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सोमवार से प्रारंभ हुए 8 दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण

सोमवार से प्रारंभ हुए 8 दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण

नागौर। जैन समाज के जयमल संप्रदाय में सोमवार को 8 दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण की आराधना प्रारंभ हुई। 21 अगस्त को संवत्सरी महापर्व मनाया जाएगा। जयगच्छीय साध्वी प्रमुखा महासती शारदा कंवर महाराज आदि ठाणा 6 के सानिध्य व श्वेतांबर स्थानकवासी जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में विभिन्न कार्यक्रम हुए। जयमल जैन पौषधशाला में सोमवार सुबह 8:30 बजे से 9:15 बजे तक अंतगड़ सूत्र का वाचन और 9:15 से 10:15 बजे तक प्रवचन का आयोजन हुआ। पर्युषण पर्व के प्रथम दिन धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी शारदा कंवर महाराज ने कहा कि पर्व वही कहलाता है, जो आत्मा को पवित्र करें। पर्युषण आत्म-शोधन एवं आत्म-शुद्धि का पावन पर्व है। पर्युषण जैसे आध्यात्मिक, धार्मिक, आत्मिक पर्वों को तप-त्याग पूर्वक मनाने से, जीवन में एक नए परिवर्तन की ओर कदम बढ़ जाते हैं। पर्व और त्यौहार में अंतर बताते हुए साध्वी ने कहा कि त्यौहार से तीन तरफ से हार होती है- धन, शरीर एवं समय। जबकि आध्यात्मिक पर्व से कोई हानि नहीं अपितु लाभ ही लाभ होता है। पर्युषण धर्म जागरण का एक ऐसा पर्व है, जिसमें श्रावक-श्राविकाएं सांसारिक प्रवृत्तियों से निवृत्त होकर धर्म आराधना व जप तप में आत्म जागरण हेतु पुरुषार्थरत रहते हैं। पर्युषण पर्व के आने पर सर्वत्र आनंद की लहर छा जाती है। यह पर्व प्रतीक्षा को प्रतिज्ञा में बदलने का अवसर है। संचालन संजय पींचा ने किया।
नवकार महामंत्र का अखंड जाप प्रारंभ
सोहन नाहर ने 30 वें एकासन व नरपतचंद ललवानी ने 8 वें एकासन की तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। उपवास, आयंबिल, एकासन, बियासन के भी पच्छखान हुए। दिल्ली से राकेश जैन, शार्दुलगंज से ऋषभ जैन सपरिवार, जयपुर से श्रीपाल लोढ़ा, चेन्नई से विनोद ललवानी, अहमदाबाद से ओम ललवानी आदि साध्वी वृंद के दर्शनार्थ आए। सुशील धरम आराधना भवन में दोपहर 2 से 3 बजे तक कल्प सूत्र का वाचन व 3 से 4 बजे तक धार्मिक प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। इसके साथ ही नवकार महामंत्र का अखंड जाप भी सोमवार को प्रारंभ हुआ। जाप लगातार 8 दिन तक 24 घंटे किया जाएगा। शाम 7:15 बजे से पुरुष वर्ग का प्रतिक्रमण पौषधशाला में व महिला वर्ग का प्रतिक्रमण सुशील धरम आराधना भवन में हुआ। इस दौरान ताराचंद चौरड़िया, महावीरचंद भूरट, ललित सुराणा, गिरधारी चौरड़िया, कमलचंद ललवानी, हरकचंद ललवानी, सुभाष ललवानी, प्रकाशचंद बोहरा, धनराज सुराणा, खुशाल लोढ़ा, पूनमचंद बैद, ज्ञानचंद भूरट, किशोर पारख, नेमीचंद चौरड़िया, किशोरचंद ललवानी, जितेंद्र चौरड़िया, अमित नाहटा आदि सैंकड़ों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थे।

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