Dark Mode
समय के साथ कम हो चली है झींगुरों की झांय-झांय !

समय के साथ कम हो चली है झींगुरों की झांय-झांय !

जून के इस महीने में इन दिनों में यह लेखक पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में है और इन दिनों यहां खूब बारिश हो रही है। एक ओर जहां उत्तर भारत में 48-49 डिग्री सेल्सियस तापमान से उत्तर भारत जल रहा है वहीं उत्तराखंड राज्य हरितिमा से भरपूर और गर्मियों में राहत देने वाला राज्य है। सूरज ढ़लते ही यहां झींगुरों की झांय-झांय सुनाई देने लगती है और कभी-कभी तो दिन के समय भी जब बारिश के कारण मौसम में ठंडक होती है, वातावरण झांय-झांय की आवाज से गूंजने लगता है। कभी फिल्मों के किसी दृश्य में ही झींगुरों की आवाज सुनाई दिया करती थी। शहरों में झींगुरों के बारे में कभी देखने सुनने को नहीं मिलता। आखिर इसके पीछे कारण क्या हैं ? कारण है बढ़ती आबादी, औधोगिकीकरण, शहरीकरण, तीव्र विकास, ग्लोबल वार्मिंग के कारण आज जंगलों का कम होना। कहना ग़लत नहीं होगा कि इंसानी शोर से आज झींगुरों की झांय-झांय पर लगातार खतरा मंडरा रहा है। पाठकों को बताता चलूं कि इस संबंध में कुछ समय पहले एक शोध के नतीजे बीएमसी इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन जर्नल में प्रकाशित हुए थे। इसके मुताबिक इंसानों के बढ़ते शोर से न सिर्फ झींगुरों का संगीत मंद पड़ा है, बल्कि उनका जीवन काल भी घट गया है। यहां पाठकों को यह भी बताता चलूं कि झींगुर, इन्सेक्टा वर्ग का हिस्सा और ग्रिलिडे परिवार से संबंधित हैं, जो कई प्रजातियों से मिलकर बने हैं। ये अक्सर खेतों, सड़क के किनारे चरागाहों, घने जंगलों और आवासीय लॉन में पनपते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि घास के मैदानों, जंगलों, गुफाओं और यहां तक कि उनकी विशिष्ट प्रजातियों के अनुरूप इनडोर क्षेत्रों में भी देखा जा सकता है। अंग्रेजी में इन्हें क्रिकेट कहते हैं। झींगुरों के बारे में रोचक तथ्य यह है कि झींगुरों के पंख होते हैं, लेकिन वे उड़ नहीं पाते, वे केवल कूद सकते हैं। ये सामाजिक कीट नहीं माने जाते हैं। नर झींगुर अपनी चहचहाहट के लिए प्रसिद्ध हैं, यह एक ऐसी ध्वनि है जो उनके पंखों के घर्षण से उत्पन्न होती है जिसे स्ट्रिड्यूलेशन कहते हैं। दरअसल, इस तरह की चहचहाहट के दो उद्देश्य होते हैं: यह मादा झींगुरों को आकर्षित करती है और अन्य नर झींगुरों के बीच क्षेत्रों को परिभाषित करती है। मुख्य रूप से रात में सक्रिय रहने वाले ये जीव रात्रिचर प्रवृत्ति प्रदर्शित करते हैं, जो उन्हें शिकारियों से बचने में मदद करते हैं।शाम के बाद या रात के समय उनकी आवाज़ को स्पष्ट सुना जा सकता है। दरअसल,तापमान और उनके चहकने की आवृत्ति के बीच एक संबंध है। खास तौर पर, घरेलू झींगुर गर्म स्थानों की ओर आकर्षित होते हैं‌। दरअसल, ठंड के मौसम में झींगुरों को गर्मी और पोषण की तलाश रहती है। झींगुर तीन चरण के जीवन चक्र से गुजरते हैं , जिसमें अंडा चरण, निम्फ चरण और वयस्क रूप शामिल हैं। एक क्लच में, मादा झींगुर 200 अंडे तक देने में सक्षम होती हैं और वे अपने परिपक्व चरण के दौरान लगभग हर दो सप्ताह में नए बैच दे सकती हैं। इन अंडों के लिए ऊष्मायन अवधि आमतौर पर आदर्श गर्मी की स्थिति में 11 से 14 दिनों के बीच होती है। जानकारी देना चाहूंगा कि झींगुर मुख्य रूप से पौधों की सामग्री जैसे पत्तियां, तने और बीज खाते हैं, लेकिन वे शहरी वातावरण में मानव भोजन के अवशेष भी खा सकते हैं। सरल शब्दों में कहें तो ये सर्वभक्षी होते हैं तथा इनका आहार काफी विविध और अनुकूलनीय है। बहरहाल, झींगुर विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों मे मुख्य रूप से अपघटन, पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण और कीट नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह एक छोटा सा जीव है जो सड़ने वाले कार्बनिक पदार्थों को खाता है, जिससे पोषक तत्वों को वापस मिट्टी में मिलाने में मदद मिलती है। दूसरे शब्दों में कहें तो झींगुर मृत पौधों और जानवरों के अवशेषों को खाते हैं, जिससे वे छोटे टुकड़ों में टूट जाते हैं और हमारे पर्यावरण में अपघटन की प्रक्रिया में मदद करते हैं। अपघटन की क्रिया से झींगुर विभिन्न पोषक तत्वों को मिट्टी में या इस धरती पर वापस छोड़ते हैं, जो पौधों और अन्य जीवों के लिए उपलब्ध होते हैं। इतना ही नहीं, छोटे-छोटे कीड़ों को खाकर ये कीट नियंत्रण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। यदि झींगुर नहीं होंगे तो ऐसे कीट(जिनको झींगुर खाते हैं) विभिन्न पौधों और वनस्पतियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। खाद्य श्रृंखला को बनाए रखने में भी झींगुरों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। दरअसल,झींगुर कई जानवरों जैसे पक्षियों, सरीसृपों और अन्य कीड़ों के लिए भोजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। उल्लेखनीय है कि झींगुरों द्वारा बनाए गए बिल मिट्टी को हवादार बनाने और जल निकासी में सुधार करने में मदद करते हैं, जिससे मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर होता है। इतना ही नहीं, कुछ अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि झींगुर पौधों के परागण में भी भूमिका निभाते हैं।

 


-सुनील कुमार महला

Comment / Reply From

Newsletter

Subscribe to our mailing list to get the new updates!