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मुफ्त अनाज सहायता के चक्रव्यूह में फंसी भारत की गरीबी

मुफ्त अनाज सहायता के चक्रव्यूह में फंसी भारत की गरीबी

हर साल की भांति आज भी यानि 17 अक्टूबर को हम अन्तर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस मनाने जा रहे है। इस बीच कई बार गरीब की परिभाषा बदली मगर गरीबी उन्मूलन को पूरी तरह अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। इसके विपरीत भारत ने 80 करोड़ से अधिक की अपनी आबादी को मुफ्त अनाज सहायता और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराकर अपनी सरकार का मंतव्य जाहिर कर दिया। साथ ही 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का दावा कर दिया। साल दर साल दी जा रही यह खाद्य सहायता कब तक जारी रहेगी, कोई बताने वाला नहीं है। संयुक्त राष्ट्र ने भी गरीबी घटने के भारत के इस दावे को स्वीकार कर लिया। विख्यात कृषि अर्थशास्त्री डॉ. गुलाटी की माने तो, जब देश में अत्यधिक गरीबी सिर्फ 5 प्रतिशत है तो 80 करोड़ लोगों को मुफ्त भोजन क्यों दिया जा रहा है? क्या वे अपना भोजन खरीदने में सक्षम नहीं हैं। दावों प्रतिदावों के बीच गरीबी के खिलाफ संघर्ष आज भी जारी है। विचारणीय बात तो यह है मुफ्त अनाज का यह मायाजाल कब तक जारी रहेगा और आखिर यह गरीबी कब ख़त्म होगी। पैसा फेंक तमाशा देख के इस चक्रव्यूह से आज़ादी कब मिलेगी।
संयुक्त राष्ट्र की गरीबी के खिलाफ संघर्ष की विभिन्न रिपोर्टों का गहन अधय्यन करें तो पाएंगे आज भी दुनियाभर में लोग रोटी कपड़ा और मकान के लिए जूझ रहे है। इस दिन का उद्देश्य दुनिया भर में विशेष रूप से विकासशील देशों में गरीबी और गरीबी उन्मूलन की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। संयुक्त राष्ट्र ने अन्तर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस को मनाने की पहल 22 दिसम्बर 1992 को की थी। यह लोगों के दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं को उजागर करने और उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान करने का एक वैश्विक मंच है। यह दिन गरीबी के खिलाफ लड़ाई में सहयोग, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के महत्व को उजागर करता है।
दुनिया भर में गरीबी की स्थिति आज भी बेहद चिंताजनक है। विश्व बैंक के मुताबिक लगभग 700 मिलियन लोग आज भी अत्यधिक गरीबी में जीवनयापन कर रहे हैं। रिपोर्ट से साफ़ होता है, दुनिया की एक बड़ी आबादी आज भी बुनियादी आवश्यकताओं, जैसे भोजन, स्वच्छ पानी, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा तक पहुंच नहीं पाई है। हमारे देश की बात करें तो आजादी के 78 सालों के बाद भारत में गरीब और गरीबी पर लगातार अध्ययन और खुलासा हो रहा है। भारत की गरीबी आज भी आंकड़ों के भ्रम जाल में उलझी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक पिछले 10 सालों में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में सरकार सफल रही है। वहीं 16 करोड़ घरों में नल का पानी पहुंचाया है और गरीब परिवारों के लिए 5 करोड़ घर बनाए हैं। इसके अलावा 12 करोड़ से अधिक शौचालय उपलब्ध कराए हैं, जिन्हें इन सुविधाओं की कमी के कारण सबसे अधिक परेशानी उठानी पड़ती थी।
विश्व बैंक ने इस वर्ष जारी रिपोर्ट में अपनी गरीबी रेखा की सीमा को संशोधित करते हुए इसे 2.15 डॉलर प्रतिदिन से बढ़ाकर 3 डॉलर प्रतिदिन कर दिया है। इस नए मानक के अनुसार, भारत में अत्यधिक गरीबी की दर में उल्लेखनीय कमी देखी गई है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2011-12 में 27.1 प्रतिशत की अत्यधिक गरीबी दर 2022-23 में घटकर मात्र 5.3 प्रतिशत रह गई है। इसका अर्थ है कि अत्यधिक गरीबी में रहने वाली जनसंख्या 344.47 मिलियन से घटकर 75.24 मिलियन हो गई है।
भारत सरकार ने हर प्रकार की गरीबी को कम करने के लक्ष्य के साथ लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में उल्लेखनीय प्रगति की है। पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसी उल्लेखनीय पहलों ने स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे वंचित रहने में काफी कमी आई है। दुनिया के सबसे बड़े खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में से एक का संचालन करते हुए, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली 81.35 करोड़ लाभार्थियों को कवर करती है, जो ग्रामीण और शहरी आबादी को खाद्यान्न प्रदान करती है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त खाद्यान्न वितरण को अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ाना, सरकार की प्रतिबद्धता का उदाहरण है। मातृ स्वास्थ्य का समाधान करने वाले विभिन्न कार्यक्रम, उज्ज्वला योजना के माध्यम से स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन वितरण, सौभाग्य के माध्यम से बिजली कवरेज में सुधार, और स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन जैसे परिवर्तनकारी अभियानों ने सामूहिक रूप से लोगों की रहने की स्थिति और समग्र कल्याण की स्थिति में सुधार किया है। इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री जन धन योजना और पीएम आवास योजना जैसे प्रमुख कार्यक्रमों ने वित्तीय समावेशन और वंचितों के लिए सुरक्षित आवास प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे बुनियादी सेवाओं तक पहुंच में आने वाली मूलभूत समस्याओं का तेजी से समाधान हो रहा है ताकि देश एक विकसित राष्ट्र यानी विकसित भारत @2047 बनने की ओर अग्रसर हो सके। सरकारी स्तर पर यदि ईमानदारी से प्रयास किये जाये और जन धन का दुरूपयोग नहीं हो तो भारत शीघ्र गरीबी के अभिशाप से मुक्त हो सकता है।


- बाल मुकुन्द ओझा

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