एक दिमाग सौ शास्त्रों का निर्माण कर सकता है: साध्वी कीर्तिलता
आमेट. तेरापंथ सभा भवन में पर्युषण महापर्व का दूसरा दिन स्वाध्याय दिवस के रूप में मनाया गया। साध्वी श्री कीर्ति लता जी ने तीन प्रकार के वृक्षों की चर्चा करते हुए। तेरापंथ जैन धर्म संघ की आम की उपमा से उपमित किया। आपने कहा जहां संघ होता है वहां मर्यादाये लक्ष्मण रेखाए की भांति भांति अनिवार्य हो जाती है। मनुष्य का मस्तिष्क एक अनमोल खजाना है। क्योंकि सौ शास्त्रों मिलकर एक दिमाग का निर्माण नहीं कर सकते। लेकिन एक दिमाग सौ शास्त्रों का निर्माण कर सकता है। और जिसने भी अपने दिमाग का सदुपयोग किया वह आईस्टीन भिक्षु, तुलसी बना है। आपने आगे कहा जिस संघ में जिस परिवार में जिस समाज में मर्यादा नहीं वह न तो परिवार चल सकता है। ना ही संघ व नहीं समाज चल सकता है। संघ की नींव को मजबूत करने के लिए मर्यादा व समर्पण की ध्वजा चाहिए। साध्वी श्री जी ने मुनि श्री अमोल चंद जी स्वामी की रोमांचकारी घटना का उल्लेख करते हुए शील की महिमा बताई ।भगवान महावीर के 27 भवों की चर्चा करते हुए आपने कहा सम्यक्त रल के प्राप्त कर भगवान महावीर का जीव नयसार से देवलोक में गया वहां से च्यवनकर मनुष्य लोक में भगवान ऋषभ के पौत्र मरीचि के रूप में पैदा हुआ। आपने कहा जो देव देवगति में अपने पुष्प बल का भोग कर लेते हैं। वे जीव वहां से च्यवनकर पृथ्वी, पानी व वनस्पति में उत्पन्न होते हैं। और जो जीव अपने पुष्प को बचाकर रखते हैं वह मनुष्य योनि में जाते हैं। साध्वी श्री श्रेष्ठ प्रभा जी ने स्वाध्याय दिवस पर अपने विचार रखते हुए ।कहा कि स्वाध्याय आत्म दीपक के अंतर ज्योति को प्रकट करने का। स्वाध्याय एक रसायन है मस्तिष्क का जिसने पोषण मिलता है। साध्वी श्री शांति लता जी ने आज के प्रवचन के उपरांत श्रावक समाज को प्रश्न पूछे गए। कार्यक्रम का शुभारंभ कन्या मंडल के मंगल गीत से हुआ। रात्रि में साध्वी श्री पूनम प्रभा जी द्वारा पी.टी.ओ. नमस्कार मंत्र के माध्यम से ईष्ट से साक्षात्कार करने की प्रेरणा दी। श्रावक श्राविकाओं की अच्छी उपस्थिति रही। कार्यक्रम की जानकारी jtn प्रतिनिधि पवन कच्छारा ने दी।*