Dark Mode
घटता जल और बढ़ती प्यास : जल संचयन का अमृत प्रयास

घटता जल और बढ़ती प्यास : जल संचयन का अमृत प्रयास

देश में हर साल मानसून आता है और सर्वत्र बारिश होती है, इसके बावजूद लोग पानी के लिए तरस जाते है। इसका एक मुख्य कारण है हम वर्षा जल का संचयन नहीं कर पाते। मौसम विभाग की माने तो मानसून भारत में प्रवेश कर चुका है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक बारिश शुरू हो गई है। मानसून अपने साथ अपार खुशियां लेकर आता है। लोगों को पीने के लिए जहाँ पानी मिलता है वहां किसान अपने खेतों में बुवाई शुरू कर देते है। बारिश से कई जगह बाढ़ की हालत भी हो गई है। वर्षा जल की एक-एक बूंद अनमोल है। जल है तो जीवन है। इस संचय, संरक्षण से ही मानव जीवन की रक्षा संभव है। जल की अनावश्यक बर्बादी नहीं होने दें। जल संरक्षण के लिए सभी को जागरूक होना होगा और सामूहिक प्रयास करना होगा। इससे जल संरक्षण की दिशा में बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे। वर्षा के जल को किसी खास माध्यम से संचय करने या इकट्ठा करने की प्रक्रिया को वर्षा जल संचयन कहा जाता है। विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। इसके लिये अधिशेष मानसून अपवाह जो बहकर सागर में मिल जाता है, उसका संचयन और पुनर्भरण किया जाना आवश्यक है ताकि भूजल संसाधनों का संवर्धन हो पाये। अकेले भारत में ही व्यवहार्य भूजल ण्डारण का आकलन 214 बिलियन घन मी. (बीसीएम) के रूप में किया गया है जिसमें से 160 बीसीएम की पुन प्राप्ति हो सकती है। इस समस्या का एक समाधान जल संचयन है। यहाँ सवाल यह उत्पन्न होता है की भारी मात्रा में मानसूनी जल उपलब्ध होने के बावजूद हम जल संकट सामना क्योंकर कर रहे है। इसका जवाब है हमने अपने परंरागत जल श्रोत समाप्त कर दिए। भारत को कुए, बावड़ी टांकों और तालाबों का देश कहा जाता है। यहाँ लाखों की संख्या में परंपरागत जल श्रोत थे। नदियां हर समय पानी से लबालब भरी होती थी। इसके बावजूद हम जल समस्या का सामना कर रहे है। यह समस्या हर साल गहराती जा रही है। खेत तो दूर की बात पीने को भी पानी नहीं मिल रहा है। यही कारण है की भारत
सरकार ने जल शक्ति मंत्रालय का गठन कर जल संचयन का बीड़ा उठाया है। हमारे देश में हर साल मानसून में बहुत सा पानी व्यर्थ बह जाता है जिसके संचयन की कारगर व्यवस्था अब तक नहीं खोजी जा सकी है। साल भर में होने वाली बारिश का कम से कम31 प्रतिशत पानी धरती के भीतर रिचार्ज के लिए जाना चाहिए। जब की केवल 13 प्रतिशत पानी ही धरती में समाता है। रिचार्ज नहीं होने की वजह से भूगर्भ में पानी की कमी हो जाती है और उसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है। मौसम विभाग ने अनुमान लगाया है कि इस वर्ष देश में बंपर बारिश हो सकती है। इस अच्छी बारिश का संचय कर पेयजल संकट से निपटने के साथ खेतों में बंपर पैदावार हासिल की जा सकती है। देश इस समय भीषण जल संकट से गुजर रहा है और इस आसन्न संकट पर जल्द काबू नहीं पाया गया तो हालत बदतर होने की सम्भावना है। भारत अब तक के सबसे बड़े जल संकट से जूझ रहा है। देश के करीब 60 करोड़ लोग पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। करीब 75 प्रतिशत घरों में पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। साथ ही, देश में करीब 70 प्रतिशत पानी पीने लायक नहीं है। साफ और सुरक्षित पानी नहीं मिलने की वजह से हर साल करीब दो लाख लोगों की मौत होती है। पृथ्वी पर कुल जल का अढ़ाई प्रतिशत भाग ही पीने के योग्य है। इनमें से 89 प्रतिशत पानी कृषि कार्यों एवं 6 प्रतिशत पानी उद्योग कार्यों पर खर्च हो जाता है। शेष 5 प्रतिशत पानी ही पेयजल पर खर्च होता है। यही जल हमारी जिन्दगानी को संवारता है। अगर बरसात के बाद नदी-नालों से बहने वाले पानी का प्रभावी तरीके से संग्रहण किया जाय तो पानी कई गुना और ज्यादा मिलने लगेगा। वैश्विक संस्थाओं की लगातार चेतावनियों का लगता है लोगों पर कोई असर नहीं पड़ा है। विभिन्न संगठनों की पानी सम्बन्धी रिपोर्टों में साफ कहा गया है की भूगर्भ में अब पानी नहीं रहा है और वर्षात का पानी सहेजने में हम नकारा साबित हुए है। विशेषकर भारत में पानी के प्रति घोर लापरवाही का परिणाम आम आदमी को शीघ्र भुगतना होगा। दुनियाभर में 200 करोड़ से ज्यादा लोग साफ पानी और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।

 

-बाल मुकुन्द ओझा

Comment / Reply From

Newsletter

Subscribe to our mailing list to get the new updates!