हाथरस कांड में सियासी पार्टियां बैकफुट पर
हाथरस में 121 लोगों की मौत के बाद सियासत दिन प्रतिदिन अपने रंग बदल रही है। हादसे के बाद से जहां सियासी पार्टियां बैकफुट है वहीं विपक्षी पार्टियां सरकार को घेरने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहती हैं। हाथरस से लेकर लखनऊ और दिल्ली तक इस मसले पर राजनीति गरमाई हुई है। हाथरस कांड को लेकर विपक्षी पार्टियां योगी सरकार को घेरने में जुटी हुई हैं। हाथरस से लेकर दिल्ली तक इस मुद्दे पर जमकर सियासत हो रही है राहुल गांधी, सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित अनेक नेता हाथरस गए और पीड़ित परिवारों से मुलाकात की लेकिन उन्होंने कथित भोले बाबा पर एक भी शब्द भी नहीं कहा। सभी नेताओं और पार्टियों ने प्रशासनिक कमजोरियों को जरूर इंगित किया मगर बाबा की भूमिका पर एक शब्द नहीं कहा। चाहे सत्तारूढ़ दल हो या विपक्ष की सब ने बाबा पर मौन धारण कर लिया। बसपा प्रमुख मायावती ने अवश्य बाबा की भूमिका की जाँच की बात कही। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने हाथरस हादसे पर जारी एसआईटी की रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि रिपोर्ट घटना की गंभीरता के हिसाब से नहीं, बल्कि राजनीति से प्रेरित ज्यादा लगती है। उन्होंने योगी सरकार को घेरते हुए कहा है कि ऐक्शन लेने की बजाय आखिर क्लीनचिट क्यों दिया जा रहा है। हाथरस हादसे को लेकर दलित सियासत उभरती दिख रही है। इस मुद्दे पर सियासी दल से सीधे तौर पर बाबा सूरजपाल उर्फ नारायण साकार हरि ‘भोले बाबा के खिलाफ मुखर होकर बोलने से किनारा कर रहे हैं। सियासी जानकार इसकी वजह बाबा सूरजपाल के जाटव (दलित) पर बड़े असर होने का कारण मान रहे हैं। हालांकि, जैसे-जैसे दिन गुजर रहे हैं, वैसे-वैसे अब सियासी दलों की जुबान में भी बदलाव देखा जा रहा है। बाबा का नाम सूरजपाल जाटव है। यूपी में जाटव वोटरों की संख्या करीब-करीब 11 फीसदी है। परंपरागत तौर पर ये वोट बैंक मायावती और बीएसपी का माना जाता है, लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में इस में बिखराव हुआ है। अखिलेश यादव से बाबा की नज़दीकियां चर्चा में है। सियासी जानकारों की मानें तो यूपी के 16 जिलों में बाबा का असर है। खासकर दलित समाज पर। हाथरस पर बड़ी संख्या में मौतों के बाद भी सियासत की चुप्पी हैरान करने वाली है। इसके पीछे बाबा का दलित होना प्रमुख कारन बताया जा रहा है। यहीं से दलित वोटों की सियासत शुरू हो गई। हालाँकि अभी कोई चुनाव होने वाले नहीं है मगर यूपी विधानसभा के उप चुनावों को लेकर सियासत होने लगी है। प्रदेश में विधानसभा की 10 सीटों पर उपचुनाव भी होने हैं और लगता है कि राज्य सरकार इस घटना को लेकर कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती, जिससे उसे कोई और बड़ा सियासी नुकसान भुगतना पड़ जाए। शायद यही वजह है कि इस घटना पर बसपा को छोड़कर अन्य सारे विपक्षी दल भी कसूरवार के तौर पर सूरजपाल का नाम लेने से भी डरते नजर आ रहे हैं। हाथरस हादसे में दलित समुदाय के लोगों की ज्यादातर मौत हुई है। यूपी में 22 फीसदी के करीब दलित समाज का वोट है, जो सियासी तौर पर काफी अहमियत रखता है। इसी बीच योगी सरकार ने बड़ी कार्रवाई की है। सिकंदराराऊ क्षेत्र के उपजिलाधिकारी और क्षेत्राधिकारी सहित 6 अधिकारी और कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया गया है। हादसे की जांच को गठित एसआईटी की रिपोर्ट पर यह एक्शन लिया गया है। बाबा सूरजपाल के खिलाफ अब तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। एसआईटी रिपोर्ट के आधार पर इस कांड के लिए जिम्मेदार मानते हुए सस्पेंड हुए एक अधिकारी ने भी दावा किया है कि सूरजपाल को क्लीनचिट दिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हाथरस कांड में अबतक जिस तरह से सूरजपाल बचा हुआ है, उसको लेकर निलंबित हुए एक और वरिष्ठ अफसर ने दावा किया है कि 'भोले बाबा का दलित समुदाय में बहुत ही ज्यादा प्रभाव है। उसके खिलाफ कार्रवाई करने में कुछ चिंताएं हो सकती हैं। इसके अलावा बाबा के खिलाफ कार्रवाई से शांति भड़कने की भी आशंका हो सकती है। अभी तक उस पर कोई आरोप नहीं है। मिली जानकारी के अनुसार एसटीएफ बाबा के साम्राज्य, धन संग्रह के तरीके, धन के ब्योरे, संपत्तियों आदि की जानकारी जुटा रही हैं। जांच से जुड़े सूत्रों के मुताबिक गिरफ्तार मुख्य सेवादार देव प्रकाश मधुकर ने भी जांच में कई राज खोले हैं। बताया कि बाबा के सत्संग के आयोजन के लिए बनाई गई समिति में ज्यादातर सरकारी सेवक हैं। उनमें शिक्षक, लेखपाल, व्यापारी, कारोबारी, सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारी, कुछ रिटायर कर्मचारी शामिल बताए गए हैं।
-बाल मुकुन्द ओझा