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वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 486 वी जयंती हर्षोल्लास से मनाई

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 486 वी जयंती हर्षोल्लास से मनाई

छीपाबडौद. विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान द्वारा संचालित आदर्श विद्या मंदिर केलखेड़ी छीपाबड़ौद में मनाई महाराणा प्रताप जयंती । विद्यालय के प्रचार प्रमुख शानू प्रकाश चक्रधारी ने बताया कि कार्यक्रम का शुभारंभ प्रधानाचार्य हरिसिंह गोचर ने मां सरस्वती व महाराणा प्रताप के चित्रों के समक्ष पुष्प अर्पित व दीप प्रज्वलित कर किया । कार्यक्रम के इस अवसर पर प्रधानाचार्य ने अपने उद्बोधन में बताया कि वीरों के वीर भारत की आन-बान-शान एवं युवाओं के प्रेरणास्रोत महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ई. को कुंभलगढ़ राजस्थान में हुआ था । अधिकांशत: इनका जन्मदिन हिंदू पंचांग के अनुसार जेठ मास की तृतीया को गुरु पुष्य नक्षत्र में मनाते हैं । ये वीर, पराक्रमी, देशभक्त, कुशल योद्धा, सफल रणनीतिकार, आदि अनेकों गुणों से सुसज्जित थे । यह वीर महाराणा प्रताप के शौर्य का ही परिणाम था कि अकबर के पास भारी-भरकम सेना होने के बावजूद भी उन्हें कभी गिरफ्तार नहीं कर सके ना ही कभी मेवाड़ पर पूर्ण अधिकार जमा सके । ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात मुगलों ने कुंभलगढ़,गोगुंदा, उदयपुर और आसपास के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था लेकिन अकबर और उसकी सेना महाराणा प्रताप का बाल भी बांका नहीं कर सकी । उन्होंने कभी अकबर से हार नहीं मानी । अकबर ने 1576 को हुए हल्दीघाटी युद्ध से लेकर 1582 में हुए दिवेर के युद्ध के बीच लाखों सैनिकों को महाराणा प्रताप से युद्ध हेतु भेजा लेकिन महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी का युद्ध हो या दिवेर का युद्ध अपने रणकौशल से हमेशा मुगलों को धूल चटाई । अंग्रेज इतिहासकारो के अनुसार महाराणा प्रताप की हल्दीघाटी के युद्ध में हुई जीत के कारण ही इस भूमि को "थर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़ा" के सम्मान से नवाजा वहीं दिवेर के युद्ध में उनकी वीरता को देखते हुए महाराणा प्रताप को बैटल ऑफ़ दिवेर कहा है ।

 

 

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