव पूछ लिए। दुकानदार बोला कि भिंडी तीस रूपये पाव है, यानि कि 120 रूपये किलो। दुकानदार ने कहा-'एक किलो तौल दूं।' हमने कहा-'जऱा एक पाव भिंडी ही तौल दीजिए। एक किलो भिंडी का हम आखिर क्या करेंगे ? बच्चे तो आजकल वैसे भी हरी सब्जियां खाते नहीं हैं, क्योंकि वे तो बर्गर-पिज्जा-नूडल्स खाते हैं और हम घर में सब्जी खाने वाले दो ही प्राणी हैं।' दुकानदार ने पहले तो हमारी तरफ कौतूहल भरी नजरों से घूर कर देखा और फिर पाव भिंडी तौलने लगा तो भिंडी 250 ग्राम के स्थान पर 254 ग्राम हो गई। जब दुकानदार 4 ग्राम भिंडी तौल में से वापस निकालने लगा तो हम बोलें भैय्या ! चार ग्राम ही तो फालतू हैं, रहने दो। क्या फर्क पड़ता है ? ऐसे क्या सोना तौल रहे हो ? इस पर दुकानदार बोला- फर्क पड़ता है और बहुत फर्क पड़ता है जी। तभी तो हम दुकानदार आजकल बाट वाला तराजू नहीं रखते। सुनार वाला 'धर्मकांटा' रखने लगे हैं। एकदम एक्यूरेट व वाजिब तौलते हैं, न एक ग्राम कम न दो ग्राम ज्यादा। ये आम जनता ने हम सब्जी वालों को हमेशा से लूटा ही लूटा है। एक पाव सब्जी लेते हैं और साथ में फ्री धनिया और हरी मिर्च भी डलवाते हैं। ये कोई बात हुई भला। अब हम सब्जी वाले यूं ही चार-चार ग्राम आपकी तरह सबको ज्यादा तौलने लगे तो हमें एक क्विंटल में 1600 ग्राम का घाटा हो जाता है और 1600 ग्राम का मतलब है सीधा 192 रूपये का नुकसान। लोगों ने हम भोले-भाले सब्जी वालों की दुकानों को 'ऑनलाइन परचेजिंग' की दुकानें/ऑनलाइन शॉप्स समझ लिया है। ऑनलाइन में एक के साथ एक फ्री का ऑफर होता है और ये ग्राहक हमारे साथ भी 'ऑनलाइनगिरी' अपनाते हैं। और वे ऑनलाइन की तर्ज़ पर हमसे धनिया और मिर्च फ्री डलवाते हैं। और तो और कई ग्राहक तो इतने ढ़ीठ होते हैं कि दुकान पर खड़े-खड़े ही किसी बकरी की भांति एकाध गाजर, आठ-सात मटर, एकाध मूली, एक-दो टमाटर बिना हमसे पूछे ही सब्जी का मोल-भाव करते करते ही रगड़ देते हैं। बहुत से तो भाव पूछने और सब्जियों का स्वाद चखने ही हमारे पास आतें हैं। हम आपको चार ग्राम भिंडी फालतू दें तो दें कैसे ? ये तो भला हो इन 'गोल्डस्मिथ' का जिन्होंने इतनी अभूतपूर्व चीज 'धर्मकांटे' का निर्माण किया। वरना हम तो कब के लुट जाते। तोताराम जी बोलें-' लेखक भैय्या ! वो सब्जी वाला इतनी बातें कहकर ही नहीं ठहरा। वह बोलता ही गया। आगे सुनो ! वो सब्जी वाला हमसे कहने लगा-' शुक्र मनाओ कि अभी तक तो हमने 'गोल्डस्मिथ' वाला धर्मकांटा ही अपनी सब्जी की दुकान पर लगाया है। यदि तुम्हारे जैसे ग्राहक यूं ही हमारे पास आते रहे,  और महंगाई डायन के पंख यूं ही फड़फड़ाते रहे तो हम सब्जी दुकानदारों को इन धर्मकांटों के बाहर  'कांच का फ्रेम' और लगवाना पड़ेगा। स्साला ! हवाएँ भी आजकल बहुत तेज चलतीं हैं, ग्राहकों का फेवर करतीं हैं और धर्मकांटों का बैलेंस बिगड़ जाता है, ज्यादा तुल जाता है। इन हवा- हवाईयों से धर्मकांटे के मापांकन( केलीब्रेशन) की सटीकता में हम सब्जी वालों के मापांकन में घोर बाधा उत्पन्न होती है।' तोताराम जी की बातें सुनकर हमने कहा-'इसका अर्थ यह हुआ कि आप भी मानतें हैं कि महंगाई बढ़ रही है।' तो इस पर तोताराम जी ने कहा-' महंगाई-वहंगाई कुछ भी नहीं बढ़ रही। लोगों की नीयत में फर्क आ गया है। लोग स्वार्थी और लालची हो गए हैं। इन सब्जी वालों को इतना भी इमान नहीं रहा है कि कोई एकाध मटर, टमाटर खा भी लेता है तो क्या हुआ ? इतने तो एटीकेट्स सब्जी वालों में होने ही चाहिए। आखिर संस्कृति-संस्कार व धैर्य-संयम नाम की भी कोई चीज होती है।' हम तोताराम जी की बातें सुनते रह गए।
 
 

सुनील कुमार महला, स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार

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