अपनी शक्ति, धन, दान का घमंड नहीं करना ही उत्तम मार्दव धर्म है
टोंक । त्याग, तपस्या साधना, आत्मा को शुद्ध करने वाला दशलक्षण महापर्व के अन्तर्गत श्री दिगंबर जैन नसियां में प्रात: काल अभिषेक, शांतिधारा के पश्चात सहस्त्रनाम महामंडल विधान में इंद्र एवं इंद्राणी द्वारा नित्य नियम पूजन के पश्चात सहस्त्रनाम महामंडल विधान की पूजा-अर्चना करके पंडित आकाश शास्त्री कोटा एवं मोनू पार्टी सागर के सानिध्य में 48 अर्घ समर्पित किये गये । समाज के प्रवक्ता पवन कंटान एवं कमल सर्राफ ने बताया कि महामंडल विधान में सो-धर्म इंद्र नेमीचंद बनेठा, कुबेरइंद्र ओम प्रकाश आंडऱा, ईशानइंद्र प्रदीप कुमार नगर, यज्ञनायक कन्हैयालाल, लोकेश कुमार बरवास, मोहन लाल, मदन लाल दाखिया, लाल चंद फुलेता, सुरेंद्र कुमार अजमेरा, उत्तमचंद फुलेता, रमेश हाडिग़ांव, नरेंद्र को इंद्र बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आर्यिका सूत्रमतिमाता जी ने उत्तम मार्दव धर्म के बारे में बताते हुए कहा कि मान, कषाय के अभाव का नाम ही उत्तम मार्दव धर्म है, अपनी शक्ति, धन, दान का घमंड नहीं करना, मन के भाव को निर्मल रखना, अपने अभिमान एवं घमंड को खत्म करना मार्दव धर्म कहलाता हैं। पवन कंटान ने बताया कि सांयकालीन प्रतिदिन आरती प्रशन मंच, शास्त्र ज्ञान स्वाध्याय प्रतिदिन आयोजित किये जा रहे हैं। साथ ही महिला मंडल के द्वारा प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इस मौके पर जैन धर्म पर आधारित सतियों पर परीचर्चा प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।