संस्कृत को जानने वाला प्रत्येक व्यक्ति संस्कारों की चलती फिरती पाठशाला- कुमावत
शाहपुरा . बालक के व्यक्तित्व निर्माण में सबसे अधिक सहायक भाषा यदि कोई है तो वह संस्कृत भाषा है। संस्कृत भाषा से ही बालक में संस्कार परिलक्षित होते हैं । संस्कारों से संस्कृति और संस्कृति से राष्ट्र का निर्माण होता है। संस्कृत को जानने वाला प्रत्येक व्यक्ति संस्कारों की चलती फिरती पाठशाला है। जीवन में यदि सबसे अधिक कोई अनुशासित और संस्कारवान व्यक्ति दिखे तो समझना चाहिए कि वह संस्कृत अनुरागी हैं। यह बात संस्कृत भारती शाहपुरा जिला की ग्राम इकाई शंभूपुरा द्वारा आयोजित बाल केंद्र के उद्घाटन के अवसर पर बोलते हुए भीलवाड़ा विभाग संयोजक परमेश्वर प्रसाद कुमावत ने कही। कुमावत ने कहा है कि संस्कृत भारती प्रत्येक व्यक्ति को संस्कृत भाषा से जोड़ने एवं संस्कृत भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलवाने हेतु प्रयासरत हैं। संस्कृत हमारे 16 संस्कारों को संपन्न करवाने वाली देववाणी भाषा है। बाल शिक्षण केंद्र शंभूपुरा व तहसील संयोजक शाहपुरा के लोकेश कुमार सेन ने बताया कि लघु लघु बालकों में देववाणी संस्कृत के प्रति रुचि जागृत करना व ग्राम्य अंचल में बालकों में संस्कारों का बीजारोपण करने हेतु बाल केंद्र चलाया जा रहा है। इस अवसर पर चेतन कुमावत, महावीर कुमावत, राजवीर नायक, देवराज कुमावत, खुशीराम नायक आदि उपस्थित थे।